कल्पना कीजिए आप ऑफिस में टेबल पर रखी फाइलों और कागजों में डूबे हों और सामने की फाइल हटाते ही मेज पर लगे शीशे से यकायक कोई चेहरा झांकने लगे तो ?
या फिर रसोई की ग्रेनाइट-स्लैब पर अचानक ही कोई चेहरा उभरकर आपकी श्रीमती जी को घूरने लगे तो ?
जाहिर है पहली बार आप और आपकी पत्नी बेशक परेशान न हों।
ये भी संभव है आप इसे आंखों का भ्रम समझ आया-गया कर दें, पर अगर कोई कहे कि ये तो किसी की आत्मा है या हो सकती है तो आप क्या कहेंगे ?
ऐसी ही एक घटना स्पेन की श्रीमती मारिया परेरा के साथ 1971 में उनकी रसोई में ही घटी थी। उस चेहरे को देखकर श्रीमती परेरा थोड़ी अचंभित तो हुईं, पर आंख का भ्रम समझकर फिर से अपने काम में लग गईं।
थोड़ी देर बाद उन्होंने नजर घुमाई तो भी वो चेहरा जस-का-तस वहां बना हुआ था।
इस पर श्रीमती परेरा ने सोचा, शायद स्लैब पर जमी गर्द पर पड़े निशानों से वहां चेहरे जैसा कुछ बन गया हो।
लिहाजा उन्होंने उसे झाड़-पोंछ और रगड़कर मिटाना चाहा, लेकिन चेहरा अपनी जगह अमिट रहा।
वह एक महिला का चेहरा था और उस पत्थर में एकदम साफ दिख रहा था। अब तो श्रीमती परेरा परेशान हो गईं।
लोगों की सलाह पर उन्होंने वहां सीमेंट का नया प्लास्टर तक करवा डाला, पर वो चेहरा उस प्लास्टर में से भी झांकने लगा।
बल्कि अब तो रसोई में दीवारों और फर्श से भी चेहरे झांकने लगे।
खास बात ये थी कि कभी ये चेहरे गायब हो जाते, लेकिन थोड़ी देर बाद फिर दिखने लगते। उनकी भाव-भंगिमाएं भी बदली हुई होने लगीं। अब तो श्रीमती परेरा की रसोई के चेहरों की खबर दूर-दूर तक फैल गई ।
शहर भर के लोग भी उनकी रसोई में झांकते चेहरों कौ एक झलक पाने के लिए कतार बांधे खड़े रहने लगे।
उधर श्रीमती परेरा को न जाने क्या सूझी कि उन्होंने हर ऐसे मेहमान से फीस वसूलनी शुरू कर दी।
जब ये खबर नगर- अधिकारियों तक पहुंची तो उन्होंने हस्तक्षेप करके देखने-दिखाने का ये सिलसिला बंद करवाया।
संयोगवश उन्हीं दिनों जर्मनी की फ्री-बर्ग यूनिवर्सिटी के नामी परामनोवैज्ञानिक डॉ. हैंस बैंडर उस शहर में आए हुए थे।
श्रीमती परेरा की किचन-मिस्ट्री का किस्सा उन तक भी पहुंच चुका था।
अत: उन्होंने स्पेन के ही एक परामनोवैज्ञानिक डॉ. जर्मन डे अर्गुमोसा के साथ मिलकर इस मामले की छानबीन शुरू कर दी। अंततः बैंडर और अर्गुमोसा की टीम ने वहां पर किसी आत्मा के होने की प्रबल संभावना जताई ।
इस बीच श्रीमती परेरा ने दूसरी नई रसोई बनवा ली थी, पर कुछ दिनों बाद ये अजूबा वहां भी होने लगा।
डॉ. अर्गुमोसा ने स्वयं 9 अप्रैल, 1974 को एक ऐसे चेहरे को न सिर्फ देखा, बल्कि उसकी तस्वीर भी खींची।
आंखों देखी और दस्तावेजी सबूतों के चलते इस घटना को दृष्टिभ्रम तो नहीं कहा जा सकता। ऐसा क्यों होता था, इसका जवाब आज तक नहीं मिल सका है।
लेकिन श्रीमती परेरा की उस रसोई का फर्श खोदने पर वहां दफन कुछ पुरानी हड्डियां जरूर मिलीं । यह भी सुनने में आया कि जिस जमीन पर वो घर बना था, कभी वहां एक कब्रगाह था।