न राजा सुखी है और न रंक

रानी लक्ष्मीबाई के लड़के का देहान्त तीन महीने की आयु में ही हो गया।

पूरे का पूरा नगर शोक में डूब गया। जिसे देखो उसके ही मुंह से हाय निकलती।

लोग कलेजा पकड़कर रह जाते। बड़े-बूढ़े कहते कि झांसी का दिया बुझ रहा है।

रानी की मदद करो। वह समय पड़ने पर दुश्मन से मोर्चा लेगी।

रानी ने शोक को अधिक महत्त्व नहीं दिया। उसने अपने कर्त्तव्य को पहचाना। उसने अपने स्त्री-समाज में प्रशिक्षण आरंभ किया। इस तरह उसने योग्य महिलाओं का एक समूह बना लिया, जिसका एक मात्र उद्देश्य था समाजसेवा।

रानी को पूरे देश की चिंता थी। वह जब अपनी सखियों के समाज में बैठती तो अक्सर कहा करती कि पृथ्वीराज की पराजय के बाद देश कभी आज़ाद नहीं हो सका, यह इतिहास बतलाता है ।

मुसलमान हमलावर देश में आए, उनहोंने खूब लूट-पाट की।

किसी ने अपना साम्राज्य बनाया।

मुगल सदियों तक बने रहे। ये अंग्रेज जो व्यापारी बनकर आए थे, अब हमें लूट रहे हैं।

ईस्ट इंडिया कंपनी का इरादा अच्छा नहीं है, वह पूरे देश को हथिया लेना चाहती है।

कुछ भी हो, मैं अपनी झांसी अंग्रेजों को नहीं दूगी। आजादी के लिए गर्दन उतार दी जाती है। समय बड़ा नाजुक आ गया है। हम सबको संभलकर रहने की जरूरत है।

रानी की बातों से स्त्री-समाज में जोश आता।

उनकी धमनियों में रक्त तेजी के साथ दौड़ने लगता। उनका सीना साहस से फूल-फूल उठता।

और मन में उद्गार आते कि हम लोग स्वतंत्रता संग्राम के लिए कटिबद्ध तैयार हैं, अगर जरूरत पड़ी तो हम सब जाकर रण-क्षेत्र में युद्ध भी करेंगी। अंग्रेजों ने जो चाल सोची है वह कभी सफल नहीं होगी।

सुंदर और मुंदर इतिहास में अधिक रुचि रखती थीं। मुंदर के मन में यह कीड़ा हमेशा रेंगा करता कि अगर आज हमारा देश इन छोटे-छोटे टुकड़ों में न बंटा होता तो यह नौबत न आती। कोई एक-छत्र सम्राट नहीं, यह भारतवर्ष का अभाग्य है ।

एक बात यह ऐसी थी जिसे राजा ही नहीं, रानी की सब दासियां भी समझती थीं।

रानी के चेहरे पर वह रौनक नहीं आती, जो पहले थी।

यह प्रमाण था, इसका कि उसे भी पुत्र का शोक कम नहीं था।

पहिले वह कल्पना की उड़ानें भरती, सुंदर-सुंदर सपने देखती और यह कोशिश करती कि हवा मेरी मुट्ठी में बंद हो जाए।

मैं ईस्ट इंडिया कंपनी से लोहा लूं और झांसी से अंग्रेजों के पैर उखाड़ दूं।

मगर अब रानी उद्देश्य और लक्ष्य स्थिर करने लगी थी।

फिर वह मां बनेगी, उसकी गोद में लाल खेलेगा। इस कहानी को वह भूलकर भी नहीं दुहराती। कारण स्पष्ट था। राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत खराब था।

उन्हें अब अपने अधिक दिन जीने की आशा नहीं रही। एक बार उन्होंने अपनी रानी से सलाह की। वे बोले-“मेरे बाद राज्य का क्या होगा, लक्ष्मीबाई ?

उत्तराधिकारी के बिना राज्य का संचालन कैसे होगा ?

अंग्रेज हम पर पूरी तरह काबिज़ हैं, हम उनके पंजे में हैं।

भगवान् ने भी हमारी हंसी उड़ाई रानी! देखो न, तभी तो गुड़ दिखला कर ईंट मार दी! इससे संतान न होती तो अच्छा था! मैं बहुत दुर्बल हो गया हूं। सदमा मुझे खा गया है, अब मैं अधिक जिंदा नहीं रहूंगा।"

रानी ने एक दीर्घ उच्छ्वास ली और पति की ओर देखकर कहा, “आप नहीं जानते राजा, दुनिया में सब सुख आदमी को कभी नहीं मिलते।

न राजा सुखी है और न रंक। कुछ भी हो हमें हिम्मत से काम लेना है और उत्तराधिकारी नहीं है तो उसका चुनाव करके कोई बालक गोद लेना है।"

बूढ़े गंगाधर राव की भी मुर्दा नसों में एक बार जीवन दौड़ गया।

वे खिल गए फूल की तरह, और धीरे से बोले-“रानी, तुमने रास्ता बतला दिया,

मेरी मुश्किल आसान कर दी। मुझे भरोसा है कि मेरे बाद तुम शासन-सूत्र संभालकर राज्य को बखूबी चला सकोगी।

देर नहीं करनी है। हमें जल्दी ही कोई लड़का गोद ले लेना चाहिए। मैं जानता हूं कि मेरी रानी इस काम में भी मेरी पूरी-पूरी मदद करेगी।"

इस पर रानी मुस्करा उठी और कनखियों से पति की ओर देखने लगी।

तभी गंगाधर राव ने मन बहलाने के लिए एक दूसरी कड़ी छेड़ दी। वे लक्ष्मीबाई की ओर उन्मुख हो मृदु स्वर में बोले-“कई दिन से शतरंज नहीं खेली है रानी। लाओ, चौपड़ बिछाओ, एक बाजी हो जाए।"

बस चौपड़ बिछ गई। उस पर घोड़े, प्यादे, हाथी और वजीर दौड़ने लगे। रानी खिलखिलाकर हंसी और आलोड़ित होकर जोर से बोली-“शह बचाइये श्रीमान्, अब मात में देर नहीं।"

राजा हंस पड़े। वे मौन रहे और उनका वह सुखद मौन रानी को बहुत प्रिय लगा।

इसके बाद दिन बीते, रातें आईं। दुनिया तनिक आगे और बढ़ी।

अंग्रेजों की राज्य-लिप्सा की कूटनीति की खबरें जब रानी सुनती तो उसके तन-बदन में आग लग जाती।

उसे भी अपनी सरकार की ओर से गुप्त भय था। यह मन का चोर वह हमेशा छिपाये रहती।

वह भी समझ गई थी कि राजा गंगाधर राव अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं। इसके पूर्व ही उत्तराधिकारी की नियुक्ति हो जाना बहुत ही आवश्यक है।

क्योंकि, सुना है कि ईस्ट इंडिया कंपनी राजा की विधवा को राज्य-कार्य नहीं करने देती, उसकी मासिक या वार्षिक वृत्ति नियुक्त कर देती है। और इस तरह वह धीरे-धीरे राज्य हड़प कर लेती है।

इस तरह रानी की यह कोशिश थी कि जल्दी से जल्दी कोई बालक मिल जाए, जिसे गोद ले लिया जाए।