प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था।
हैरोल्ड ओवन उस समय 'एचएमएस आस्ट्रिया' नामक समुद्री जहाज के कप्तान थे।
अपनी समुद्री यात्राओं तथा युद्ध के दौरान उनके साथ अलौकिक घटनाएं घटित हुईं, जिन्हें उन्होंने एक पुस्तक का रूप दिया।
विचित्र तथा प्रमाणिक घटनाओं को पुस्तक “जर्नी फ्राम ऑब्सक्यूरिटी ' में उन्होंने अपने भाई की मृत्यु से संबंधित एक अद्भुत घटना का विवरण दिया है।
सहज परिस्थितियों में जीवबनयापन करते हुए जिस प्रकार स्थूल शरीर कई कार्यों को करने में असमर्थ तथा विवश होता है, वास्तव में वह उतना असमर्थ नहीं... ।
यदि किसी व्यक्ति के सिर पर बोझ लाद दिया जाए तो निश्चित ही उसकी गतिविधियां मंद पड़ जाएंगी और बोझा हटाते ही वह पुन: पूर्ण शक्ति के साथ सक्रिय हो उठेगा।
ठीक यही बात हमारे सूक्ष्म शरीर पर भी लागू होती है।
सूक्ष्म, स्थूल से अधिक शक्ति संपन्न है, परंतु उस पर हमारी अतृप्त वासनाओं का बोझ पड़ा है ।
यदि हम उसे हटा दें तो ऐसे अलौकिक चमत्कार सामने आएंगे कि सूक्ष्म अलौकिक सत्ता के अस्तित्व पर विश्वास और भी गहरा हो जाएगा।
कई बार ऐसे भी क्षण आते हैं जब मनुष्य की चेतना ऐसी विचित्र परिवर्तित स्थिति में पहुंच जाती है कि सूक्ष्म शरीर द्वारा किए गए कई अविश्वसनीय व अद्भुत विचित्र घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें देखा गया है कि सूक्ष्म शरीर के स्थूल से स्वतंत्र होते ही (मृत्यु को प्राप्त होते ही) सूक्ष्म शरीर, जीवन में अपने सबसे प्रिय व्यक्ति के पास जा पहुंचा और उसे अपनी मृत्यु का आभास देकर पुन: गायब हो गया।
परामनोविज्ञान की भाषा में ऐसी विचित्र घटनाओं को आपातकालीन प्रेत-दर्शन (क्राइसिस एपरीशन) कहा गया है।
ओवन के साथ भी कुछ ऐसी ही विचित्र घटना घटी जब अचानक एक दिन उसने अपने भाई को सैनिक पोशाक में अपने ही कमरे में बैठे देखा।
हैरोल्ड ओवन का जहाज 'एचएमएस आस्ट्रिया' टेबुल की खाड़ी पर पहुंच चुका था।
युद्ध समाप्त हो गया था।
चारों ओर शांति का साम्राज्य महसूस किया जा सकता था।
ओवन ने खाड़ी पर ही लंगर डाल दिया और कुछ दिन वहीं विश्राम करने का कार्यक्रम बनाया।
युद्ध समाप्ति की घोषणा हो ही चुकी थी।
प्रथम विश्वयुद्ध में जो नरसंहार हुआ था, उसमें मरने वालों को संख्या का अंदाजा लगाना मुश्किल था।
वर्षों से युद्धरत सैनिक शीघ्रातिशीघ्र अपने-अपने घरों में लौट जाना चाहते थे...अधिकांश सैनिकों को तो यह तक पता नहीं था कि उनके घर-परिवार में अब कोई जीवित है भी या नहीं ।
टेबुल की खाड़ी पर हैरोल्ड ओवन का जहाज लंगर डाले खड़ा था और एक निश्चय हो चुका था कि वहीं पर कुछ दिन विश्राम किया जाएगा।
परंतु ओवन न जाने क्यों बहुत उदास था। बहुत प्रयत्न करने पर भी उसे अपने मन की खिनन्नता का कारण समझ में नहीं आ रहा था।
शायद युद्ध के समय अपनी आंखों के सामने देखी गई युद्ध की विभीषिका इसका कारण रही हो।
अचानक उसने सोचा कि मन की खिन्नता मिटाने के लिए क्यों न आज की रात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाए।
इस विचार के मन में आते ही उसने इसे क्रियान्वित रूप देने की सोची । सभी को इस प्रीतिभोज में आमंत्रित किया गया। सभी प्रसन्न थे। खुशनुमा माहौल था। कुछ लोग नाच रहे थे। परंतु इतना सब होने के बावजूद भी ओवन का मन उदास था।
वह अपने मन के बोझ को समझ नहीं पा रहा था। अचानक उसके मन में विचार आया...शायद अपने परिवार से बिछड़े लंबा समय गुजर गया, इसीलिए मन प्रसन्न नहीं है।
क्या पता उसके परिवार में सभी कुशल हैं कि नहीं...। ओवन का भाई विल्फ्रेड भी सेना में था।
वह सोचने लगा क्या विल्फ्रेड कुशल होगा ?
विल्फ्रेड का विचार आते ही वह उद्विग्न हो उठा।
उसने निश्चय किया कि रात के विश्राम के बाद वह कल ही अपने घर कैमरून के लिए रवाना होगा। भोजन के बाद उसने इस संबंध में आदेश भी दे दिए।
कैमरून पहुंचते ही उसने अपना घर सूना पाया। इसी बीच एक विचित्र बीमारी ने उसे आ घेरा। वह बिस्तर पर पड़ गया।
इसी बीमारी के दौरान उसे अद्भुत अलौकिक अनुभूतियां होने लगीं।
इस विचित्र अनुभव के बारे में ओवन ने लिखा है...एक दिन उसने अपने घर पर पत्र लिखने का विचार किया और ज्यों ही पत्र लिखने के लिए दूसरे कमरे में किसी प्रकार पहुंचा तो उसने सामने की कुर्सी पर अपने भाई विल्फ्रेड को देखा।
उसे इसकी कतई आशा नहीं थी क्योंकि विल्फ्रेड का इस तरह अचानक आना असंभव था...उसे देखकर ओवन वहीं ठिठक गया और आश्चर्यचकित हो विस्फारित नेत्रों से एकटक उसे देखने लगा।
उसके पूरे शरीर में विचित्र भय तथा अविश्वास से कंपकंपी दौड़ गईं। उसके हाथ- पैरों की शक्ति अचानक जैसे किसी ने खींच ली हो।
कांपते शब्दों में उसने पूछा-- “विल्फ्रेड...तुम...यहां, कब...कैसे आ गए... ? परंतु विल्फ्रेड बिना आंखें झपकाए...एकटक उसकी ओर देखता रहा... ।
उसने ओवन के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। ओवन को देखकर उसके शरीर में कोई हलचल नहीं हुई। वह मूर्तिवत् कुर्सी पर बैठा रहा।
ओवन के दोबारा पूछने पर उसके होंठों पर एक फीकी मुस्कान आई और लुप्त हो गई। परंतु उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
उसकी भाव-भंगिमा देखकर ओवन को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे विल्फ्रेड उत्तर देने का प्रयत्न कर रहा हो।
ओवन इस रहस्य को समझ नहीं पा रहा था। वह भयभीत हो रहा था। अपने बरसों के बिछड़े भाई विल्फ्रेड को अपने निकट पाकर वह प्रसन्न भी था और किसी अनिष्ट की आशंका से उंसका तन-मन कांप भी रहा था।
अपनी शंका मिटाने के लिए ओवन ने एक बार उसके सामने खड़े होकर पुनः अपना प्रश्न दोहराया...परंतु फिर वही फीकी मुस्कान देखकर उसका मन डूबने लगा। ओवन आगे लिखता है कि उसे अपने भाई से असीम प्यार था।
उसकी वह उपस्थिति उसे सुख पहुंचा रही थी। उसने पता लगाने की कोशिश की कि वह अचानक किस प्रकार पहुंचा जबकि मन ही मन इस बात से संतुष्ट था कि उसका भाई उस तक पहुंच गया है।
परंतु अचानक उसने देखा कि विल्फ्रेड तो अभी तक अपनी युद्ध की सैनिक पोशाक ही पहने है जो जगह- जगह से फट चुकी है और फटी जगह से उसके शरीर से खून के कुछ कतरे भी रिस रहे हैं...जैसे कि वह अभी-अभी युद्ध से लड़ते-लड़ते भागकर वहां पहुंचा हो। यह सब देख ओवन के माथे पर पसीने की बूंदें चमचमा उठीं।
भाई को फटी सैनिक पोशाक देखकर उसने एक नजर कमरे के चारों तरफ दौड़ाई।
अचानक उसके मन में विचार कौंधा कि युद्ध तो कब का समाप्त हो गया है और विल्फ्रेड ने अभी तक ऐसे कपड़े क्यों पहने हुए हैं।
फिर उसकी नजर कुर्सी पर वापस पहुंची जहां विल्फ्रेड बैठा था।
तभी उसे अपने पैरों तले जमीन खिसकती प्रतीत हुई ।...कुर्सी खाली थी।
विल्फ्रेड लुप्त हो चुका था। परंतु एक विचित्र बात और हुई।
थोड़ी देर पहले ओवन को अपने शरीर में जो परिवर्तन लग रहा था, अब समाप्त हो गया था। वह स्वस्थ महसूस करने लगा था।
लेकिन उसे अनिष्ट की आशंका होने लगी कि कहीं कुछ ऐसी हानि हुई है जिसकी भरपाई संभव नहीं।
अत्यधिक थकान तथा कमजोरी महसूस करते हुए ओवन को नींद आने लगी परंतु जब वह नींद से जागा तो पता नहीं क्यों उसे ऐसा आभास होने लगा कि विल्फ्रेड...उसका भाई अब इस दुनिया में नहीं है।
आशंका सही साबित हुई कुछ ही दिन बाद सैनिक मुख्यालय से विल्फ्रेड की मृत्यु का संदेश उसके घर पहुंच गया।
युद्ध के पश्चात हृदय गति रुकने से विल्फ्रेड का एक अस्पताल में देहांत हो गया था।