अस्तित्व का जीवंत प्रतीक

दूसरी दुनिया के अस्तित्व का जीवंत प्रतीक

आस्ट्रेलिया में एक व्यक्ति एक ही समय में दो स्थानों पर देखा गया और एक नहीं अनेक बार देखा गया।

इस बात की वैज्ञानिक पुष्टि भी हो गई थी। घटना सन्‌ 1937 की है। वसंत के मौसम की बात है, लुइस रोजर्स नाम का एक व्यक्ति एक ही समय में दो स्थानों पर पाया गया जबकि दूसरा स्थान पहले से 500 मील दूर था।

इस रहस्य के कारण वहां तरह-तरह की अफवाहें फैली हुई थीं।

ऐसा माना जाने लगा कि यह रहस्यमय व्यक्ति दूसरी दुनिया के अस्तित्व का जीवंत प्रतीक है।

इस रहस्य की परतों को खोलने के लिए अनेक वैज्ञानिक, परामनोविद्‌, डॉक्टर और पुलिस तक ने रोजर्स की कड़ी जांच-पड़ताल की।

अनेक बार उनका पीछा किया और निगरानी में रखा गया, उसके एक-एक संपर्क का पता लगाया गया।

एक दिन रोजर्स अपने कमरे में कड़े पहरे में बैठा था कि एक खोजकर्ता का फोन आया और उसने बताया कि सिडनी में हूबहू रोजर्स ही सड़कों पर घूमता हुआ पाया गया।

उस समय विशेषज्ञ भी इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाए।

लुइस रोजर्स 1931 में इंग्लैण्ड से आस्ट्रेलिया आया था। 30 वर्षीय आकर्षक व्यक्तित्व वाला यह युवा मेलबोर्न में एक अलोकदर्शी के रूप में स्थापित हो गया।

रोजर्स उन वृद्ध महिलाओं में अधिक लोकप्रिय हो गया जो अपने मृत पति अथवा किसी परिजन की वापसी चाहती थी।

रोजर्स किसी मृत व्यक्ति से मिलवाने के लिए संबंधियों से शुल्क लिया करता था।

अधिकांश लोगों में अफवाहें फैली हुई थी कि उसके पास कोई “जादूई हवा' है।

पूछने पर वह उत्तर देता था कि, “मैं आत्माओं की कद्र करता हूं।

जहां वे मुझे बुलाती हैं, मुझे वहां जाना ही होता है।' जब ग्राहक एक-दूसरे से मिलते तो अपने मूल संबंधियों से हुई भेंट के बारे में चर्चा करते थे।

बातचीत के अंश कुछ इस प्रकार से होते थे।

एक कहता था कि गत बुधवार को रोजर्स मेरी बहन से मिले थे और उससे लंबी चर्चा भी कौ, तब दूसरी कहती थी कि उस समय तो रोजर्स मेरे मृत पति को घर पर लाए थे।

ऐसी अफवाहें बड़ी तेजी से फैलने लगी कि वह दूसरी दुनिया का जीवंत प्रतीक है।

जब ग्राहक इन अफवाहों के बारे में उससे पूछते तो अपने लंबे काले बालों पर हाथ फेरता और उदासी भरी रहस्यमयी मुस्कान छोड़ देता था।

रोजर्स की एक साथ दो स्थानों पर मिलने की घटनाएं बढ़ने लगीं, तो लोगों ने यह पाया कि यदि “पहला रोजर्स' जोशीला और ऊर्जावान दिखाई देता तो दूसरा तटस्थ और विचलित लगता था।

इन अफवाहों को सुनकर आस्ट्रेलिया स्थित “विक्टोरिया अतींद्रिय अनुसंधान केंद्र' के निर्देशक डॉ. मार्टिन स्पेंसर ने अपने संस्थान के वैज्ञानिकों को रोजर्स का परीक्षण करने का अनुरोध करने भेजा।

परंतु रोजर्स ने इस प्रकार के परीक्षणों को यह कहकर अस्वीकृत कर दिया कि 'उसके ग्राहक उसका आदर करते हैं और उसमें विश्वास रखते हैं ।

इसलिए वह वैज्ञानिक परीक्षणों की अनुमति देकर अपने भविष्य को संकट में नहीं डाल सकता है।

रोजर्स द्वारा वैज्ञानिक परीक्षणों को अस्वीकृत करने से वैज्ञानिकों की इस धारणा को बल मिला कि इसमें सच्चाई कम और षड्यंत्र अधिक है।

पुलिस भी उस समय अधिक सक्रिय हो गई कि शायद कोई गोपनीय युक्ति अपनाई गई हो।

डॉ. स्पेंसर ने कुछ समय बाद रोजर्स को वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए राजी कर ही लिया।

परीक्षणों का आरंभ अप्रैल 1937 से हुआ और यह भी तय हुआ कि रोजर्स तीन सप्ताह तक मेलबोर्न नहीं छोड़ेगा।

डॉ. स्पेंसर ने रोजर्स की हर गतिविधि पर दृष्टि रखना आरंभ किया। परीक्षण आरंभ करने के तीन दिन बाद अप्रैल में सिडनी के एक जांचकर्त्ता ने फोन किया कि लुइस रोजर्स नामक एक व्यक्ति सिड़नी के एक होटल में ठहरा हुआ है।

जैसे ही जांचकर्त्ता ने होटल के उस कमरे का दरवाजा खटखटाया वैसे ही उसमें से एक आकर्षक व्यक्त ने द्वार खोला और तपाक से उत्तर दिया-- हां, मैं लुइस रोजर्स हूं और अभी-अभी मेलबोर्न से आया हूं।

उत्तर सुनकर जांचकर्ता एकदम विस्मित हो गया और उसने तुरंत डॉ. स्पेंसर को फोन किया कि रोजर्स तो यहां है। जबकि स्पेंसर का कहना था कि रोजर्स तो मेरे साथ खाना खा रहा है।

डॉ. स्पेंसर जानते थे कि एक जैसे चेहरे वाले दो व्यक्ति ऐसा छलावा कर सकते हैं। यह आशंका उन्होंने रोजर्स के सामने व्यक्त की तो रोजर्स ने उत्तर दिया कि 'मैं इन सब बातों से थक गया हूं।

2 अप्रैल को अंतिम बार यह सिद्ध कर दूंगा कि यह अद्वितीय शक्ति है।

उसके बाद कृपया मुझे मुक्त कर दीजिएगा।'

12 अप्रैल को रोजर्स को कड़े पहरे में डॉ. स्पेंसर के कार्यालय में लाया गया।

वहां उपस्थित तीन गवाहों के समक्ष रोजर्स ने डॉ. स्पेंसर से कहा कि आपके मस्तिष्क में पहले पहल उठने वाले शब्द को कह दीजिए, यह शब्द हमारे परीक्षण का ' कोडवर्ड ' होगा।

इस पर डॉ. स्पेंसर ने तत्काल कहा 'लिलेक '।

कार्यालय के सभी लोग किसी चमत्कार को देखने के लिए लालायित हो उठे थे।

लगभग एक घंटे बाद डॉ. स्पेंसर के प्रतिनिधि का फोन था कि उसने रोजर्स जैसे किसी व्यक्ति को सिडनी की सड़कों पर देखा है।

यह सुनकर डॉ. स्पेंसर और दूसरे सभी लोग एकदम चकित हो गए, परंतु रोजर्स बड़ी ही निश्चिंतता से खिड़की के बाहर देख रहा था।

मानों उसे इन सभी बातों से कोई मतलब नहीं हो। ठीक एक घंटे बाद डॉ. स्पेंसर के प्रतिनिधि का सिडनी से फोन आया।

डॉ. स्पेंसर ने चोगा हाथ में लिया तो दूसरी ओर से आवाज आई कि ' मैं रोजर्स बोल रहा हूं।

मेरा कोडवर्ड है 'लिलेक ' । जबकि स्पेंसर के पास बैठा रोजर्स खिड़की की ओर बाहर की तरफ देख रहा था।

रोजर्स की आस्ट्रेलिया आर्मी की सेवा करते हुए सन्‌ 1994 में मृत्यु हो गई और यह रहस्य भी उसके साथ ही चला गया।