मयखाने के शौकीन भूत

भूत की कहानियाँ

भुतहा हवेली के रूप में प्रसिद्ध यह इमारत आस्ट्रेलिया की प्राचीनतम इमारतों में से एक है।

भूतों को यहां बेसमेंट में बना सैलर यानि शराबखाना ही ज्यादा रास आता है।

यहां के भूत शरीफ किस्म के हैं और उन्होंने अभी तक किसी को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाया है।

लेकिन यहां काम करने वाले कुछ कर्मचारियों पर उनका ऐसा मनोवैज्ञानिक आतंक है कि वे सूरज ढलने से पहले ही घर भाग जाने की कोशिश करते हैं।

भूतों को देख और महसूस कर चुके लोगों का कहना है कि यहां एक से ज्यादा भूत हैं । इनमें से कुछ की तो पहचान भी कर ली गई है कि वो किसके भूत हैं।

सेंट्रल सिडनी से लगभग एक घंटे के सफर पर स्थित पारामाता में यह हवेली दरअसल कभी वहां का गवर्नर हाउस हुआ करती थी ।

इसका निर्माण हंटर और मैक्कारी नाम के गवर्नरों ने 7799 से 86 के दौरान करवाया था। प्रेत-प्रसंगों के जुड़ जाने के कारण इस हवेली का महत्त्व इस कदर बढ़ गया है कि इसके मूल स्वरूप को अभी तक बड़े रखरखाव के साथ बरकरार रखा गया है। इसकी रंगाई-

पुताई पर हर साल सरकार की तरफ से काफी पैसा खर्च किया जाता है। यहां तक कि इसके पुराने फर्नीचर को भी नहीं बदला गया है। इस फर्नीचर का इस्तेमाल तो आस्ट्रेलिया के अनेक ऐतिहासिक नाटकों में भी किया जा चुका है। यहां जनता के लिए प्रेत-दर्शन का सिलसिला पिछले एक दशक से ही शुरू किया गया है।

ये प्रेत-दर्शन हर शुक्रवार की रात को कराया जाता है।

इस रोज यहां आने वाले दर्शकों के लिए बाकायदा प्रशिक्षित गाइडों का इंतजाम है और इसके लिए उनसे खासी फीस भी वसूली जाती है, लेकिन थोड़ा पैसा खर्च करके अगर कुछ देर के लिए किसी को प्रेत-सानिध्य प्राप्त हो जाता है तो कोई घाटे का सौदा नहीं लगता।

क्योंकि यहां आने वाले दर्शक-पर्यटकों में से अनेक ने भूतों की उपस्थिति और उसका रोमांच महसूस किया है।

उल्लेखनीय है कि प्रेत-दर्शन के इस कार्यक्रम के दौरान समूची इमारत में मोमबत्तियों के प्रकाश से काम चलाया जाता है।

प्रेत-दर्शन के इस बहुचर्चित कार्यक्रम की शुरुआत बेसमेंट में बने अंधियारे सैलर में एक सलाइड-शो के साथ होती है।

इस शो में इमारत के बारे में दिलचस्प जानकारी के साथ-साथ उस पूरे परिसर का परिचय दिया जाता है।

इसके बाद गाइड मोमबत्ती लेकर सभी मेहमानों को उस इमारत की परिक्रमा करवाता है।

पारामाता पार्क से होते हुए गाइड मेहमानों को चर्चित स्तंभ-चिह्न और पेड़ तक ले जाता है। कहते हैं इस जगह पर इमारत में रहने वालों में से एक सदस्य की मौत हुई थी।

यहां आ चुके दर्शकों ने खासी बेचैनी महसूस करने जैसी बात स्वीकार की है।

ये स्थान आगे वाले गेट की सीमा में, लेकिन आखिरी छोर पर है।

यहां पर प्रेत- छाया, विचित्र ढंग का सफेद कुहासा, चीखें तथा ऐसी ही कई अजीबोगरीब घटनाएं होने की सूचनाएं मिलती रहती हैं। इमारत सचमुच प्रेत-संतप्त है या नहीं, इसकी पुष्टि के लिए कई बार प्रेतों को पहचानने-सूंघने में माहिर विशेषज्ञों को वहां बुलवाया गया।

एक बार तो चार विशेषज्ञ एक साथ बुलवाए गए।

हैरानी की बात यह रही कि वे चारों ही महारथी इमारत का चक्कर लगा लेने के बाद काफी बेचैन दिखे और जल्दी-से-जल्दी वहां से चले जाना चाह रहे थे।

उनकी बेचैनी और इस जल्दी की वजह पूछने पर उनका कहना था कि यहां की प्रेतात्माएं ' मित्रवत्‌' नहीं हैं।

हालांकि प्रेतों से अब तक हुई सभी मुलाकातों में कोई विशेष नुकसान या दुर्घटना की खबर सुनने में नहीं आई है।

प्रेत-दर्शन के प्रारंभिक गवाहों में इस इमारत का एक कर्मचारी भी था।

एक बार वह एक कमरे में झाड़फानूस लगा रहा था।

उस वक्‍त कमरे में रोशनी कम थी, पर पूरी तरह अंधेरा नहीं था। तभी उसे खिड़की से झांकता हुआ एक चेहरा दिखाई दिया। गौर से देखा तो पता चंला कि उस चेहरे का तो धड़ ही नहीं था। फिर उसने उसके बगल वाली खिड़की में देखा तो वहां भी वही चेहरा झांकता मिला।

वैसे इमारत में प्रेत-गतिविधियों का मुख्य केंद्र है वहां का 'ब्लूरूम'। वह कमरा कभी यहां का खास बेडरूम हुआ करता था।

इसमें नीले रंग की पुताई है। इसमें पुरानी शैली के चार प्रज्ञापकों वाला एक बेड है।

सामने वाली दीवार और बगल में एक-एक खिड़की है | इसमें एक पुरानी शैली का बना वार्डरोब तथा कुछ प्रेत-दर्शन हर शुक्रवार की रात को कराया जाता है।

इस रोज यहां आने वाले दर्शकों के लिए बाकायदा प्रशिक्षित गाइडों का इंतजाम है और इसके लिए उनसे खासी फीस भी वसूली जाती है, लेकिन थोड़ा पैसा खर्च करके अगर कुछ देर के लिए किसी को प्रेत-सानिध्य प्राप्त हो जाता है तो कोई घाटे का सौदा नहीं लगता।

क्योंकि यहां आने वाले दर्शक-पर्यटकों में से अनेक ने भूतों की उपस्थिति और उसका रोमांच महसूस किया है।

उल्लेखनीय है कि प्रेत-दर्शन के इस कार्यक्रम के दौरान समूची इमारत में मोमबत्तियों के प्रकाश से काम चलाया जाता है।

प्रेत-दर्शन के इस बहुचर्चित कार्यक्रम की शुरुआत बेसमेंट में बने अंधियारे सैलर में एक स्‍लाइड-शो के साथ होती है।

इस शो में इमारत के बारे में दिलचस्प जानकारी के साथ-साथ उस पूरे परिसर का परिचय दिया जाता है। इसके बाद गाइड मोमबत्ती लेकर सभी मेहमानों को उस इमारत की परिक्रमा करवाता है। पारामाता पार्क से होते हुए गाइड मेहमानों को चर्चित स्तंभ-चिह्न और पेड़ तक ले जाता है।

कहते हैं इस जगह पर इमारत में रहने वालों में से एक सदस्य की मौत हुई थी। यहां आ चुके दर्शकों ने खासी बेचैनी महसूस करने जैसी बात स्वीकार को है।

ये स्थान आगे वाले गेट की सीमा में, लेकिन आखिरी छोर पर है| यहां पर प्रेत- छाया, विचित्र ढंग का सफेद कुहासा, चीखें तथा ऐसी ही कई अजीबोगरीब घटनाएं होने की सूचनाएं मिलती रहती हैं।

इमारत सचमुच प्रेत-संतप्त है या नहीं, इसकी पुष्टि के लिए कई बार प्रेतों को पहचानने-सूंघने में माहिर विशेषज्ञों को वहां बुलवाया गया।

एक बार तो चार विशेषज्ञ एक साथ बुलवाए गए हैरानी की बात यह रही कि वे चारों ही महारथी इमारत का चक्कर लगा लेने के बाद काफी बेचैन दिखे और जल्दी-से-जल्दी वहां से चले जाना चाह रहे थे। उनकी बेचैनी और इस जल्दी की वजह पूछने पर उनका कहना था कि यहां की प्रेतात्माएं 'मित्रवत्‌' नहीं हैं।

हालांकि प्रेतों से अब तक हुई सभी मुलाकातों में कोई विशेष नुकसान या दुर्घटना की खबर सुनने में नहीं आई है। प्रेत-दर्शन के प्रारंभिक गवाहों में इस इमारत का एक कर्मचारी भी था।

एक बार वह एक कमरे में झाड़फानूस लगा रहा था। उस वक्‍त कमरे में रोशनी कम थी, पर पूरी तरह अंधेरा नहीं था। तभी उसे खिड़की से झांकता हुआ एक चेहरा दिखाई दिया। गौर से देखा तो पता चंला कि उस चेहरे का तो धड़ ही नहीं था। फिर उसने उसके बगल वाली खिड़की में देखा तो वहां भी वही चेहरा झांकता मिला।

वैसे इमारत में प्रेत-गतिविधियों का मुख्य केंद्र है वहां का “ब्लूरूम '। वह कमरा कभी यहां का खास बेडरूम हुआ करता था। इसमें नीले रंग की पुताई है। इसमें पुरानी शैली के चार प्रज्ञापकों वाला एक बेड है।

सामने वाली दीवार और बगल में एक-एक खिड़की है। इसमें एक पुरानी शैली का बना वार्डरोब तथा कुछ और खूबसूरत वस्तुएं भी रखी हैं ।

इस तरह के बेडरूमों से जुड़े भटकती आत्माओं के किस्सों की तरह, इससे भी कुछ ऐसे किस्से जुड़े हैं। इन किस्सों की नायिका एक ' ब्लू लेडी ' है, जो अक्सर इस शयन-कक्ष और उसके आस-पास मंडराती हुई देखी गई है।

कौन थी ये “ब्लू लेड़ी' ? आखिर इसका रहस्य क्या है ? दरअसल 'ब्लू लेडी” वो युवा सुंदरी है, जिसकी तस्वीर 'ब्लू रूम' के पास की दीवार पर टंगी है।

इस सुंदरी का नाम मेरी ब्लिग बताया जाता है। तस्वीर में मेरी अपने प्रिय कुत्ते को गोद में लिए हुए है।

यहां के कर्मचारियों ने उसकी प्रेत-छाया को उसी मुद्रा में इस कक्ष में और इसके आसपास घूमते देखा है।

इस शयन-कक्ष का मुआयना कर चुके प्रेत-विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें यहां बहुत ही हिंसक दृश्य देखने को मिले-विशेष तौर पर वार्डरोब के पास वाले कोने में। कर्मचारियों का कहना है कि ये वार्डरोब अक्सर अपने आप खुल जाता है, और कई बार तो कक्ष में घुसने पर उन्हें खुला हुआ भी मिला है ।

यहां के मुख्य दरवाजे को लेकर भी कई चमत्कार होते रहते हैं। मसलन रात को ताला लगा देने के बाद भी अंदर रखा गुलदस्ता कभी गिरा हुआ होता है, तो कभी दरवाजा अपने आप खुल जाता है ।

ब्लू रूम के अलावा कुछ अन्य कक्ष और स्थान भी प्रेतात्माओं की मौजूदगी का अहसास कराते हैं। एक कर्मचारी ने तो यहां की डायनिंग टेबल पर एक प्रेतात्मा से साक्षात करने की बातें भी कीं। पर वो कर्मचारी उस बातचीत का खुलासा करने के लिए ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह सका।

एक बार तो एक गाइड जब दर्शकों को उस कक्ष के बारे में बता रहा था, तो एक प्रेतात्मा अचानक वहां प्रकट हुई और उनके चारों तरफ घूमकर दरवाजे से बाहर निकल गई। इन प्रेत-कथाओं के अलावा इस इमारत से कई दिलचस्प किस्से और भी जुड़े हुए हैं।

आस्ट्रेलिया में उड़न तश्तरी पहली बार इसी इमारत से देखी गई थी। यही नहीं, वो उड़न-तश्तरी पास ही एक मैदान में खड़े एक व्यक्ति का 'अपहरण' तक करके ले गई थी। इसके बाद क्‍या हुआ, उसे कुछ नहीं मालूम, क्योंकि उस पर गहरी तंद्रा छा गई थी। जब तंद्रा भंग हुई तो उसने खुद को वापस उसी जगह पड़ा पाया।

तो प्रेत अनंत, प्रेतकथा अनंता...जानकारों का कहना है कि इन प्रेतात्माओं से मिलने, उन्हें देखने के लिए किसी दिव्य-दृष्टि या विलक्षण शक्ति से संपन्न होना जरूरी नहीं है।

जरूरी है तो एक मजबूत दिल और जिज्ञासु तथा सजग दिमाग की। पर यह भी जरूरी नहीं कि कोई वहां जाए तो प्रेत-दर्शन की उसकी इच्छा उसी दिन पूरी हो ही जाए।

उसे दूसरे तीसरे या चौथे विजिट के लिए तैयार रहना चाहिए ।...आखिर प्रेत भी तो अपनी मर्जी के मालिक होते हैं।