झज्जर राज्य पूरी तरह डर के माहौल में ग्रस्त था।
कई हफ्तों से लगातार चोरियां हो रहीं थीं और हर बार चोर आसानी से भागने में सफल हो जाता था।
रईसों के घरों में चोरी हुई थी और गरीबों के घरों में भी।
जब राजकोश में चोरी हुई तब नवाब साहब कुछ जागे।
एक राजसी फरमान जारी किया गया।
जो कोई भी चोर को पकडेगा उसका नवाब साहब सम्मान करेंगे और उसे इतना धन दिया जाएगा जिससे वो अपनी बाकी जिंदगी सुख-चैन से बिता सके।
शेख चिल्ली इस पूरे नाटक से अविचलित था।
उसके घर में चोर को आमंत्रित करने वाला कुछ था ही नही।
नवाब साहब से अच्छी तनख्वाह पाने के बाद भी शेख चिल्ली और उसकी पत्नी की कोई बहुत अच्छी हालत नहीं थीं।
अक्सर वो अपनों तनख्वाह का कुछ हिस्सा बेकार के सपनों या काम के समय किसी बेवकूफी में गंवा देता था।
जब कभी भी उसकी जेब में पैसे होते तो वो उन्हें बड़ी खुशी और दरियादिली से खर्च करता। वो गरीब लोगों की मदद करने से कभी नहीं चूकता।
एक दिन शेंख चिल्ली ने पड़ोसी राज्य में जाकर एक मशहूर फकीर की दुआ लेने की सोची।
इसका मतलब उसे घर से चार दिनों के लिए बाहर रहना था।
“हाय अल्लाह! तुम मुझे इस डर के माहौल में इतने दिनों के लिए छोडकर जाने की बात सोच रहे हो!”
उसको बीबी फौजिया ने कहा। “ अगर इस बीच में घर में चोर आ धमका तो क्या होगा ?”
“बेगम, कोई भी समझदार चोर हम पर अपना समय बरबाद नहीं करेगा!” शेखर ने उसे दिलासा दिलाते हुए कहा! “जब तक मैं वापिस नहीं आता तब तक हमारी पड़ोसिन तुम्हारे साथ रात को आ कर सोया करेंगी।
और किसे पता ? यह भी हो सकता है मैं, हम दोनों के लिए कोई अच्छी तकदीर लेकर वापिस लौटूं !”
अगली सुबह वो रवाना हो गया और फिर कुछ दिनों बाद उस फकीर का दिया हुआ एक तावीज लेकर वापिस लौटा।
“फकीर ने कहा कि इस तावीज से हमारे घर में सुख और शांति कायम रहेगी," शेख चिल्ली ने कहा।
फौजिया ने प्रार्थना के अंदाज में उस तावीज को अपनी आंखों और ओठो से छुआया। “इंशाअल्लाह!” उसने हल्के से कहा।
भोजन के बाद शेख चिल्ली अपने घर की छत पर चला गया।
काले आममान में हजारों-लाखों सितारे झिलमिला रहे थे।
छत पर टहल-कदमी करते समय शेख चिल्ली का दिमाग तमाम खुशहाल यादों से भर गया।
उसे अपनी प्यारी मरहूम अम्मी की याद आई। उसे अपने अब्बाजान की भी कुछ धुंधलीं सी याद आई! जब शेख बिल्कुल छोटा था तभी अब्बा का देहांत हो गया था। शेख को अपने बचपन के मुक्त दिनों की भी याद आई।
कैसे उसकी पतंग आसमान को छूती थी, जैसे कोई जिंदा जानवर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा हो - ऊपर, ऊपर और ऊपर!
शेख चिल्ली अपनी यादों की दुनिया में खो गया। वो चहल-कदमी करता-करता सीधे अपनी छत से नीचे कच्ची सड़क पर एक जोरदार आवाज... धम्म! से आकर गिरा
वो भाग्यशाली रहा क्योंकि दो-चार खरोंचों के अलावा उसे कोई खास चोट नहीं आई।
वो सड़क पर गिरने की बजाए घुराने कपड़ों की एक गठरी पर आकर गिरा था।
जैसे ही पड़ोस के लोग अपनी लालटेनें लेकर मौके पर शिनाख्त करने के लिए पहुंचे उन्हें कुछ पुराने कपड़े उठाकर भागते हुए दिखाई दिए! उन्होंने उस भागते हुए आदमी को तुरंत पकड़ लिया और उसे फौरन बेनकाब किया।
वो वही चोर निकला जिसने काफी असे से पूरे राज्य में आतंक मचाया था! चोर शेख चिल्ली के घर चोरी करने के लिए आया था।
उसे उम्मीद थी कि बेेफिक्र रहने वाले शेख चिल्ली के घर पर, जरूर कहां धन छिपा हुआ होगा!
अगले दिन नवाब साहब ने सारी सभा क॑ सामने चोर को पकड़ने कं लिए शेख चिल्ली को बधाई दी और इस बात की भी पुष्टि की कि भकिष्व में शेख चिल्ली के परिवार का पूरा खर्च राजकोश वहन करेगा।
तावीज का आशीर्वाद फल-फूल रहा था !