अब शेख चिल्ली के दूसरी नौकरी दूंढने का समय आ गया था।
काजी से मिले सारे पैसे अब धीरे-धीरे करके खर्च हो गए थे।
एक दिन वो सुबह के समय पास के शहर की ओर चला। सड़क पर उसके आगे एक छोटे कद का आदमी, सिर पर एक बड़ा पीपा रख कर जा रहा था। वो पसीने से एकदम लथपथ हो गया था।
“सुनो,” उसने शेख को पास से गुजरते समय कहा। “अगर तुम इस घी के पीपे को शहर तक ले जाओगे तो में इसको लिए तुम्हें दो आने दूंगा।"
कुछ पैसे कमाने को खुशी में शेख ने पीपे को अपने सिर पर रख लिया और चलने लगा। इन दो आनों से मैं कुछ मुर्गी के चूजे खरीदूंगा, उसने सोचा। जब वो चूजे बड़े हो जाएंगे तो मेरे पास बहुत सारी मुर्गियां और अंडे होंगे।
उन अंडों को बेचकर मैं मालामाल हो जाऊंगा! फिर मैं गांव का सबसे आलीशान मकान खरीदूंगा और दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की के साथ शादी करूंगा! फिर अम्मी को कभी काम करने की जुरूरत नहीं पड़ेगी।
वो और मेरी बेगम आराम से रानियों की तरह बैठी रहेंगी और उनकी सेवा के लिए चालीस नौकरानियां होंगी! मैं पूरे दिन पतंग उड़ाया करूंगा -- बड़ी- बड़ी, रंग-बिरंगी पतंगे, जो खास मेरे लिए ही बनी होंगी।
सारा गांव मुझे पतंग उड़ाता हुआ देखने के लिए इकट्ठा होगा - फर्र, फर्र!
अपनी सोच में पूरी तरह मगन शेख ने काल्पनिक पतंग को उड़ाने के लिए अपने दोनों हाथों को हवा में लहराया।
उससे घी का पीपा धड़ाम से जमीन पर आ गिरा और सारा घी बह गया !
“बेवकूफ! तुमने यह क्या किया ?”
वो छोटा आदमी चिल्लाया। तुमने तीस रूपए के घी को पानी की तरह बहा दिया!"
“तीस रूपए कौन सी बड़ी रकम है, पर मेरी तो किस्मत हीं लुट गई," शेख ने दुखी होते हुए कहा। “मैं तो पूरी तरह तबाह हो गया!”
वो आदमी गुस्से में आग बबुला होकर चला गया। शेख भी चलते-चलते एक बडे घर के गेट के पास पहुंचा जहां एक घोड़ा-गाड़ी खड़ी थी।
“कोचवानजी, " शेख ने घोड़ा-गाड़ी-के चालक को संबोधित करते हुए कहा, “क्या आप बता सकते हैं कि मुझे कहां नौकरी मिल सकती है ? में कोई भी काम करने को तैयार हंं।”
“तुम अंदर जाकर कोशिश करो," कोचवान ने कहा, “मुझे लगता है कि रसोइए को एक मददगार की तलाश है।"
शेख घर का चक्कर लगाकर पीछे गया और वहां जाकर रसोइए से मिला। शेख को नौकरी मिल गई। वो पूरे दिन भर सब्जी काटता रहा और बर्तन मांजता रहा।
रात तक वो थककर एकदम पस्त हो गया और उसे जोर की भूख लगी।
“यह लो!" रसोइए ने शेख को ओर दो सूखी रोटो और कुछ अचार फेंकतें हुए कह़ा।
“तुम चाहो तो मेरे कमरे के बाहर सो सकते हो, परंतु सुबह पौं फटते ही उठ जाना। इस घर में सुबह तड़के हो काम शुरू हो जाता है।”
शेख लेटते हो खर्राटें भरने लगा। आधी रात को भूख के कारण उसकी नींद खुल गई।
उसने दुबारा सोने को बंहुते कोशिश की परंतु भूख ने उसे जगाए रखा। अंत में उसने रसोइए के कमरे में झांक कर देखा। रसोइए का कमरा खाली था पर उसे बाहर बाग में से कुछ आवाजें सुनाई दीं। शेख ने थोड़ा करीब जाकर देखा।
रसोइया और माली आपस में चुपचाप बातचीत कर रहे थे। उन दोनों के बीच में नींबूओं का एक ढेर पड़ा था।
“इस बार मुझे एक अच्छा खरीदार मिल गया है,” शेख ने माली को कहते हुए सुना। “अभी तक हमें जो कीमत मिल रही थी वो उससे दुगना मूल्य देगा!”
“अच्छा!” रसोइए ने कहा। “तुम बेफिक्र रहो। बूढ़ी औरत को कोई भी शक नहीं है।"
शेख ने उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए गले से कुछ आवाज निकाली। दोनों चोर उसे देखकर एकदम घबराए!
“मुझे बहुत भूख लगी है," शेख ने कहा। “भूख के मारे मैं सो नहीं सका।"
क्या शेखर को वाकई भूख लगी थी या वो अपना मुंह चुप रखने के लिए कूछ पैसे चाहता था ?
रसोइए को कुछ समझ में नहीं आया। उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और उसे दे दिए। "किसी से एक शब्द भी नहीं कहना!" उसने गुर्रा कर कहा। “अब जाओ!”
“मैं जा रहा हूं,” शेख ने कहा। परंतु वो आधी रात को अपने लिए खाना कहां से खरीदेगा ? यो गेट की ओर घलते समय सोते हुए कोचवान से टकरा गया। कोचवान जाग गया और उसने शेख से जाने का कारण पूछा।
शेख ने कोचवान को पूरी कहानी सुनाई। “अच्छा तो ये दोनों इस खुराफात में लगे थे।"
कोचवान ने कहा। “मुझे इन पर पहले से ही शक था। सुबह को मैं पहला काम यह करूंगा - बीबीजी को बताऊंगा कि उन्होंने अपने घर में दो चोर पाले हुए हैं! मैं यह पक्का करूंगा कि वो इन दोनों चोरों को निकाल दें।"
और वहीं हुआ! शेख को चोरों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए पचास रूपयों का इनाम मिला। उनकी जगह एक नए रसोइए और माली को रखा गया।
शेख को रसोइए के मददगार की जगह कोचवान का सहायक बनाया गया।
कुछ दिनों में शेख गाडी चलाना सीख गया और अब कोचवान जब भी छुट्टी पर जाता तो शेख घोड़ा-गांडी को चलाता। शेख बीबीजी को जहां वो कहतीं घुमाने के लिए ले जाता।
फिर बीबीजी का बेटा और उसकी जहू उनके साथ रहने के लिए आ गए और उनके आने से शेख एक बार फिर मुसीबत में फंस गया!
“सीधे बैठो!” बीबीजो के नैजवान बेटे ने शेख को आदेश दिया। संभाल कर गाड़ी चलाओ और अपने मुंह को बंद रखो। मुझे ढीले-ढाले, बातूनी ड्राइवर बिल्कुल नापसंद हैं ।
जी, सरकार!" शेख ने कहा और दिए गए आदेशों का पालन करने लगा।
एक शाम को वो मियां-बीबी को बाजार ले गया। गलती से घर आते समय महिला ने अपना बटुआ गिरा दिया। शेख ने बटुआ गिरते हुए देखा परंतु क्योंकि उससे हर समय बिल्कुल चुप रहने को कहा गया था इसलिए वो कुछ भी नहीं बोला।
“गधे, बेवकूफ! मालिक चीखा जब उन्हें पता चला कि शेख ने बटुए को गिरते हुए देखा था। “ भविष्य में तुम जब भी किसी भी चोज को गिरते हुए देखो तो उसे उठा लेना। समझे ?”
“जी ससकार,” शेख ने कहा।
कुछ दिनों बाद उसका मालिक कुछ मेहमानों के साथ बैठ था जब शेख एक बंडल को लेकर कमरे में घुसा।
“सरकार, यह सड़क पर गिरा हुआ था," उसने मेज पर बंडल को रखते हुए कहा। “इसलिए आपके आदेशानुसार मैं इसे उठा कर लाया हूं।”
“इसके अंदर कया है?” एक मेहमान ने पूछा। शेख ने बंडल को खोला। बंडल के अंदर घोड़ें की लोद थी, जो घोड़े ने गिराई थी। मालिक की अज्ञानुसार शेख उसे उठा लाया था!
“जाओ!” मालिक अपने मेहमानों के सामने 'लज्जित होते हुए चिल्लाया। “इसी क्षण मेरा घर छोड़ कर जाओ। में तुम्हें नोकरी से निकालता हूं!”
एक और नौकरी का अंत - वो भी कोई गलती किए बिना, शेख ने सोचा। परंतु उसने चार महीनों की तनख्वाह बचाई थी और बीबीजी नें उसे बतौर इनाम पचास्र रूपए दिए थे। यह सोचकर शेख खुश हो गया।
अम्मी जुरूर खुश होंगी। यह सोचते हुए वो घर की ओर रवाना हुआ। इन पैसों से वो बहुत सारे चूजे खरीद सकंगा। जल्दी ही चूजे बड़े होकर मुर्गियां बन जाएंगी। इस तरह दिन में सपने संजोते हुए वो आराम से आगे बढ़ा।