रानी किले में पहुंची

जिन भारतीय सैनिकों ने झांसी के किले में वहां स्थित अंग्रेजों का सफाया कर दिया था,

वे एक दिन रानी के पास आए और उनसे विनम्र प्रार्थना की कि रानी उनका साथ दे।

उसकी प्रेरणा से उन्हें नया बल मिलेगा। उन सैनिकों ने रानी से यह भी कहा कि वे विद्रोह में शामिल होने के लिए राजधानी देहली जाएंगे।

वहां जाकर अंग्रेजों से लोहा लेंगे। उनके दात खट्टे करेंगे।

पहले तो रानी ने उन्हें समझाया और झांसी में ही रहने की सलाह दी। लेकिन फिर वह दूसरी ओर मुड़ गयी। उसमें उन्हें देहली जाने की।

अनुमति दे दी। सैनिक खाली हाथ थे। उनके पास एक पैसा भी नहीं था। यह देख रानी ने लगभग एक लाख रुपये के जेवर उन सैनिकों के सुपर्द कर दिए कि यह पूंजी उनके रास्ते के खर्च में काम आएगी।

इससे सैनिकों का उत्साह चौगुना बढ़ गया। वे सब छाती ठोककर देहली की ओर चल पड़े।

रानी ने जब उस काफिले को कूच करते देखा तो उसे लगा कि कुछ दिन बाद ही इसी झांसी में युद्ध की आग बरसेगी।

एक ओर ईस्ट इंडिया कंपनी होगी और दूसरी ओर पूरी झांसी। खून की नदियां बहेंगी। लोथों पर लोथें गिरेंगी। आजादी सस्ती नहीं होती उसके भाल में खून का टीका लगता है।

रानी अपने सखी समाज के प्रशिक्षण में तनिक भी कमी नहीं होने देती। उनकी छोटी सी सेना रिहर्सल में रोज झांसी का मोर्चा बनाती।

उसे दुश्मन के हाथों से छीना जाता।

रानी सैन्य संचालन में बहुत ही कुशल थी।

उसे अपने पर भरोसा था, एक आत्मविश्वास।

वह देख रही थी कि कोई भी भारतीय ऐसा नहीं। जिसके हृदय में अंग्रेजों के लिए स्थान हो। गद्दार और देशद्रोहियों की बात और थी।

रानी किले में पहुंची।

उसने वहां अपना अधिकार कर लिया।

उसने शासन-सूत्र अपने हाथ में ले लिया। जिस समय किले में उसका दरबार लगा और वह गद्दी पर जाकर बैठी तो सिपाहियों ने नारे लगाए। खल्क खुदा का, मुल्क बादशाह का अमल महारानी झांसी का।

झांसी के बच्चे-बच्चे को प्रसन्नता थी कि उनके राजय में उनकी प्रिय रानी की सत्ता फिर हो गयी है।

लोग आपस में संगठित हो रहे थे। वे एकता के सूत्र में बंधने के इच्छुक थे। क्या हिंदू क्या मुसलमान, सभी अंग्रेजों से देश को बचाना चाहते थे।

राज्य की बागडोर हाथ में लेते हुए रानी ने सबसे पहले ध्यान अपने तोपखाने पर दिया।

बारूदखाने में बारूद की कमी नहीं थी। प्रशिक्षण जारी था। पुरुष ही नहीं महिलाएं भी जो किले में थीं वे अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थीं। रानी जानती थी कि कंपनी सरकार के पास जब यह खबर पहुंचेगी कि झांसी पर हुकूमत मेरी

हो गई है और वहां के किले में तैनात सभी अंग्रेज अफसर, भारतीय सिपाहियों द्वारा यमलोक पहुंचा दिए गए हैं तो आफत आएगी।

एक बार झांसी पर अंग्रेजों की चढ़ाई बड़े जोर से होगी। सुना है अंग्रेज बड़े जालिम हैं।

वे तोप के सामने खड़ा करके गोले से उड़ा देते हैं। वे जिंदा ही जला देते और फांसी पर लटका देते हैं। वे बड़े निर्दयी हैं, उन्हें किसी पर भी दया नहीं आती।

रानी ने इसीलिए युद्ध की सारी तैयारियां करनी आरंभ कर दीं। तेजी से हथियार बनने लगे।

रसद भी किले के अंदर इकट्ठी की जाने लगी। प्रबंध यह किया जा रहा था कि अगर अंग्रेजी सेना ने किले को चारों तरफ से घेर लिया तो किले के अंदर से ही ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा। कब तक घेरा डाले रहेंगे अंग्रेज! एक बार वह हार मानकर चले जाएंगे।

रानी ने बिठूर सहायता के लिए नानाराव को पत्र लिखा था।

इसके अलावा उसने दो एक पड़ोसी राज्यों से भी सहयोग की अपील की थी।

उसे आशा थी कि बिठूर से उसके लिए सैनिक सहायता जरूर आएगी।

इसीलिए वह प्रतीक्षा कर रही थी कि अवसर अब निकट है। अंग्रेजी सरकार कभी भी उस पर जुल्म बढ़ा सकती है।

रानी तनिक भी गाफिल नहीं थी। उसे उठते-बैठते, सोते-जागते और चलते-फिरते देश की चिंता थी।

उसे लग रहा था पूरा समूचा देश एक दिन अंग्रेजों के अधीन हो जाएगा क्योंकि इन फिरंगियों के पैर यहां जहां देखो थे वहीं जम रहे हैं। वे पक्के जादूगर हैं, जादूगर। सब्जबाग दिखलाकर वह आदमी की मन की बात पूछ लेते हैं।

रानी ने किले में युद्ध संबंधी सारी व्यवस्था कर रखी थी। वह एक क्षण भी व्यर्थ नहीं बैठती। कुछ न कुछ करती ही रहती।

रानी लक्ष्मीबाई अपने को अकेली नहीं समझती। उसकी धारणा थी कि सुंदर और मुंदर उसकी दोनों भुजाएं हैं, और काशी है उसके कदम। जिसके सम्मुख मंजिल स्वयं आकर खड़ी हो जाती रानी दामोदर राव पर जान देती।

उसकी इतनी अधिक देखरेख रखती कि एक क्षण भी उसे अपने से पृथक् नहीं करती। वह जानती थी कि दामोदर राव का जीवन कितना मूल्यवान है।

यदि वह न रहा तो कंपनी सरकार वह छः लाख रुपया ब्याज सहित कभी नहीं लौटाएगी जो ब्याज सहित दामोदर राव को बालिग होने पर देने के लिए कहा गया था।

रानी अंग्रेजों की कूटनीति को भलीभांति समझती थी।

वह कभी भी उनकी बातों में नहीं आती। करती भी वही जो उसके मन में आता।

वह अपनी योजना में भूत सी जुटी थी। उसे पूरी-पूरी आशंका थी कि कंपनी सरकार चुप नहीं बैठेगी।

वह झांसी के किले पर हमला करेगी, सैनिकों को कुचल देगी। उसमें बहुत बड़ी ताकत है।

रानी आजादी की लड़ाई के लिए प्रत्येक का सहयोग चाहती थी। और वह सहयोग उसे लगभग अस्सी प्रतिशत प्राप्त था।

उसका अपना व्यक्तित्व निराला था। जो भी एक बार उसे देख लेता प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।