बेटा शेख क्या तुमने दुबारा वही सपना देखा ?
शेख चिल्ली की चिंतित मां ने उससे एक सुबह पूछा।
“तुम पूरी रात बेचैन रहे और करवटें बदलते रहे।”
शेख चिलली ने अपना सिर हिलाया और फिर अपनी बाहों को अम्मी के गले में डाला।
अम्मी ही तो उसका पूरा परिवार थीं।
“आज मैं तुम्हें हकीमजी के पास ले चलूंगी ,” अम्मी ने कहा।
“इंशाअल्लाह वो तुम्हारे इन खराब सपनों का खात्म कर देंगे।”
हकीम ने बड़े धैर्य से शेख चिल्ली की कहानीं को सुना। कई रातों से शेख चिल्ली को एक बुरा सपना आ रहा था जिसमें वो खुद एक चूहा होता था और गांव की सारी बिल्लियां उसका पीछा कर रही होती थीं।
जागने के बाद भी बड़ी मुश्किल से ही' शेख चिल्ली अपने आपको यह समझा पाता था कि वो एक चूहा नहीं बल्कि एक लड़का है।
मेरे बच्चे को यह तकलीफ क्यों हैं ?
शेख की मां ने हकीम से पूछा। “जब वो छोटा था तो एक जंगली बिल्ली ने मेरे बचाने से पहले, उसे जोर से नोचा था।
क्या वो उसी सपने को बार-बार देखता है ?
“शायद,” हकीम ने कहा। “पर आप इसकी ज़्यादा परवाह न करें।
ख़राब सपनों की बीमारी जल्दी ही ठीक हों जाएगी। बेटा शेख, आज से हर शाम को तुम मेरे पास दवा के लिए आना। और यह मत भूलना कि तुम एक चूहा नहीं बल्कि एक खूबसूरत नौजवान हो।” यह सुनकर शेख का चेहरा मुस्कान से खिल उठा।
हर शाम हकीम, बिता बाप के इस लड़के से कोई एक घंटा बातचीत करते थे।
फिर उसे कोई अहानिकारक दवाई देकर घर भेज देते जिससे कि शेख को रात को अच्छी नींद आए।
धीरे-धीरे शेख चिल्ली और हकीम अच्छे दोस्त बन गए। हकीम ने शेख को अच्छी सेहत और साफ-सफाई के बारे में सरल बातें बतायीं।
“बेटा शेख," उन्होंने एक शाम को कहा, “अगर मेरा एक कान गिर जाए तो क्या होगा ?"
“हकीमजी, तब आप आधे बहरें हो जाएंगे,” शेख ने हकीम के बड़े - बड़े कानों को घूरते हुए कहा।
“ठीक फर्माया,” हकीमजी ने कहा। “और अगर मेरा दूसरा भी कान गिर जाए तो?”
तो फिर आप अंधे हो जाएंगे, हकीमजी,” शेख ने कहा।
“अंधा?” घबराए हुए हकीमजी ने पूछा।
हां।” शेखर ने उत्तर दिया। “अगर आपके कान नहीं होंगे, तो फिर क्या आपका चश्मां नहीं गिरेगा ?”
हकीमजी यह सुनकर ठहाका मार कर हंसे। “तुम ठीक कहते हो शेख बेटा,” उन्होंने कहा। “इसके बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था!”
धीरे-धीरे शेख के खराब सपने बंद हो गए। कि वो एक चुहा हैं इस बात कौ सपने में उसने कल्पना करनी बंद कर दी। एक दिन हकीम का एक पुराना दोस्त उनसे मिलने के लिए आया। शेख से बाजार से कुछ गर्म जलेबियां लाने के लिए कहा गया।
वो बस निकल ही रहा था कि उसे कुछ फीट की दूरी पर एक बड़ी बिल्ली दिखाई दी।
“हकीमजी, मुझे बचाइए!” शेख, हकीमजी के पीछे छिपकर गिड़गिड़ाया।
मेरे बेटे, अब तुम चूहा नहीं हो। कया तुम्हें यह पता नहीं है ?”
“मुझे अच्छी तरह पता हैं हकीमजी,” शेख को अभी भी डर लग रहा था। “पर क्या बिल्ली को यह बात किसी ने बताई है ?”
अपनी मुस्कराहट को दबाते हुए हकीम ने बिल्ली को 'भगा दिया। उसके बाद शेख को दिलासा दिलाने के बाद उन्होंने उसे जलेबियां लेने के लिए भेजा।
मैं इस लड़के के पिता को अच्छी तरह जानता था,” हकीमजी के मेहमान ने शेख चिल्ली क॑ बारे में कुछ सुनने के बाद कहा। “मैं उसके घर जाकर उसकी मां से दुआ-सलाम करना चाहूंगा।"
“शेख आपको अपने घर ले जाएगा,” हकीमजी ने कहा। कुछ करारी जलेबी खाने के बाद और कहवा पीने के बाद शेख और मेहमान, शेख के घर की ओर चले।
“क्या यह सड़क सीधे तुम्हारे घर को जाती हैं ?”
“नहीं,” शेख ने कहा।
मेहमान को कुछ आश्चर्य हुआ। “मुझे लगा यह जाती होगी," उन्होंने कहा।
“नहीं, यह सड़क मेरे घर नहों जाती है,” शेख ने कहा।
“फिर वो कहां जाती हैं ?” मेहमान ने पूछा।
“ वो कहीं भी नहों जाती हैँ," शेख ने शांत भाव में उत्तर दिया।
मेहमान उसकी ओर घूरने लगा। “बेटा, इससे तुम्हारा क्या मतलब हैं ?"
जनाब, " शेख ने शांति से कहा। “सडक भला कैसे जा सकती है ? उसके पैर तो होते नहीं है।
सड़क तो एक बेजान चीज हैं। वो जहां पर है वही पड़ी रहती है।
परंतु हम इस सडक से मेरे घर तक जा सकते हैं। आपकी मेहमाननवाजी करके मुझे और अम्मी को बहुत खुशी होगी।"
शेख की निष्कपटता से उस उमर दराज इंसान का दिल पसीज गया। कुछ सालों बाद शेख चिल्ली उसका दामाद बना !