इंग्लैण्ड के लीसेस्टर शायर नामक स्थान के बोसवर्थ नामक भवन में पिछले 300 वर्षों से उस घर की मालकिन की प्रेतात्मा भटक रही है।
वैसे यह प्रेतात्मा अन्य भूत-प्रेतों की भांति रात्रि में ही भवन में इधर से उधर मंडराया करती है।
यह प्रेतात्मा बच्चों को हमेशा उपहार प्रदान किया करती है। जब बच्चे घरों में सो रहे होते तो चुपचाप उनके पास पहुंचती है और बगल में उपहारों के पैकेट रखकर गायब हो जाती है।
जब बच्चों को अपने उपहार मिलने लगे तो यह चर्चा जंगल में आग की भांति सर्वत्र फ़ैल गई। पता चला कि एक प्रेतात्मा ही बच्चों में उपहार बांटती है।
बोसवर्थ नामक विशाल भवन को सर डिसोड्यो ने बनवाया था। उनकी उम्र २४-२५ वर्ष के करीब थी। एक दिन उन्हें क्लब की युवती से प्रेम हो गया।
उसे उन्होंने बिना शादी के अपने घर में रख लिया। कुछ दिन तो मौज-मस्ती से गुजरे।
लेकिन एक रात्रि को सर डिसोड्यो की भवन की छत से गिरने से मृत्यु हो गई।
अब डिसोड्यो की कुंआरी पत्नी को ही विशाल भवन की देखरेख करनी पड़ी।
रात्रि में वह बिस्तर पर करवटें बदलती तो उसे डिसोड्यो की याद सताया करती।
उसकी आँखों में आँसू भर आते। वह आंसू भरी आँखे लेकर बरामदे में लगी डिसोड्यो की आदमकद तस्वीर के पास जाती और एक ही बात कहती - काश! मेरी गोद तो भर दी होती, मैं बच्चों के सहारे ही अपनी जिंदगी काट लेती।
बच्चों को देखकर वह आपे से बाहर हो जाया करती। अब डिसोड्यो ने कहा- यदि तुम्हें बच्चों से इतना ही प्यार है तो उन्हें उपहार देना शुरू कर दो। हाँ यह उपहार मैं तुम्हें अपनी जादुई शक्ति से लकर दे दिया करूंगा।
सुनकर वह प्रसन्न हुई। उसी दिन से बच्चों के बीच रात्रि में उपहार बाँटने लगी।
वैसे डिसोड्यो की प्रेत बनी इस कुआरी पत्नी का नाम मोरिया था।
मोरिया इंग्लैण्ड क्लब की सुंदरी भी रह चुकी थी। मोरिया इंग्लैण्ड क्लब की सुंदरी भी रह चुकी थी।
मोरिया की मृत्यु हुए तीन सदियां बीत गई हैं। लेकिन अभी भी वह प्रेत योनि में ही है, वह खंडहर अवस्था में खड़े अपने भवन की रक्षा किया करती है और रात्रि में बच्चों के बीच जाकर उपहार बाँटा करती है।
इंग्लैण्ड में लोगों की धारणा है कि उपहार प्रदान करने वाली यह प्रेतात्मा किसी को सताती नहीं बल्कि गरीबों का दुखड़ा दूर करती है।