किस्सा काजी का - 2

शेखचिल्ली की कहानी - Shekh Chilli Ki Kahani

तुमने इस आदमी को नौकरी से क्यों नहीं निकाला ?”

काजी की परेशान बीबी ने रत को उनसे पूछा।

मैं अपना कान कूटरवाऊँ और इस हरामखोर को एक साल की तनख्वाह भी दूं और साथ में पूरे शहर का मजाक भी बनूं ! में ऐसा कभी नहीं करूंगा।”

“तब तुम एक काम करो।

एक और नौकर ढदूंढो,” बीबी ने गुस्से में कहा। “और इस बेशकीमती शेख चिल्ली को तुम सिर्फ अपने काम को लिए ही रखो।”

“बहुत अच्छा," काजी ने कहा। “तुम शेख चिल्लीं को अब से कम-से-कम खाना देना।

बस इतना खाना देना कि वो मरे नहीं। में उसे रोजाना अपने साथ कचहरी ले जाया करूंगा। देखते हैं कि यों बिना काम और भोजन के कितने दिन जिंदा रह पाता है।”

परंतु काजी को जल्दी हीं अपनी गलती का अहसास हो गया। शेख कचहरी के बाहर बैठे-बैठे, दिन में सपने देखता या फिर और लोगों से गप्पे लगाने में काफी खुश था।

जब लोगों को यह पता चला कि उसे इतना कम खाना मिलता है तो लोगों ने ख़ुद उसे अपना भोजन देना शुरू कर दिया!

एक दिन काजी की पत्ली ने नए नौकर के हाथ कचहरी में काजी के लिए एक संदेश भेजा।

उन्हें आटा खरीदने के लिए तुरंत कुछ पैसों को जरूरत थी। दरबान ने नौकर को कचहरी के अंदर घुसने नहीं दिया। “मैं तुम्हारी मदद करूंगा,” शेख ने कहा।

वो कचहरी के दरवाजे पर खड़ा होकर चिल्लाया, “सरकार, घर में न तो पैसे हैं और न ही आटा! आप जल्दी कुछ करें।”

काजी को यह सुनकर बहुत शर्म आई।

“बेवकूफ!” उन्होंने बाद में शेख को डांट “खबरदार! जो आज से तुमने दुबारा कचहरी में इस तरह का अडंगा डाला!”

कुछ दिनों बाद काजी के घर में आग लग गई।

बेगम का नया नौकर दौड़ता हुआ कचहरी में काजी को इसकी सूचना देने के लिए आया।

“तुम घर जाकर मदद करो," शेख ने उससे कहा।

“मैं काजी साहब को इसके बारे में बता दूंगा।" क्योंकि शेख को कचहरी के समय काजी साहब के काम में अडंगा डालने क॑ लिए सख्ती से मना किया गया था इसलिए वो शाम तक धैर्य से इंतजार करता रहा।

ज़ब तक काजी का आधे से ज्यादा घर जलकर राख हो चुका था!

काजी की पत्नी एक रईस व्यवसायिक परिवार की थीं।

काजी ने घर को दुबारा बनाने के लिए कर्ज की मांग के लिए अपनी ससुराल जाने की ठानी।

उन्होंने शैतानी से दूर रखने के लिए शेख चिल्ली को भी घोड़े पर अपने साथ ले लिया।

काजी की ससुराल कोई पचास मील दूर होगी।

बीच में काजी को दस्त लगे और उन्हें शौच के लिए जंगल में जाना पड़ा।

तभी सड़क पर से एक काफिला गुजरा। वो शेख चिल्ली को ही घोड़े का असली मालिक समझ बेंठे।

“हम तुम्हें इस घोड़े क॑ लिए 200 रुपए देंगे,” उन्होंने उससे कहा।

“क्या तुम इतने में उसे बेचोगे ?”

“हां,” शेख ने कहा। उसने पेसों को रखा ओर घोड़े की थोड़ी सी पूंछ काटी और फिर जमीन में एक गड्ढा करके उसने पूंछ के बालों को उसमें गाढ़ दिया।

“सरकार, जरा जल्दी कीजिए!” वो काजी को आते देखकर जोर से चिल्लाया। “अभी-अभी भोड़े को खींचकर इस चूहे के बिल में ले जाया गया है! अगर आप मेरी मदद करेंगे तो हम उसे खींचकर बाहर

निकाल लेंगे!" काजी को कुछ समझ नहीं आया फिर भी वो शेख को पकड़े रहे।

और शेख जमीन में गढ़ी घोड़े की पूंछ को खींचता रहा। अंत में पूंछ बाहर निकल आई परंतु शेख और काजी दोनों धड़ाम से जमीन पर जाकर गिरे !

“चूहे हमसे ताकतवर निकले, सरकार,” शेख ने दुखी अंदाज में कहा। “घोड़ा सीधा जुमीन के अंदर चला गया हैँ। अब हमें उसे बाहर निकालने क॑ लिए फावडों के साथ खुदाई करने वाले ताकतवर लोग चाहिए होंगे !"

“तुम यह क्‍या बकवास बक रहे हो, बेवकूफ!”

काजी गुस्से में चिल्लाए। " भला एक घोड़ा किसी चूहे क॑ बिल में कैसे घुस सकता हैं ?

नम॑कहराम!

जल्दी से बताओ कि तुमने मेरे घोड़े का क्‍या किया हैं ?

घोड़ा कहीं खो गया हैं या तुमने उसे बेच डाला है ?

अब हम आगे का सफर कंसे करेंगे ? पैदल ?"

“सस्कार, पास ही में एक गांव है जहां से आपको एक नया घोड़ा मिल सकता हैं," शेख ने कहा। “

एक घोड़े के गुम जाने से आप जैसे रईस आदमी को कोई फक नहीं पडेंगा।'

बड्बड़ाते हुए काजी ने अगले गांव से एक और घोड़ा खरीदा और उसे एक पल के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहों होने दिया!

उन्होंने खुद तो घोड़े पर बैठकर यात्रा की और शेख को पहला घोड़ा खोने की सजा में पैदल दौड़ाया।

रात को वे एक सराय में रूकें। काजी ने वहां खाना खाया और उसके बाद शेख की ओर कुछ सूखी रोटो फेंकते हुए कहा, “तुम रात भर उस घोड़े के साथ ही रहना।

तुम उसकी मालिश करते रहना और खबरदार जो तुमने उसे अपनी आंखों के सामने से ओझल होने दिया! क्या तुम मेरी बात समझे ?"

“जी सरकार," शेख ने अपनी जंभाई को छिपाते हुए बड़े भीरू भाव में कहा।

दिन भर चलने की थकान के बाद जो घोड़े के पास ही बैठ गया और धीरे-धीरे उसकी मालिश करने लगा।

शेख को कब नींद आई और कब कोई घोड़े को चुराकर ले गया इसका उसे पता ही नहीं चला!

वो जब सुबह उठा तो उसने घोड़े को नदारद पाया।

शेख ने उसे चारों ओर ढूंढ़ा। अगर उसने घोड़े को जल्दी नहों खोजा तो काजी उसकी चमडो उधेड़ कर रख दंगा! फिर उसे घास के ढेर में जिसे घोड़ा सा रहा था दो लंबे कान नजर आए।

“वाह!” शेख ने कानों को पकड्ते हुए कहा, “तो तुम यहां छिपे हुए थे !” वो कान एक खरगोश के थे।

शेख जब उन्हें निहार रहा था तभी काजी 'भी वहां पहुंचे।

“घोड़ा कहां हैं ?" काजी ने कड़कदार आवाज में पूछा।

“यह रहा सरकार,” शेख ने झट से उत्तर दिया।

“ अबे गधे, यह तो खरगोश है, घोड़ा नहीं !”

“सरकार यह सच में घोड़ा हैं मैंने घोड़े कौ इतनी कसकर मालिश की कि वो छोटा होकर खरगोश बन गया।

मैंने उसके कानों को मालिश नहीं की। आप देखिए! वे अभी भी चोडे के नाप के हैं!"

“तुम दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ हो!”

काजी ने कहा।

यह कहते हुए काजी को आवाज गुस्से से लडखड़ाने लगी। “और में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बेवकूफ हूं कि मैंने तुम्हें नौकरों पर रखा !

चलों अब तैयार हो क्योंकि अब चलने का बक्त हो गया है।”

वो बाकी रास्ते पैदल ही चल कर गए।

ससुराल पहुंचने के बाद उनका काफी आदर-सत्कार हुआ।

काजी की सास शेख चिल्लीं को अलग ले गयीं। “तुम्हारे मालिक की तबियत कुछ ठीक नहीं लगती है,” उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि लंबे सफर के कारण उन्हें कुछ थकान हो गई है।"

“उनका पेट कुछ खराब हैं,” शेख ने कहा।

“फिर मैं उनके लिए कुछ खिचड़ी बना देती हूं," बूढ़ी औरत ने कहा।

“पर आप उसे खूब चटपटा बनाएं,” शेख ने कहा। “उन्हें चटपटा खाना बहुत पसंद हैं।”

रात को भोजन के समय शेख चिल्ली को सबसे स्वादिष्ट बिरयानी, मटन-करी, सब्जियां और खीर परोसी गई।

और काजी को कंवल एक कटोरा भर मसालेदार खिचड़ी ही खाने को मिली।

काजी को इतनी भूख लगी थी कि वो सब खिचड़ी खा गए।

रात को उनके पेट में दर्द हुआ और उन्हें तुरंत शौच क॑ लिए जाना पड़ा।

“मुझे बाहर जाना है,” उन्होंने शेख को उठाया। “तुम भी मेरे साथ चलो।”

“सरकार,” शेख ने नींद में कहां, “वहां कोने में एक मिट्टी का मटका रखा है। आप उस का प्रयोग क्यों नहीं करते? सुबह को उसे खाली कर देंगे।"

काजी को रात में कई बार शौच जाना पड़ा। सुबह तक वो मटका आधा भर चुका था।

इसे बाहर फेंक कर आओ," उन्होंने शेख को आदेश दिया।

“मैं यह काम नहीं करूंगा," शेख ने कहा, “मैं मेहतर नहीं हूं।"

काजी को कुछ समझ नहीं आया। गुस्से में आकर उन्होंने मटका उठाया और उसे जंगल में फेंकने चल पड़े! उनका साला उनके पीछे-पीछे दौड़ता हुआ आया।

उसे आते हुए देख काजो ने शर्म के मारे अपनी रफ्तार बढ़ा दी। परंतु उनका साला तेजी से दौड़कर उनके पास पहुंच गया।

भाईजान, आप अपने झिर पर यह बोझ लाद कर कहां जा रहें हैं ? लाईए, में आपकी मदद करता हूं।"

“नहीं! नहीं !" काजी ने विरोध किया। “नहीं, ठीक है।” और काजी ने मटके को कस कर पकड़ने की कोशिश की।

परंतु मटका उसके हाथों से फिसल कर उन दोनों के बीच में जाकर गिरा जिससे दोनों लोग गंदगी से सन गए।

शेख इस पूरे नजारे को खिड़की में से देख रहा था।

“सरकार, वो काजी की ओर दौडता हुआ चिल्लाया। “कहीं आपके चोट तो नहीं आई ! "

काजी ने विनम्र भाव से अपने दोनों हाथ जोडे।

“में तुमसे विनतती करता हूं शेख चिल्ली, तुम मुझे अकेला छोड़ दो," उन्होंने कहा। “मैंने तुम्हें बहुत झेला है और बर्दाश्त किया है! तुम जीते। में हारा। में तुम्हें फौरन नौकरी से निकालता हूं।

तुम पूरे साल की तनख्वाह ले लो और मेरे दोनों कान भी कुतर लो, परंतुं मेरी निगाह के सामने से सदा के लिए दफा हो जाओ!”

“आप अपने कान अपने पास ही रखें, सरकार," शेख ने कहा।

“हां, यह रहे वो दो सौ रूपए जो मुझे आपका पहला घोड़ा बेचकर मिले। मुझे अफसोस है कि दूसरा घोड़ा खरगोश में बदल गया। उस रात आपने घोड़े को मालिश करने के लिए कह कर भारी गलती की!”

एक साल को पूरी तनख्वाह जेब में रखे शेख चिल्ली बड़ी जीत हासिल करके शान से घर लौटा!