मेहमान जो जाने को तैयार न था

शेखचिल्ली की कहानी - Shekh Chilli Ki Kahani

शेख चिल्‍ली की अम्मी और उसकी पत्नी फौजिया दोनों एक महीने के लिए कहीं जा रहीं थीं।

परंतु दोनों को ही शेख चिल्ली को घर में अकेले छोड़कर जाने की बात अखर रहा थी।

“पिछली बार जब हमने तुम्हें सिर्फ एक दिन के लिए अकेले छोड़ा था, तो तुमनें घर को जलाकर लगभग राख कर दिया था!” फौजिया ने कहा।

“अगर हम तुम्हें पुरे महीने के लिए अकेले छोड़कर गयी तो फिर तो अल्लाह ही मालिक है !”

“बेगम, तुम बिना किसी बात के फ़िक्र करती हो,” शेख ने उसकी हिम्मत बांधने के लिए कहां।

“में अपनी और घर की देखभाल करने के लिए पूरी तरह सक्षम हूं।

परंतु तुम्हारी तसल्‍ली के लिए मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि तुम्हारी गैर-मौजूदगी में मैं अपने पुराने दोस्त और चचेरे भाई इरफान भाई से मिलने के लिए जाऊंगा।”

“ठीक है।” शेख की बीबी को अब कुछ शांति मिली।

“हमारे आने के एक दिन बाद तुम भी वापिस आ जाना।"

शेख चिल्लों का चचेरा भाई इरफान पास के ही गांव में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था।

उसकी एक छोटी सी कपडे की दुकान थी।

इरफान ने बचपन में शेख ओर उसकी अम्मी के साथ काफी दिन गुजारे थे।

उन गर्दिश के हालातों में भी जब उनकी माली हालत॑ बहुत खराब थी, उन्होंने इरफान का हमेशा बहुत ख्याल रखा था।

जब शेखर अचानक से इरफान के घर पहुंचा तो इरफान को बहुत खुशी हुई। इरफान को अपने ऊपर लदे तमाम अहसानों को चुकाने का यह अच्छा मौका नजर आया।

शेख का पहला हफ्ता बड़े आराम से बीता। परंतु जब उसने जाने का कोई नाम नहीं लिया तो इरफान की पत्नी कुछ गुस्सा हुई।

“तुम्हारा भाई यहां और कितने दिन रहेगा?" उसने अपने पति से पूछा।

उसकी मर्जी,” इरफान ने जवाब दिया। “तुम क्यों फिक्र कर रही हों।

वो पूरा दिन दुकान में मेरे साथ गुजारता है और फिर शाम को आकर रोज तुम्हारी और बच्चों की कुछ मदद करता है।"

“वो सब टीक है," बीबी ने रूखाई से कहा, “पर देखो वो खाता कितना ज्यादा है! उससे हमारा खर्च कितना अधिक बढ़ गया है!"

“मेरे ऊपर उस परिवार का बहुत बड़ा कर्ज हैं और इस थोड़े से “खर्च की मुझे कोई परवाह नहीं हैं," इरफान से कहा।

“देखो बेगम, कुछ

दिन थोड़ा कम खाने और एके मेहमान को खिलाने से तुम्हार कुछ ख़ास बिगड़ेगा नहीं !"

उसकी मोटी बीबी गुस्से में रोने लगी।

“तुमसे बात करने से क्‍या फायदा," उससे नाक बिचकाते हुए कहा, “अब मुझे हो इसकी बारे में कुछ सोचना होगा।"

कुछ दिनों के बाद एक दिन इरफान जब शेख के साथ घर वापिस लौटे तो उन्होंने देखा कि उनकी बीबी और बच्चे किसी यात्रा के लिए तैयार थे।

भाईजान," इरफान की बीबी ने शेख से कहा, “मुझे अभी-अभी अपने पिता के सख्त बीमार होने की खबर मिली है।

इसलिए हमें आज रात को ही वहां जाना होगा।"

अल्लाह जल्दी हीं आपके पिता को ठीक करे, भाभीजी,"” शेख ने कहा।

“आप लोग घर की कोई चिंता न करें। आपके वापिस आने तक मैं घर की हिफाजत करूंगा।”

"पर भाईजान,” इरफान की बीबी ने विरोध प्रकट करते हुए कहा, “आप यहां रहेंगे कैसे? घर में तो कुछ खाने को नहीं है।

खैरियत इसी में हैं कि आफ वापिस अपने घर लौट जाएं।”

“तब मैं कल सुबह चला जाऊंगा," शेख ने कहा। “मेरे घर में ताला पड़ा हैं। मुझे कल किस दोस्त के घर जाना है यह बात में आज रात को तय कर लूंगा।”

अगले दिन सुबह घर छोड़ने से पहले शेख ने घर की थोड़ी सफाई करने की सोची।

बच्चों के पलंग क॑ गद्दे क॑ नीचे उसे एक छोटी चाबी दिखी। वो रसोई की अलमारी की चाबी थी।

इरफान की बीबी ने उसे यहां पर छिपा कर रखा था! अलमारी में कई दिनों के लिए आटा और दाल रखा था।

शेख ने सोचा कि अब अम्मी और फौजिया के आने से पहले मुझे घर जाने की कोई जुरूरत ही नहों है। यह सोचकर शेख अपने लिए खाना बनाने लगा।

इस बीच जब इरफान को पता चला कि उसकी बीबी पिता के बीमारी की कहानी एकदप मन-गढंत थीं तो वो अपनी बीबी पर बौखला उठा।

दो दिन बाद इरफान का पूरा परिवार जब घर लौटा तो शेख ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया!

कुछ दिन और बीत गए।

शेख ने अभी भी जाने का कोई नाम नहीं लिया। इरफान की बीबी का लगातार पारा चढ़ रहा था।

एक शाम को वो पलंग पर जा पड़ी और जोर-जोर से कराहने लगी।

“हाय! हाय!” उसने अपने पति से कराहते हुए कहा, “यह दर्द तो मुझे लेकर हीं मरेंगा! वह बिल्कुल उसी तरह का दर्द है जो भाईजान की अम्मी को होता था।

उनसे कहो कि वो उसी हकीम के पास जाएं जिन्होंने उनकी अम्मी को ठीक किया था और मेरे लिए भी उस मर्ज को दवा लेकर आएं।

हां, उन्हें दवाई लेकर यहां आने की जरूरत नहीं है। हम किसी को भेज कर दबा मंगवा लेंगे। कृपा करके भाईजान से जल्दी जाने को कहों!”

“भाभीजी, मैं सुबह होते हीं यहां से चला जाऊंगा," शेख ने उन्हें दिलासा दिलाते हुए कहा। “रात के अंधेरे में मैं अपना रास्ता भूल सकता हूं।

इंशाअल्लाह, आप की तबियत जल्दी ही दुरुस्त हो जाएगी!"

इरफान की बीबी सारी रात कराहती रही। उसकी कराहटों को सुन कर शेख को एक बुरा सपना आया।

सपने में उसे लगा जैसे कोई खूंखार शेर उसका पीछा कर रहा हो। शेर से पीछा छुड़ाने के प्रयास में शेख पलंग से नीचे गिर पड़ा और लुढ़क कर उसके नीचे चला गया।

उसके बाद बुरा सपना खत्म हुआ और शेख गहरी नींद सो पाया।

अगली सुबह इरफान को शेख का पलंग खालों नजर आया। “बेगम, वो तो पहले ही जा चुका है," इरफान ने अपनी बीबी से कहा।

बीबी अपने पलंग से कूद कर दौड़ती हुई आई।

“में सच में बीमार नहीं थी!” उसने हंसते हुए अपने पति से कहा।

“और मैं भी सच में अभी गया नहीं हूँ!" शेख चिल्ली ने पलंग के नीचे से निकलते हुए कहा। “ और वैसे भी अब भाभीजी की तबियत ठीक हो गई है!