झज्जर के नवाब युद्ध लड़ने के लिए कई महीनों से बाहर गए थें।
उनकी अनुपस्थिति में उनके छोटे भाई - छोटे नवाब ही राज-पाट का सारा काम संभालते थे।
नवाब साहब धीरे-धीरे करके शेख चिल्ली को चाहने लगे थें।
उन्हें उसकी सरलता में आनंद आता था। परंतु छोटे नवाब शेख चिल्ली को पूरी तरह बेवकूफ और कामचोर मानते थे। एक दिन उन्होंने भरी सभा में शेख चिल्ली को डांट और उसका अपमान किया।
“एक अच्छा आदमी बताए हुए काम से भी कहीं ज़्यादा काम करता हैं और एक तुम हों जो सरल से काम को भी ठीक ढंग से नहीं कर पाते हो," उन्होंने कहा।
“तुम अस्तबल में घोड़ा लेकर जाते हो पर उसे बांधना भूल जाते हो। तुम जब कोई बोझा उठाते हो तो या तो गिर जाते हो या फिर तुम्हारे पैर लड़खड़ाते हैं! तुम जो काम करते हों उसे ध्यान लगाकर क्यों नहों करतें हो!”
दरबार में कई सदस्यों को यह सुनकर मजा आया। इस दौरान शेख चिल्ली अपना मुंह लटकाए रहा। उसके कुछ दिनों बाद शेख चिल्ली छोटे नवाब के घर के सामने से होकर जा रहा था जब उसे तुरंत अंदर बुलाया गया।
“किसी अच्छे हकीम को बुलाकर लाओ। जल्दी! बेगम काफी बीमार हैं।”
“जी सरकार,” शेख चिल्ली ने कहा और आदेश का पालन करने में फटाफट लग गया। थोड़ी ही देर में एक हकीम, एक कफन बनाने
वाला और दो कब्र खोदने वाले मजदूर भी वहां पहुंच गए!
“यह सब क्या हो रहा है ?” छोटे नवाब ने गुस्से में पूछा। “यहां तो कोई भरा नहीं हैं। मैंने तो सिर्फ एक हकीम को बुला लाने के लिए कहा था। बाकी लोगों को कौन बुलाकर लाया हे ?"
“मैं सरकार!” शेख चिल्ली ने कहा। “आपने ही तो कहा था कि एक अच्छा आदमी बताए गए काम से भी बहुत ज्यादा काम करता है।
इसलिए मेने सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया। अल्लाह करें कि बेगम साहिबा जल्दी से ठोक हो जाएं। पर हारी-बीमारी में क्या हों जाए यह किसे पता!”
छोटे नवाब शाज-पाट के काम में ज़्यादा रुचि नहीं लेते थे।
वो अपना अधिकतर समय शिकार, शतरंज या अन्य खेलों को खेलने में बिताते थे।
एक दिन उन्होंने एक प्रतियोगिता रखी जिसमें सबसे बड़े झूठ बोलने वाले को विजयी घोषित किया जाना था! जीतने वाले को सोने की एक हजार दीनारें भी मिलनी थीं।
कई झूठ बोलने में माहिर लोग इनाम जीतने के लिए सामने आए। एक ने कहा, “सरकार, मेंने भेंसों से भी बड़ी चींटियां देखीं हैं जो एक बार में चालीस सेर दूध देती हैं!"
“क्यों नहीं?” छोटे नवाब ने कहा। “यह संभव है।”
“सरकार, हर रात मैं चंद्रमा तक उड़ते हुए जाता हूं और सुबह होने से पहले ही उड़कर वापिस आ जाता हूं!” एक अन्य झूठ बोलने वाले ने डींग हांकी।
“हों सकता हैं,” छोटे नवाब ने कहा। “हो सकता है तुम्हारे पास कोई रहस्थमयी ताकत हो।”
“सस्कार," एक तोंद निकले मोटे आदमी ने कहा, “जबसे मैंने एक तरबूज के कुछ बीज निगले हैं तब से मेरें पेट में छोटे-छोटे तरबूज पैदा हो रहे हैं।
जब कोई तरबूज पक जाता है तो वो फूट जाता है और उससे मुझे अपना भोजन मिल जाता है। अब मुझे और कुछ खाने की जरूरत ही नहीं पड़ती है।”
“तुमने किसी ताकतवर तरबूज के बोज निगल लिए होंगे," छोटे नवाब ने बिना पलकें झपके कहा।
“सरकार, क्या मुझे भी बोलने की इजाजत है ?” शेख चिल्ली ने पुछा।
“जरूर, छोटे नवाब ने ताना कसते हुए कहा। “तुमसे हम किन प्रतिभाशाली शब्दों की उम्मीद करें ?"
“सरकार, ” शेख चिल्लीं ने जोर से कहा, “आप इस पूरे राज्य के सबसे बड़े बेवकूफ आदमी हैं। आपको नवाब के सिंहासन पर बैठने का कोई हक नहीं हैं।"
पूरी राजसभा में सन्नाटा छा गया। तब छोटे नवाब चिल्लाए, “पहरेदारों, इस नाचीज को गिरफ्तार कर लो!"
शेख चिल्ली को फ्कड़ा गया और खींच कर लाया गया।
“निकम्मे, बेशरम!” छोटे नवाब का गुस्सा उबल कर बाहर निकला, “तुम्हारी यह जुर्रत कैसे हुई! अगर तुमने इसी वक्त हमारें पैरों में गिरकर माफ़ी नहीं मांगी तो तुम्होरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा!”
“पर सरकार,” शेख चिल्ली ने विरोध जताते हुए कहा, “आपने ही तो कहा था कि आप दुनिया का सबसे बड़ा झूठ सुनना चाहते हैं!” फिर वो निष्कपट भाव से छोटे नवाब को देखने लगा। “जो कुछ मैंने कहा उससे बड़ा क्या और कोई झूठ हो सकता हे ?"
छोटे नवाब को समझ में नहीं आया कि क्या करें! क्या शेख चिल्ली अब झूठ बोल रहा है या वो पहले झूठ बोल रहा था ? शेख चिल्ली उतना बड़ा बेवकूफ नहीं था जितना छोटे नवाब उसे समझते थे!
छोटे नवाब धीमे से हंसे और उन्होंने कहा, “शाबाश! तुम ईनाम जीते! ”
सब लोगों ने शेख चिल्ली की अकल को सराहा। वो शान से हजार सोने की दीनारें लेकर घर गया। छोटे नवाब चाहें थोडे बेवकूफ हों परंतु वो हैं दिलदार, शेख ने सोचा।