रानी को क्रोध आया

सत्ताईस फरवरी अठारह सौ चौव्वन में ईस्ट इंडिया कंपनी का एक आदेश रानी लक्ष्मीबाई को मिला

जिसे सुनकर वह चौंक गई और उसे अत्यंत क्रोध आया; किंतु किसी तरह उसने परिस्थिति पर काबू पाया।

कंपनी सरकार ने रानी को यह आज्ञा दी थी कि उसे मासिक वृत्ति पांच हजार रुपए महीने की दी जाएगी।

वह किला छोड़ दे और नगर के महल में रहे। दामोदर राव को जो राजा ने गोद लिया है, वह कंपनी स्वीकार नहीं करती है।

निःसंतान राजा की मृत्यु पर रियासत कंपनी सरकार अपने राज्य में मिला लेती है।

रानी ने बड़ी कोशिश की, पोलिटिकल एजेण्ट से बात की; लेकिन उसे पुत्र गोद की स्वीकृति न मिली।

दामोदर राव को नाबालिग करार करके राज्य की देख-रेख कंपनी सरकार करने लगी।

झांसी का राज्य बुंदेलखंड के पोलिटिकल एजेण्ट के सुपुर्द कर दिया गया।

रानी को पांच हजार रुपया महीना देना मंजूर किया गया। रानी को इससे बहुत दुःख हुआ; लेकिन क्या करती, विवश थी।

उसने इस विषय पर बहुत सोचा, खूब विचार किया।

उसके अंतःकरण ने कहा कि मैं अपनी झांसी अंग्रेजों को कभी नहीं दूंगी। उनकी चाल मुझे मालूम है। उनकी नीयत अच्छी नहीं है।

रानी यह भी जानती थी कि अंग्रेज बड़े धूर्त हैं उनके साथ युद्ध और हठधर्मी से काम नहीं चलेगा।

उनके साथ चाणक्य नीति ही सफल हो सकती है। अभी जो कुछ कंपनी का आदेश आया। मुझे वह स्वीकार कर लेना चाहिए इसी में राजा और प्रजा दोनों की भलाई है।

इस तरह रानी ने धैर्य से काम लिया। उसने समाई के बूंट पिए और पोलिटिकल एजेण्ट से कह दिया कि मुझे कंपनी सरकार का प्रस्ताव मंजूर है।

कहने को तो रानी ने पोलिटिकल एजेंट से यह कह दिया लेकिन उसकी आत्मा भीतर ही भीतर उसे धिक्कारती रही, मन कायल करता रहा उसे कि लक्ष्मीबाई तुमने यह क्या किया; लेकिन रानी को संतोष था कि इस समय उसने युक्ति से काम लिया है।

उग्र होने से काम बिगड़ सकता था।

क्योंकि ईस्ट इंडिया कंपनी प्रार्थनाओं को ठुकरा देती।

न्याय की मांगों को सुनी अनसुनी कर जाती उस पर किसी को विश्वास नहीं होता। रानी जानती थी कि कंपनी सरकार जो चाहेगी वह करके रहेगी।

इसलिए उसने चाणक्य नीति से काम लिया था।

उसने मासिक वृत्ति स्वीकार कर ली।

उसमें तनिक भी मीन-मेख नहीं थी, क्योंकि अंग्रेजों की कूटनीति को वह भली प्रकार जानती थी।

रानी अब बहुत अधिक गंभीर रहने लगी थी।

उसे लगता कि एक दिन झांसी अंग्रेजों को हाथ में चली जाएगी। उनका षड्यंत्र ही कुछ इस प्रकार का है।

वह अपनी दासियों से अपने मन की बात कहती तो चित्त का बोझ कुछ हल्का हो जाता और वह ठंडी सांस लेकर सोचने लगती कि भविष्य के पर्दे में या तो निर्माण खड़ा हो मुस्करा रहा होगा या विनाश की बांहें फैल रही होंगी।

भारत का भाग्य डगमगा रहा है न जाने किश्ती पार लगेगी या नाव बीच भंवर में ही डूब जाएगी।

रानी दुश्चिंताओं से भरी रहती।

वह कभी निश्चिंत होकर नहीं बैठती।

उसके मन में एक बात आती तो दूसरी जाती। पति की मृत्यु के बाद उसने एक नए संसार की कल्पना की थी, जिसमें वह राजमाता थी और पुत्र दामोदर राव की संरक्षिका भी।

वह रानी अवश्य कही जाएगी; लेकिन राज-माता के पद पर आसीन न होगी।

ईस्ट इंडिया कंपनी की गोरी फौज जो झांसी में रहती है और जिसका खर्च राज्य देता है।

दामोदर राव जब तक वयस्क होगा, तब तक यहां की दुनिया ही बदल जाएगी। नागरिक मेरे साथ हैं, सामंत भी सिर झुकाते हैं। उसे शक था केवल पोलिटिकल एजेण्ट पर। कि यह आदमी मन का काला है, मन की बात नहीं बतलाता।

रानी ने अभी किला नहीं छोड़ा था।

वह तनिक भी नहीं घबड़ायी।

उसने धैर्यपूर्वक काम लिया। अबला होने पर भी वह साहस नहीं हारी। वह जीवन में केवल दो बार रोई थी।

उस दिन, जिस दिन उसकी गोद खाली हुई। फिर तब, जब उसकी मांग का सिंदूर धुल गया, उसकी चूड़ियां फोड़ दी गईं। वह जब अधिक चिंतित होती तो गंभीर दिखलाई देती। वह दूर तक देखती।

उसका मन हवा को मंजिल बनाता। वह उग्र हो उठती और उसे अंग्रेजों की नीति पर बरबस क्रोध आ जाता।

रानी को अब पूरी नींद नहीं आती। वह सोते-सोते चौंक जाती।

आंखें खोल सोचने लगती। उस पर दामोदर राव का का भार था। वह झांसी का कर्तव्य निभाना नहीं भूलती।

उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई। ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार ने दामोदर राव को गोद लेने की अनुमति नहीं दी। उसने यह भी स्वीकार नहीं किया कि रानी झांसी का शासन-सूत्र संभाले।

सुंदर, मुंदर और काशी। ये तीनों रानी की भुजाएं थीं।

रानी को उन पर गर्व था; किंतु शक्ति की बात मन में आते ही रानी यह सोचने लगती कि तिनका तूफान से टक्कर नहीं ले सकता। अंग्रेजों की फौज बहुत बड़ी है।

उसके लिए युक्ति चाहिए, शक्ति नहीं। तदबीर से तकदीर बदली जाती है, आदमी यह शुरू से कहता आया है।

रानी विचारों में जब खोती, तो घंटों खोयी ही रहती।

उसे लगता कि उसके सामने दलदल है। दलदल उबल रहा है, उसमें बुलबुले उठ रहे हैं।

उसका एक नहीं, दोनों पैर उसमें फंस गए हैं। वह उससे निकलने का प्रयत्न करती है, लेकिन अफसोस! वह उलझती जा रही है। उसकी उलझन उसके लिए समस्या हो रही है।