अंत में शेख चिल्ली का भाग्य जागा।
झज्जर के नवाब ने शेख चिल्लीं को नौकरी पर रख लिया था।
शेख चिल्ली अब समाज का एक गणमान्य व्यक्ति था।
एक दिन नवाब साहब शिकार के लिए जा रहे थे।
शेख चिल्ली ने भी साथ आने की विनती की।
“अरे मियां, तुम घने जंगलों में क्या करोगे ?”
नवाब ने पूछा। “जंगल कोई दिन में सपने देखने की जगह थोड़े ही है।
क्या तुमने कभी किसी चूहे का शिकार किया है, जो तुम अब तेंदुए का शिकार करोगे ?”
“सरकार, आप मुझे बस एक मौका दीजिए अपनी कुशलता दिखाने का,” शेख चिल्ली ने बड़े अदब के साथ फर्माया।
तो अब जनाब शेख चिल्ली भी हाथ में बंदूक थामे शिकार पार्टी के साथ हो लिए।
उसने अपने आपको एक मचाने के ऊपर पाया। थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा पेड़ था जिससे तेंदुए का भोजन - एक बकरी बंधी थी।
चांदनी रात भी। इस माहौल में जब भी तेंदुआ बकरी के ऊपर कूदेगा तो वो साफ दिखाई देगा।
दूसरी मचानों पर नवाब साहब और उनके अनुभवी शिकारी चुपचाप तेंदुए के आने का इंतजार कर रहे थे।
इस तरह जब कई घंटे बीत गए तो शेख चिल्ली कुछ बैचैन होने लगा।
“वो कमबख्त तेंदुआ कहां है ?” उसने मचान पर अपने साथ बैठे दूसरे शिकारी से पूछा।
“चुप बेठो!” शिकारी ने फुसफूुसाते हुए कहा। “इस तरह तुम पूरा बेड़ा ही गर्क कर दोगे।"
शेख चिल्ली चुप हो गया परंतु उसे यह अच्छा नहीं लगा।
यह भी भला कोई शिकार है ? हम सब लोग पेड़ों में छिपे बैठे हैं और एक गरीब से जानवर का इंतजार कर रहे हैं!
हमें अपनी बंदूकें उठाए पैदल चलना चाहिए ! परंतु लोग कहते हैं कि तेंदुआ बहुत तेज दौड़ता है। वो जंगल में उसी तरह दौड़ता है जैसे मेरी पतंग आसमान में दोडती है!
खैर छोड़ो भी। हम उसके पीछे-पीछे दौड़ेंगे। हम अख़िर तक उसका पीछा करेंगे।
धीरे-धीरे करके बाकी शिकारी पीछे रह जाएंगे। मैं उन सब को पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाऊंगा। मैं तेंदुए के एकदम पीछे जाऊंगा।
तेंदुए को पता होगा कि मैं उसके एकदम पीछे हूं। वो रूकेगा। वो मुडेगा।
उसे पता होगा कि अब उसका अँत नजदीक हैं। वो सीधा मेरी आंखों में देखेगा। एक शिकारी की आंखों में देखेगा। और फिर मैँ....
धांय! ओर तेंदुआ, मिमियाती बकरी के सामने मर कर गिर गया। वो बस बकरी की दबोचने वाला ही था!
एक शिकारी बड़ी सावधानी से तेंदुए के मृत शरीर को देखने के लिए गया। तेंदुआ मर चुका था। पर इतनी फूर्ती से उसे किसने मारा था ?
शेख चिल्ली के साथी ने पीठ ठोककर शेख चिल्ली को शाबाशी दी।
“क्या गजब का निशाना है!” उसने कहा। “तुमने तो हम सबको मात कर दिया और आश्चर्य में डाल दिया!”
“शाबाश मियां! शाबाश!" नवाब साहब ने शेख चिल्ली को बधाई देते हुए कहा।
इस बीच में पूरी शिकार पार्टी शेख द्वारा मारे गए तेंदुए का मुआयना करने के लिए इकट्ठी हो गई थी।
“मुझे लगा कि कोई भी शिकार मुझे चुनौती नहीं दे पाएगा, परंतु शेख चिल्ली ने हम सबको सबक सिखा दिया। वाह! क्या उम्दा निशाना था!”
शेख चिल्ली ने बड़े अदब से अपना सिर झुकावा। वो तेंदुआ कब आया और कैसे उसकी बंदूक चली इसका शेख चिल्ली को कोई भी अंदाज नहीं था!
परंतु तेंदुआ मर चुका था। और अब शेख चिल्ली एक अन्वल दर्जे का शिकारी बन चुका था! इस बारे में अब किसी को कोई शक नहीं था!