शेर चिलली इस घमय वहीं कर रहा था जिसमें उसे सबसे ज़्यादा मजा आता था - पतंगबाजी।
वो इस समय अपने घर को छत पर खड़ा था और आसमान में लाल और हरी पतंगों के उड़ने का मजा ले रहा था ।
शेख की कल्पना भी उडान भरने लगी। वो सोचने लगा - काश मैं इतना छोटा होता कि पतंग पर बैठ कर हवा में उड़ पाता ।
“बेटा, तुम कहां हो ?”
उसकी अम्मी ने धूप की चौंध से आंखों को बचाते हुए छत की ओर देखते हुए कहा।
*बस अभी आया अम्मी," शेख ने कहा।
काफी दुखी होते हुए उसने अपनी उडती पतंग को जमीन पर उतार और फिर दौड़ता हुआ नीचे गया।
शेंख अपनी मां की इकलौती औलाद था।
पति कौ मौत के बाद शेख ही उनका एकमात्र रिश्तेदार था।
इसलिए अम्मी शेख का बहुत प्यार करती थीं।
बेटा, झट से इसमें आठ आने का सरसों का तेल ले आओ,” उन्होंने कहा और अठन्नी के साथ-साथ शेखर को एक गिलास भी थमा दिया !
“तेल जरा सावधानी से लाना और जल्दी से वापिस आना।
रास्ते में सपने नहीं देखने लग जाना, कया तुम मेरी बात को सुन रहे हो ?”
हां, अम्मी,” शेख ने कहा । “आप बिल्कुल फिक्र न करें। जब आप फिक्र करती हैं तब आप कम सुंदर लगती हैं।"
“क्रम सुंदर,” उसकी मां ने हताश होते हुए कहा।
“मेरे पास सुंदर लगने के लिए पैसे और वक्त ही कहां हैं ?
अच्छा, अब चापलूसी बंद करो। फटाफट बाजार से तेल लेकर आओ।"
शेख दौड़ता हुआ बाजार गया। वैसे वो आराम से बाजार जाता परंतु उसकी अम्मी ने उससे झटपट जाने को कहा था इसलिए वो दौड़ रहा था।
“लालाजी, अम्मी को आठ आने का सरसों का तेल चाहिए," उसने दुकानदार लाला तेलीराम से कहा। उसके बाद उसने दुकानदार को गिलास और सिक्का थमा दिया ।
दुकानदार ने एक बड़े पींपे में से आठ आने का सरसों का तेल नापा और फिर वो उसे गिलास में उंडेलने लगा। गिलास जल्दी ही पूरा भर गया।
“भई इस गिलास में तो बस सात आने का तेल हीं आएगा,” उसने शेख से कहा।
“मैं बाकी का क्या करूँ ?
क्या तुम्हारे पास और कोई बर्त्तन है, या फिर मैं तुम्हें एक आना वापिस लौटा दूं ?"
शेख दुब्रिधा में पड़ गया। उसकी अम्मी ने उसे न तो दूसरा गिलास दिया था और न ही पैसे वापिस लाने को कहा था।
वो अब क्या करे ?
तभी उसे एक नायाब तरकीब समझ में आई ! गिलास में नीचे एक गड्डा - यानी छोटो सी कटोरी जैसी जगह थी । बाकी तेल उसमें आसानी से समा जाएगा !
उसने खुशी-खुशी तेल से भरे गिलास को उल्टा किया । साय तेल वह गया। फिर शेख ने गिलास के पेंदे में बनीं छोटो कटोरी की ओर इशारा किया । “बाकी तेल यहां डाल दो," उसने कहा ।
लाला तेलीराम को शेख को बेवकूफी पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने सिर हिलाते हुए शेख की आज्ञा का पालन किया। शेख ने गिलास का स्रावधानी से उठाया और फिर वो घर की ओर चला।
इस घटना पर लोगों ने टिप्पणियां की । पर शेख पर उनका कोई असर नहीं पड़ा ।
जब जो घर पहुंचा तब उसकी मां कपडे धो रही थी। “बाकी तेल कहां है ?” मां ने गिलास के पेंदे की छोटी कयेरी में रखे तेल को देखकर पूछा !
यहां ! शेख ने गिलास को सीधा करने की कोशिश की और ऐसा करने के दौरान बचा खुचा तेल भी बहा दिया ।
“बाकी तेल यहां था अम्मीजान, में सच कह रहा हूं।
मैंने लालाजी को तेल इसमें डालते हुए देखा था। वो कहां चला गया ?"
“जमीन के अंदर ! तुम्हारी बेवकूफी के साथ-साथ !” उसको मां ने गुस्से में कहा।
“क्या तुम्हारी बेवकूफी का कोई अंत भी है ?"
शेख ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया। “मैंने बिल्कुल वही किया जो आपने मुझसे करने को कहा था," उसने कहा। “ आपने मुझसे इस गिलास में आठ आने का तेल लाने को कहा था, और बही मैंने किया।
गिलास छोटा होने पर मुझे क्या करना है, यह आपने मुझे बताया ही नहीं था और अब आप मुझ पर नाराज हो रही हैं।
आप गुस्सा न करें अम्मी। जब आप गुस्से में होती हैं तब आप...”
“अगर तुम मेरे सामने से तुरंत दफा नहीं हुए तो मैं तुम्हारे चेहरे को खूबसूरत बनाती हूं !” अम्मी ने पास पड़ी झाड़ू उठाते हुए कहा। “मेरी सहनशक्ति की भी एक सीमा है, जबकि तुम्हारी बेबकूफी असीमित हैं !"
शेख अपनी पतंग लैकर लपक कर छत पर गया। मां दुखी होकर दुबारा कपड़े धोने में लग गयी ।
उन्हें अब तेल लाने के लिए खुद बनिये को दुकान पर जाना पड़ेगा। शेख ने बहुमूल्य समय के साथ-साथ बेशकीमती पैसों को भी गंबाया।
उसके बावजूद उनका मानना था कि उनका बेटा बहुत ही आज्ञाकारी और प्यारा था।
तभी किसी ने बाहर से दरवाजा खटखटाया। लाला तेलीराम का छोटा लड़का तेल को बोतल लिए खड़ा था। “बुआजी, यह आपके लिए हैं," उसने कहा। “मेरे पिताजी ने इसे भेजा है। जब शेख भैया ने तेल से भरे गिलास को उल्टा, तो किस्मत से तेल वापिस पींपे में जा गिरा ! भैया कहां हैं ?
उन्होंने मुझे पतंग उड़ाना सिखाने का वादा किया था।”
“वो ऊपर हैं।
बेटा, तुम छत्त पर चले जाओ," शेख की मां ने तेल लेते हुए और उस छोटे लड़के के गाल को थपथपाते हुए कहा। फिर जो मुस्कुराती हुए दुबारा अपने काम में जुट गयीं।
अल्लाह उस गरीब विधवा को भूला नहीं था !