शेख चिल्ली को नींद नहीं आई।
फातिमा बीबी ने उस शाम शेख को अम्मी को एक तरबूज दिया था, जो वो इत्तफाक से घर लाना भूल गयीं।
बस शेख उसी तरबूज के बारे में ही सोचता रहा।
पूरे पिछले हफ्ते अम्मी रोजाना कई घंटों के लिए फातिमा बीबी के यहां उनकी बड़ी लड़की की शादी की तैयारियों में मदद करने को जाती थीं।
और हर शाम अम्मी शेख के लिए फातिमा बीबी द्वारा दी गईं चीजे लाती थी। पहले दिन वो रसीले गुलाब जामुन लाथीं थीं।
उसके बाद में खीर और फिर केले। आज अम्मी को एक बड़ा तरबूज मिला था।
शेख के मुंह में तरबूज के बारे में सिर्फ सोच कर ही पानी आने लगा! अम्मी को तरबूज का बजन बहुत भारी लगा इसलिए वो उसे फातिमा बीबी के घर के आंगन में ही छोड आयी।
शेख सुबह जाकर तरबूज को ला सकता था। परंतु वो तो तरबूज अभी खाना चाहता था। अभी! तुरंत! उसका भूखा पेट उसे आदेश दे रहा था।
शेख उठा।
अम्मी अभी गहरी नींद में सोई थीं।
उसने चुपचाप, रात के अंधेरे में और गांव की सुनसान गलियों में फातिमा बीबी के घर की ओर चलना शुरू किया।
जैसे ही वो आंगन की चारदोबारी पर से कूदा उसे सामने अपना तरबूज पड़ा हुआ दिखाई दिया। तरबूज कोयले के एक ढेर के ऊपर पड़ा हुआ था।
वो बस तरबूज को उठा कर चलने वाला ही था कि उसे घर के अंदर से आती कछ आबाजें सुनाई पडीं। वहां कौन हो सकता हैं ?
घर तों खाली था। पूरा परिवार तो पास के गांव में रिश्तेदारी में गया हुआ था।
क्या वे सब जल्दी लौटकर वापिस आ गए थे ?
फिर उनके घर के बाहर ताला क्यों लगा हुआ था ?
शेख इन सब बातों के बारे में सोच रहा था तभी उसे अपनी ओर आते कुछ कदम सुनाई पड़े।
“हाय राम!” कराहने को आवाज आई।
वो आवाज लल्लन की थी।
उसे पहचानने में शेख को कोई दिक्कत नहीं हुई।
“मैं उस बेबकूफ शेख चिल्ली को मार डालूंगा! उसकी वजह से ही मेरे पिता ने मुझे इतनी बुरी तरह मारा है कि मेरी हड्डी-हड्डी दुख रही है! और अब खिड़की से घुसते हुए टूटे हुए कांच से मेरा हाथ कट गया है।”
अब कराहना बंद भी करों!” एक दबी सी आवाज आई। शेख इस आवाज को नहीं पहचान सका।
जैसे ही वो दोनों लोग सामने आए शेख कोयले के बोरों के पीछे छिप गया।
वो कोयलों के बोरों के बीच की झिरी में से उन्हें देखता रहा। लल्लन के साथ कोई बुरी नियत वाला अजनबी था जिसे शेख ने बाजार में घूमते हुए देखा था।
लल्लन एक थैले में कुछ भर कर ले जा रहा था।
जल्दी करों,” अजनबी ने कहा। “चलो, फटाफट माल को बांट लेते हैं।"
जब अजनबी ठीक बोरों के सामने अपनी पीठ करके बेठ गया तो शेख बेचारा बहुत घबराया।
अजनबी ने थैले को लल्लन से छीना और उसके अंदर के सारे माल को जमीन पर उंडेल दिया।
गले के हार, सोने और चांदी की चूडियां, चांदी के गिलास और सोने के सिक्के, हल्की चांदनी में झिलमिलाने लगे। शेख उन सब गहनों को ताकता रहा। उसे मालूम था कि फातिमा बीबी ने उन्हें अपनी लड़की की शादी के लिए इकट्ठा किया था।
अम्मी ने शेख को उनमें से हर एक के बारे में बताया था! और अब यह दोनों लोग उन गहनों को चुरा रहे थे !
“तुमने आधे से ज़्यादा हिस्सा ले लिया है!” लल्लन ने कंमजोर आवाज में अपना विरोध दर्शाया।
उसके बाद उस अजनबी ने लूट का थोड़ा सा और माल उसकी ओर बढ़ा दिया।
“गनीमत हैं कि तुम्हें इतना भी माल मिल रहा हैं!” अजनबी
घुर्राया । “मेरे बिना तो तुम्हारी घर में चोरी करने की हिम्मत ही नहीं होती!“यह घर भुतहा है," लल्लन ने फुसफुसाते हुए इधर-उधर बेचेनी से देखते हुए कहा। “कुछ लोग अब भी इस घर को भुतहा मानते हैं।”
“तो चलो इससे पहले कि भूत हमें पकड़े हम यहां से भाग लेते हैं।" अजनबी हंसा।
उसकी हंसी में चालाकी छिपी थी। “ अगर तुम लूट का कुछ और माल चाहते हों तो अपने साथ उस तरबूज को भी ले जाओ! ”
अजनबी ने कोई तीन-चौथाई सोने और चांदी को थैले में भरा । बाकी को अपनी जेबों में भरते समय वो कुछ बुदबुदा रहा था। लल्लन ने खड़े होकर तरबूज को उठाने की कोशिश करी।
परंतु बोरों के पीछे से शेख चिल्ली भी तब तक खड़ा हो गया था और तरबूज को अपनी पूरी त्तकत से पकड़े हुए था! जैसे ही शेख की उंगलियां, लल्लन की उंगलियों से तकरायी वैसे ही वो लल्लन को अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा धक्का लगा!
“भूत!" वो बुदबुदाया। “भू... भूत!”
शेख बोरों से टिककर तरबूज को कसकर पकडें रहा। कोयले के दो बोरे अचानक लुढ़के और लल्लन और उस अजनबी के ऊपर जाकर गिरे ।
अब लल्लन ने सारी सावधानी को ताक पर रख दिया।
“भूतः” वो जोर से चिल्लाया।
“भूत!" डरा हुआ शेख चिल्ली भी जोर से घिल्लाया। “भूत! चोर! भूत!”
इससे पहलों कि दोनों चोर भाग पाते भीड़ जमा हो गई।
कोयले की धूल में सने दोनों चोरों को कोतवाली ले जाया गया।
लल्लन अभी भी बुदबुदा रहा था, “भूत! 'भूत!
एक पड़ोसी फातिसा बीबी के परिवार के वापिस आने तक लूट के गहनों की पहरेदारी करता रहा।
शेख को लोग हीरो जैसे उसके प्यारे तरबूज के साथ घर बापिस पहुंचाने के लिए गए।