स्कूल के प्रधानाचार्य के अनुसार कई लोग इस प्रेत को देख चुके हैं ।
कहते हैं उत्तरांचल के पहाड़ी कस्बे मसूरी के माउंट प्लीजेंट स्कूल के ठीक ऊपर विनबर्ग
एलन स्कूल में एक प्रेत रहता है जो स्कूल के मैदान में झूला झूलकर अपना मन बहलाता है।रात के सन्नाटे में जबकि पेड़ का पत्ता तक नहीं हिलता, लोग खाली झूले को तेजी से हिलते देखकर डर जाते हैं।
यहीं एक और जगह, कुछ अर पहले तक एक टूटे-फूटे मकान में, सफेद कपड़ों में एक सुंदर महिला अमावस्या की रात में दरवाजे पर इंतजार करती थी।
यह कोई नहीं जानता कि वह कौन थी और किसका इंतजार करती थी।
वहीं केमल के पीछे वाली सड़क पर भी भूतों का अड्ज है।
यह सड़क बादलों के अंतिम छोर तक जाती प्रतीत होती है विन्सेंट हिल पर एक पुराने टूटे-फूटे मकान के बारे में कहा जाता है कि वहां एक बड़ी-बड़ी दाढ़ी वाला बूढ़ा भूत-प्रेतों का सरदार है।
अच्छी हवेलियों में से एक मुलिंगर और मसूरी में एक पुराना मकान है जो आयरिश कैप्टन यंग, जिसने पहली गोरखा बटालियन का उसके शुरुआती दौर में संचालन किया था, का घर था।
इस हवेली के बारे में मशहूर है कि चांदनी रातों में यहां पर एक प्रेत जैसा घुड़सवार देखा जा सकता है और वह कैप्टन यंग है जो अपने पुराने अड्डे को देखने आता है।
नवाबों का शहर लखनऊ भी भूतों की साझेदारी में शामिल है ।
नवाब तो अब रहे नहीं, पर उनके भूत अभी भी अक्सर लोगों को दिख जाते हैं।
भूतों के नजारे वाला एक ऐसा ही ठिकाना सन् 1775 में नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा ब्रिटिश अधिकारियों के स्वागत के लिए बनवाया गया था।
1857 के एक विद्रोह में उनका परिवार समाप्त हो गया था।
सन् 1970 से यहां काम कर रहे एक व्यक्ति का कहना है कि इन आत्माओं को देखा तो नहीं जा सकता, लेकिन सुना जा सकता है।
आम जनता के लिए अब बंद हो चुके इस तहखाने में रात के बजे से सुबह सूरज निकलने तक उनकी आवाजें सुनी जा सकती हैं।
रेजिडेंसी के कमांडर मेजर जनरल हेनरी लॉरंस एक समय यहां अपनी बीवी-बच्चों के साथ रहते थे।
उनकी पत्नी जूलिया लॉरैंस को मृत्यु के बाद इसी के पास के कत्रिस्तान में दफनाया गया था।
यहीं काम करने वाले कर्मचारी भूत-प्रेत के शिकार हो चुके हैं ।
कब्रिस्तान की देखभाल करने वाले एक कर्मचारी को एक बार लघुशंका की हाजत हुई फिर तो जैसे उसकी जिंदगी नर्क हो गई।
एक बार दिन में उसका मुंह दीवार से रगड़ा गया और उसकी खाट से उसे ऊपर-नीचे फेंका गया था।
जब उसकी हालत बहुत बिगड़ गई तो उसे दिलखुश गार्डन में ट्रांसफर कर दिया गया।
एक बार घर लौटते फेक महावीर प्रसाद को लगा जैसे कोई कब्रिस्तान की तरफ से उसके ऊपर पत्थर बज लौटते वक्त भी उसे अजीब-अजीब आवाजें सुनाई दीं किसी इतत सब हु महसूस नहीं हुआ लेकिन प्रसाद को अपना रास्ता बदलने के लिए कुछ काफी था।
पुरातत्वविद् डॉ. शरत श्रीवास्तव हालांकि इन सब बातों में विश्वास नहीं करते, लेकिन उनके लिए यह बता पाना भी मुश्किल है कि एटकिनस गार्ड पर आयोजित उनकी प्रदर्शनी बिना किसी वजह के क्यों जल गई थी।
कई लोगों का मानना है कि कुछ वर्ष पहले एक बिना सिर वाला अंग्रेज व्यक्ति अखबार के बारे में रातों को लोगों से पूछता फिरता था और जब उसे यह दे दिया जाता तो वह दूर चला जाता।
सैयद कासिम बाबा की प्राचीन मजार भी भूत-प्रेतों की गवाह है।
लोग कहते हैं कि बाबा अक्सर एक बरगद के पेड़ के नीचे सफेद लबादे में शांति से घूमते हुए दिखाई देते हैं और अंततः गायब हो जाते हैं।
ऐसे किस्सों में कितना सच है और कितना झूठ कहना मुश्किल है ।
मगर लगता है जब तक मानव जाति का अस्तित्व है तब तक दिवंगत आत्माएं भी रहेंगी और कभी डर तो कभी अचरज पैदा करती हुई।