एक गांव में एक सुस्त और कामचोर आदमी रहता था।
काम - धाम तो वह कोई करता न था, हां बातें बनाने में बड़ा माहिर था।
इसलिए लोग उसे शेखचिल्ली कहकर पुकारते थे।
शेखचिल्ली के घर की हालत इतनी खराब थी कि महीने में बीस दिन चूल्हा नहीं जल पाता था।
शेखचिल्ली की बेवकूफी और सुस्ती की सजा उसकी बीवी को भी भुगतनी पड़ती और भूखे रहना पड़ता।
एक दिन शेखचिल्ली की बीवी को बड़ा गुस्सा आया।
वह बहुत बिगड़ी और कहा,"अब मैं तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुनना चाहती। चाहे जो कुछ करो, लेकिन मुझे तो पैसा चाहिए।
जब तक तुम कोई कमाई करके नहीं लाओगे, मैं घर में नहीं, घुसने दूंगी।"यह कहकर बीवी ने शेखचिल्ली को नौकरी की खोज में जाने को मजबूर कर दिया।
साथ में, रास्ते के लिए चार रूखी - सूखी रोटियां भी बांध दीं।
साग - सालन कोई था ही नहीं, देती कहाँ से ? इस प्रकार शेखचिल्ली को न चाहते हुए भी नौकरी की खोज में निकलना पड़ा।
फिर भी एक गांव से दूसरे गांव तक दिन भर भटकते रहे।
घर लौट नहीं सकते थे, क्योंकि बीवी ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक नौकरी न मिल जाए, घर में पैर न रखना।
दिन भर चलते - चलते जब शेखचिल्ली थककर चूर हो गए तो सोचा कि कुछ देर सुस्ता लिया जाए।
भूख भी जोरों की लगी थी, इसलिए खाना खाने की बात भी उनके मन में थी।
तभी कुछ दूर पर एक कुआं दिखाई दिया। शेखचिल्ली को हिम्मत बंधी और उसी की ओर बढ़ चले। कुएं के चबूतरे पर बैठकर शेखचिल्ली ने बीवी की दी हुई रोटियों की पोटली खोली।
उसमें चार रूखी - सूखी रोटियां थीं।
भूख तो इतनी जोर की लगी थी कि उन चारों से भी पूरी तरह न बुझ पाती।
लेकिन समस्या यह भी थी कि अगर चारों रोटियों आज ही खा डालीं तो कल - परसों या उससे अगले दिन क्या करूंगा, क्योंकि नौकरी खोजे बिना घर घुसना नामुमकिन था।
इसी सोच-विचार में शेखचिल्ली बार - बार रोटियां गिनते और बारबार रख देते।
समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए।
जब शेखचिल्ली से अपने आप कोई फैसला न हो पाया तो कुएं के देव की मदद लेनी चाही। वह हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले,"हे बाबा, अब तुम्हीं हमें आगे रास्ता दिखाओ।
दिन भर कुछ भी नहीं खाया है। भूख तो इतनी लगी है कि चारों को खा जाने के बाद भी शायद ही मिट पाए।
लेकिन अगर चारों को खा लेता हूँ तो आगे क्या करूंगा? मुझे अभी कई दिनों यहीं आसपास भटकना है।
इसलिए हे कुआं बाबा, अब तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करूं! एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं चारों खा जाऊं ?"लेकिन कुएं की ओर से कोई जवाब नहीं मिला।
वह बोल तो सकता नहीं था, इसलिए कैसे जवाब देता!
उस कुएं के अन्दर चार परियां रहती थीं।
उन्होंने जब शेखचिल्ली की बात सुनी तो सोचा कि कोई दानव आया है जो उन्हीं चारों को खाने की बात सोच रहा है।
इसलिए तय किया कि चारों को कुएं से बाहर निकालकर उस दानव की विनती करनी चाहिए, ताकि वह उन्हें न खाए। यह सोचकर चारों परियां कुएं से बाहर निकल आई।
हाथ जोड़कर वे शेखचिल्ली से बोलीं,"हे दानवराज, आप तो बड़े बलशाली हैं! आप व्यर्थ ही हम चारों को खाने की बात सोच रहे हैं।
अगर आप हमें छोड़ दें तो हम कुछ ऐसी चीजें आपको दे सकती हैं जो आपके बड़े काम आएंगी।"परियों को देखकर व उनकी बातें सुनकर शेखचिल्ली हक्के - बक्के रह गए। समझ में न आया कि क्या जवाब दे।
लेकिन परियों ने इस चुप्पी का यह मतलब निकाला कि उनकी बात मान ली गई।
इसलिए उन्होंने एक कठपुतला व एक कटोरा शेखचिल्ली को देते हुए कहा,"हे दानवराज, आप ने हमारी बात मान ली, इसलिए हम सब आपका बहुत - बहुत उपकार मानती हैं।
साथ ही अपनी यह दो तुच्छ भेंटें आपको दे रही हैं।
यह कठपुतला हर समय आपकी नौकरी बजाएगा। आप जो कुछ कहेंगे, करेगा।
और यह कटोरा वह हर एक खाने की चीज आपके सामने पेश करेगा, जो आप इससे मांगेंगे।"इसके बाद परियां फिर कुएं के अन्दर चली गई।
इस सबसे शेखचिल्ली की खुशी की सीमा न रही।
उसने सोचा कि अब घर लौट चलना चाहिए।
क्योंकि बीवी जब इन दोनों चीजों के करतब देखेगी तो फूली न समाएगी।
लेकिन सूरज डूब चुका था और रात घिर आई थी, इसलिए शेखचिल्ली पास के एक गांव में चले गए और एक आदमी से रात भर के लिए अपने यहाँ ठहरा लेने को कहा।
यह भी वादा किया कि इसके बदले में वह घर के सारे लोगों को अच्छे - अच्छे पकवान व मिठाइयां खिलाएंगे। वह आदमी तैयार हो गया और शेखचिल्ली को अपनी बैठक में ठहरा लिया।
शेखचिल्ली ने भी अपने कटोरे को निकाला और उसने अपने करतब दिखाने को कहा।
बात की बात में खाने की अच्छी - अच्छी चीजों के ढेर लग गए।
जब सारे लोग खा - पी चुके तो उस आदमी की घरवाली जूठे बरतनों को लेकर नाली की ओर चली।
यह देखकर शेखचिल्ली ने उसे रोक दिया और कहा कि मेरा कठपुतला बर्तन साफ कर देगा।
शेखचिल्ली के कहने भर की देर थी कि कठपुतले ने सारे के सारे बर्तन पल भर में निपटा डाले।
शेखचिल्ली के कठपुतले और कटोरे के यह अजीबोगरीब करतब देखकर गांव के उस आदमी और उसकी बीवी के मन में लालच आ गया शेखचिल्ली जब सो गए तो वह दोनों चुपके से उठे और शेखचिल्ली के कटोरे व कठपुतले को चुराकर उनकी जगह एक नकली कठपुतला और नकली ही कटोरा रख दिया।
शेखचिल्ली को यह बात पता न चली।
सबेरे उठकर उन्होंने हाथ - मुंह धोया और दोनों नकली चीजें लेकर घर की ओर चल दिए।
घर पहुंचकर उन्होंने बड़ी डींगें हांकी और बीवी से कहा,"भागवान, अब तुझे कभी किसी बात के लिए झींकना नहीं पड़ेगा।
न घर में खाने को किसी चीज की कमी रहेगी और न ही कोई काम हमें - तुम्हें करना पड़ेगा।
तुम जो चीज खाना चाहोगी, मेरा यह कटोरा तुम्हें खिलाएगा और जो काम करवाना चाहोगी मेरा यह कठपुतला कर डालेगा।"लेकिन शेखचिल्ली की बीवी को इन बातों पर विश्वास न हुआ।
उसने कहा,"तुम तो ऐसी डींगे रोज ही मारा करते हो। कुछ करके दिखाओ तो जानूं।"हां, क्यों नहीं ?"शेखचिल्ली ने तपाक से जबाव दिया और कटोरा व कठपुतलें में अपने - अपने करतब दिखाने को कहा।
लेकिन वह दोनों चीजें तो नकली थीं, अत: शेखचिल्ली की बात झूठी निकली।
नतीजा यह हुआ कि उनकी बीवी पहले से ज्यादा नाराज हो उठी। कहा,"तुम मुझे इस तरह धोखा देने की कोशिश करते हो।
जब से तुम घर से गए हो, घर में चूल्हा नहीं जला है।
कहीं जाकर मन लगाकर काम करो तो कुछ तनखा मिले और हम दोनों को दो जून खाना नसीब हो।
इन जादुई चीजों से कुछ नहीं होने का।"
बेबस शेखचिल्ली खिसियाए हुए - से फिर चल दिए। वह फिर उसी कुएं के चबूतरे पर जाकर बैठ गए।
समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। जब सोचते - सोचते वह हार गए और कुछ भी समझ में न आया तो उनकी आंखें छलछला आई और रोने लगे।
यह देखकर कुएं की चारों परियां फिर बाहर आयी और शेखचिल्ली से उनके रोने का कारण पूछा। शेखचिल्ली ने सारी आपबीती कह सुनाई।
परियों को हंसी आ गई। वे बोलीं,"हमने तो तुमको कोई भयानक दानव समझा था।
और इसलिए खुश करने के लिए वे चीजें दी थीं।
लेकिन तुम तो बड़े ही भोले - भाले और सीधे आदमी निकले। खैर, घबराने की जरूरत नहीं। हम तुम्हारी मदद करेंगी।
तुम्हारा कठपुतला और कटोरा उन्हीं लोगों ने चुराया है, जिनके यहाँ रात को तुम रुके थे। इस बार तुम्हें एक रस्सी व डंडा दे रही हैं।
इनकी मदद से तुम उन दोनों को बांध व मारकर अपनी दोनों चीजें वापस पा सकते हो।"इसके बाद परियां फिर कुएं में चली गयीं।
जादुई रस्सी - डंडा लेकर शेखचिल्ली फिर उसी आदमी के यहाँ पहुंचे और कहा,"इस बार मैं तुम्हें कुछ और नये करतब दिखाऊंगा।
"वह आदमी भी लालच का मारा था। उसने समझा कि इस बार कुछ और जादुई चीजें हाथ लगेंगी।
इसलिए उसमें खुशीखुशी शेखचिल्ली को अपने यहाँ टिका लिया। लेकिन इस बार उल्टा ही हुआ।
शेखचिल्ली ने जैसे ही हुक्म दिया वैसे ही उस घरवाले व उसकी बीवी को जादुई रस्सी ने कस कर बांध लिया और जादुई डंडा दनादन पिटाई करने लगा।
अब तो वे दोनों चीखने - चिल्लाने और माफी मांगने लगे।
शेखचिल्ली ने कहा,"तुम दोनों ने मुझे धोखा दिया है।
मैंने तो यह सोचा था कि तुमने मुझे रहने को जगह दी है, इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ कोई भलाई कर दूं।
लेकिन तुमने मेरे साथ उल्टा बर्ताव किया! मेरे कठपुतले और कटोरे को ही चुरा लिया।
अब जब वे दोनों चीजें तुम मुझे वापस कर दोगे, तभी मैं अपनी रस्सी व डंडे को रुकने का हुक्म दूंगा।"उन दोनों ने झटपट दोनों चुराई हुई चीजें शेखचिल्ली को वापस कर दीं।
यह देखकर शेखचिल्ली ने भी अपनी रस्सी व डंडे को रुक जाने का हुक्म दे दिया।
अब अपनी चारों जादुई चीजें लेकर शेखचिल्ली प्रसन्न मन से घर को वापस लौट पड़े।
जब बीवी ने फिर देखा कि शेखचिल्ली वापस आ गए हैं तो उसे बड़ा गुस्सा आया।
उसे तो कई दिनों से खाने को कुछ मिला नहीं था, इसलिए वह भी झुंझलाई हुई थी। दूर से ही देखकर वह चीखी,"कामचोर तुम फिर लौट आए! खबरदार, घर के अंदर पैर न रखना! वरना तुम्हारे लिए बेलन रखा है।
"यह सुनकर शेखचिल्ली दरवाजे पर ही रुक गए! मन ही मन उन्होंने रस्सी व डंडे को हुक्म दिया कि वे उसे काबू में करें।
रस्सी और डंडे ने अपना काम शुरू कर दिया। रस्सी ने कसकर बांध लिया और डंडे ने पिटाई शुरू कर दी।
यह जादुई करतब देखकर बीवी ने भी अपने सारे हथियार डाल दिए और कभी वैसा बुरा बर्ताव न करने का वादा किया।
तभी उसे भी रस्सी व डंडे से छुटकारा मिला।
अब शेखचिल्ली ने अपने कठपुतले व कटोरे को हुक्म देना शुरू किया।
बस, फिर क्या था! कठपुतला बर्तन - भाड़े व जिन - जिन चीजों की कमी थी झटपट ले आया और कटोरे ने बात की बात में नाना प्रकार के व्यंजन तैयार कर दिए।