हाल ही में जोसेफ स्ट्रोट नामक एक वैज्ञानिक ने ब्रिटिश पत्रिका “न्यू साइंटिस्ट ' में यह विचार व्यक्त किया कि 21 वीं सदी के अंत तक मृत व्यक्तियों के हिमीकृत शरीरों में पुन: प्राण फूंके जा सकते हैं।
स्ट्रोट महोदय का कहना है कि ऐसा तभी संभव होगा जब पुन: जीने की इच्छा रखने वालों के मृत शरीर को ज्यों- का-त्यों किसी हिमीकरण यंत्र में सुरक्षित रखा जा सके ताकि भविष्य में जब वैज्ञानिक मृत शरीर को जीवित रखने संबंधी उपाय खोज लें तो उन्हें पुनर्जीवित किया जा सके।
दरअसल इस परिकल्पना का बीजारोपण अमरीका के मिशीगन विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक रॉबर्ट एटिन्जैर ने 1964 में अपनी पुस्तक 'द प्रास्पक्ट ऑफ इमॉर्टिलिटी ' में ही कर दिया था।
एटिन्जैर ने अपनी पुस्तक में यह दावा किया कि मृत्यु के बाद शरीर को पुन: जीवित किया जा सकता है।
कुछ इसी तरह का विचार 'बायोटाइम ' नामक कंपनी के मुखिया पाल सेगल का भी है जो यह मानते हैं कि जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा मृत शरीरों को पुनर्जीवित करने का उपाय खोजा जा सकेगा बशर्ते वे मृत शरीर हिमीकरण विधि द्वारा अच्छी तरह संरक्षित हों।
इस विचारधारा के पनपते ही अमरीका में तीन ऐसी कंपनियां भी खुल गईं जो मृत शरीरों को तब तक संरक्षित करने का अनुबंध करने लगीं जब तक वैज्ञानिक उन्हें पुन: जिंदा करने संबंधी उपाय खोजने में सफल न हो जाएं।
अनुमानतः अब तक ऐसे धनी लोगों की संख्या एक हजार से अधिक पहुंच चुकी है जो अपने शरीर को मृत्यु के बाद संरक्षित करने के लिए इन कंपनियों से अनुबंध कर चुके हैं।
इस समय इन कंपनियों में सौ से अधिक लोगों के मृत शरीर एक निश्चित तापमान पर शीतकक्षों में संरक्षित हैं।
फिलहाल मृत शरीर को संरक्षित करने के लिए लगभग एक करोड़ रुपये के बराबर धनराशि खर्च करनी पड़ती है।
इस सबके बावजूद दुनिया के अनेक जीव वैज्ञानिकों की दृष्टि में मृत शरीर को पुनर्जीवित करने संबंधी विचार अव्यावहारिक व मूर्खतापूर्ण है। उनका कहना है कि जब हम बुढ़ापे को ही नहीं रोक पा रहे हैं तो मृत्यु को भला कैसे रोक सकते हैं।
मान भी लिया जाए कि विज्ञान सौ साल बाद ऐसा चमत्कार कर भी लेता है तो तब का समाज कितना अजीब होगा।
गरीब तो तब भी दवा के अभाव में मरते रहेंगे लेकिन धन-कुबेरों की मृत्यु होकर भी नहीं होगी क्योंकि वे लोग पहले ही अमरीको कंपनियों को अपने मृत शरीर को पुनर्जीवित करवाने के लिए अनुबंधित कर चुके होंगे।
फिर ऐसी कंपनियां और भी कई देशों में खुल जाएंगी।
तब यह हालत होगी कि कोई भी अमीर-गरीब मरना ही नहीं चाहेगा क्योंकि अमरता तो मनुष्य की शाश्वत और शायद अंतिम इच्छा है।
फिलहाल अभी ऐसा कुछ साकार होने नहीं जा रहा है और अगर सौ साल बाद ऐसा हो भी गया तो आज के हालातों को देखते हुए यह सहज सोचा जा सकता है कि तब की दुनिया कैसी होगी।