राजा गंगाधर राव ने ईस्ट इंडिया कंपनी को जो खबर खरीते द्वारा भेजी थी,
कि दामोदर राव को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है।
उसका जवाब एक लंबा अरसा गुजर गया, नहीं आया। राजा बहुत चिंतित हुए। एक दिन उन्होंने अपनी रानी से कहा-“मुझे इसमें कंपनी की कोई चाल मालूम होती है।
आखिर खरीते का जवाब अब तक क्यों नहीं आया।
पोलिटिकल एजेंट से बात हुई। उसके रुख से टालमटोल नजर आता है। मेरा समय लगता है कि अब करीब आ गया है।खांसी एक मिनट के लिए भी सांस नहीं लेने देती।"
रानी को भी भविष्य की चिंता थी; किंतु वह निरुत्साहित नहीं होती। साहसपूर्वक पति को जवाब देती।
वह कहती-“कंपनी सरकार डाल-डाल चलेगी तो मैं पात-पात डोलूंगी। हमारी योजना में कोई भी हेर-फेर नहीं होगा और न हम इसे सहन ही करेंगे।"
राजा को यह सुनकर प्रसन्नता होती, मगर वे जीवन से निराश हो चुके थे। उन्हें लगता कि मृत्यु उनके सामने खड़ी है।
यह मानव स्वभाव है कि प्रत्येक को मौत से डर लगता है।
राजा भी भगवान् से जिंदगी की भीख मांग रहे थे कि काश वे तब तक जीवित रहते जब तक दामोदर राव युवा नहीं हो जाता। लेकिन होनहार के आगे किसी की नहीं चलती।
आदमी सोचता कुछ है और होता कुछ है। राजा गंगाधर राव कंपनी के जवाब की प्रतीक्षा ही करते रहे। और उनका अंत निकट आ गया।
इक्कीस नवंबर अठारह सौ तिरपन में राजा गंगाधर राव ने शरीर त्याग दिया। रानी छाती पीटकर रह गई। उसने अपना माथा धुन डाला।
उसे अपने महल में अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा। सुंदर रानी को समझाती।
सुंदर उससे कहती कि राजकुमार का मुंह देखो रानी जी, अब आपकी जिंदगी का वही सहारा है।
काशी अपनी स्वामिनी के साथ बैठकर आंसू बहाती, वह भी अवसर पाकर लक्ष्मीबाई को समझाती।
उससे कहती कि धीरज रखो रानी जी समाई से काम लो। दुःख जब पहाड़ होकर टूटता है तो आदमी उसके नीचे दब जाता है।
यह शोक का समय नहीं; हमें भविष्य को भी देखना है। कंपनी सरकार कहीं कोई नया फरमान न जारी कर दे, मुझे इसका डर है।
रानी सबकी बातें सुनती। वह ठंडी आहे भरती, लंबी सांसें लेती। दामोदर राव की ओर देखती, तो पाती वह पौधा है।
उसे वृक्ष बनने में अभी काफी समय लगेगा। तब तक मुझे बहुत ही सावधान रहने की जरूरत है। अगर कहीं झांसी हाथ से निकल गई तो पति के नाम को बट्टा लगेगा।
दामोदर राव का भविष्य अंधकार में बदल जाएगा।
झांसी की प्रजा और राज्य सभा ने दामोदर राव को अपना युवराज मान लिया था।वह राज्य का उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ। रानी अब भी कंपनी के जवाब की प्रतीक्षा कर रही थी। पोलिटिकल एजेण्ट के पास उसने कई बार अपने आदमी भेजे; लेकिन भी जवाब नहीं मिला।
अठारह वर्ष की छोटी सी उम्र में ही रानी को वैधव्य का दुःख भोगना पड़ा।
वह राजा की विधवा थी और राज्य का उत्तराधिकारी था दामोदर राव; किंतु अभी वह नाबालिब था अतः राज्य का सारा काम रानी स्वयं देखती।
वह न्याय करती, प्रजा का दुःख दूर करने का प्रयत्न करती।
छोटे से लेकर बड़े तक की सभी की बात सुनती। अंग्रेजों की ओर से वह निश्चिंत नहीं थी। उन्हें वह अपना ही नहीं देश का दुश्मन समझती थी।
प्रजा में रानी के राज्य कार्य की सराहना होती।
जिसे देखो वही कहता कि रानी अपनी रिआया के साथ स्नेह पूर्ण व्यवहार करती है।
वह प्रजा के दुःख-दर्द को अपना दुःख समझती। वह अंग्रेजों की दासता के खिलाफ है। अंग्रेजी सेना जो झांसी में रहती है और जिसका खर्च झांसी राज्य से दिया जाता है।
यह रानी को नापसंद है; लेकिन अभी बोलने का अवसर नहीं है इसीलिए वह . चुप है।
समय आने पर रानी चंडी बन जाएगी, यह सभी जानते थे।
रानी को अकारण क्रोध कभी नहीं आता और जब आता तो उसका कारण होता और वह जल्दी नहीं जाता।
यों उसने शांत-चिंत्त पाया था और सरल स्वभाव। उसके पास जो कोई भी जाता वह बिना नहीं रहता।
रानी का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि अपराधी का साहस नहीं होता कि उसके सामने झूठ बोल प्रभावित हुए जाए। वह अपराध स्वीकार कर लेता और दया की देवी रानी उसे क्षमा कर देती।
झांसी के दो एक नए दुश्मन और थे जो बहुत दिनों से झांसी पर आंख लगाए बैठे थे। इनमें सदाशिव राव होल्कर का नाम सबसे पहले आता।
रानी अपने इस दुश्मन को अच्छी तरह समझती थी। वह उससे पूर्णतया सावधान थी।
रानी पति की मृत्यु के बाद निष्कंटक होकर झांसी में राज्य कर रही थी।
उसने राजगद्दी पर दामोदर राव को बैठा रखा था। शासन सूत्र उसके हाथ में था। वह बड़ी कुशलता से राज्य का संचालन करती।
प्रजा और राज्य सभा में सबको प्रसन्न रखती। वह मृदुभाषिणी थी, इसीलिए प्रत्येक उसे श्रद्धा और आदर की दृष्टि से देखता।
सभी के लिए वह सम्मान की पात्री थी। उसमें देश-भक्ति थी जो उसकी सबसे बड़ी दासी थी।
रानी इक्कीस नवंबर अठारह सौ तिरेपन से लेकर छब्बीस फरवरी अठारह सौ चौव्वन तक। निर्विघ्न राज्य करती रही।
उसके सामने कोई भी बाधा नहीं आई।
हां ईस्ट इंडिया कंपनी से जवाब अब तक नहीं आया था। रानी को उसकी बेसब्री के साथ प्रतीक्षा थी। उसकी चिंता का यह एक मुख्य कारण था।