ग्रेसी इस अस्पताल में कभी मेट्रन थी, लेकिन अब उसकी प्रेतात्मा मरीजों की देखभाल करती है और जैसा कि भूतों के बारे में प्रचलित है कि वे रात में ही सक्रिय होते हैं,
ग्रेसी की प्रेतात्मा भी रात को ही अपनी ' ड्यूटी ' निभाती है।
प्रिंस हेनरी अस्पताल सिडनी शहर से दूर समुद्र तट के पास लिटिल बे में स्थित है। इसकी स्थापना 1881 में की गई थी।
पहले इसका नाम 'द कोस्ट हास्पिटल ' था, लेकिन 1934 में ग्लाउसेस्टर के ड्यूक हेनरी के आगमन पर यह नाम दिया गया।
1960 के दशक में इसका पुनर्निर्माण और विस्तार हुआ और यह आज भी मौजूद है। साथ ही मौजूद हैं इसके अनेक प्रेत-प्रसंग भी ग्रेसी की प्रेतात्मा की इस नाइट-ड्यूटी के खास गवाह अस्पताल के 'बी' ब्लाक के मरीज हैं।
इस वार्ड को आजकल 'डेलानी वार्ड' के नाम से जाना जाता है | यहां इलाज के लिए दाखिल मरीज बताते हैं कि आधी रात के बाद पुरानी शैली की सफेद नर्सिंग कैप सिर पर लगाए एक रहस्यमयी नर्स वार्ड में आती है और उनकी सेवा करती है।
वह उनके खाली गिलासों में पानी भरती है, सर्द रातों में उन्हें ठीक से कंबल ओढ़ाती है, जरूरत पड़ने पर उनके नीचे बैड-पैन रखती है और इस्तेमाल होने के बाद उन्हें हटाती भी है ।
मजे की बात यह है कि मरीजों को यह आभास तक नहीं होता कि एक प्रेतात्मा वार्ड में है और वही उनकी देखभाल कर रही है।
लेकिन वहां की नर्से इस हकीकत से वाकिफ हैं और उससे भयभीत भी रहती हैं। हालांकि ग्रेसी को दुष्ट आत्मा के रूप में कभी नहीं समझा गया, लेकिन वह उस जमाने का प्रतिनिधित्व करती है, जब नर्स का दबदबा रहता था।
इसलिए उसके डर से नर्से फटाफट उसके आदेशों का पालन भी कर डालती हैं।
कई मौकों पर नर्सों ने ग्रेसी की प्रेतात्मा की उपस्थिति महसूस की है।
उन्होंने महसूस किया है कि वह उनके कामकाज पर नजर रखती है।
जब भी वे कॉफी- ब्रेक लेती हैं, ग्रेसी उसे पसंद नहीं करती ।
एक बार तो दो नर्से दूध उबालने के लिए चूल्हे पर रख, वार्ड में झांकने चली गईं।
करीब एक-डेढ़ मिनट बाद वे लौटकर आईं तो चूल्हा बंद था।
बर्तन का दूध सिंक में फेंका जा चुका था और बर्तन ताजा- ताजा धोकर रखा गया था।
अब इतनी जल्दी तो ये सारा काम कोई प्रेतात्मा ही कर सकती थी।
ग्रेसी की प्रेतात्मा के इन कामों से उसकी छवि एक सहदय और सीधी- सादी समर्पित नर्स की बनती है।
पर वास्तविक जीवन में वह रूखे मिजाज और सनकी आदतों वाली नर्स थी।
वह इतनी नकचढ़ी थी कि किसी से रास्ते में छू जाने या टकरा जाने पर फौरन नहाने चली जाती थी।
इसी अस्तताल के 'बी' ब्लाक में लिपट की बेकार पड़ी एक शापर में रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में गिरकर उसकी मृत्यु हुई थी।
दरअसल इस अस्पताल की स्थापना टायफाइड, कोढ़ तथा चेचक जैसे अन्य संक्रामक रोगों के मरीजों के इलाज के लिए की गई थी।
हजारों मरीज यहां आए। कई ठीक हुए, तो काफी संख्या में मरे भी ।
ऐसे में ग्रेसी जैसी बिगड़ैल मृत्यु के बाद प्रेतात्मा बनकर जीवन-काल में किए अपने व्यवहार के लिए प्रायश्चित कर रही हो, तो आज आश्चर्य है! ग्रेसी की प्रेतात्मा के आने का भी एक निश्चित समय है ।
वह रात को ठीक दो बजे ही आती है और उस वक्त घड़ी की सुइयां रुक जाती हैं।
ग्रेसी की प्रेतात्मा के बाद अगर किसी दूसरी आत्मा की चर्चा होती है तो वह है एक आदिवासी लड़के की आत्मा।
यह आत्मा भी इस अस्पताल के “बी” ब्लॉक में विचरती है। लेकिन वह ब्लॉक्म की पीढ़ियों पर ही आकर बैठती है और यहां आने-जाने वाली नर्सो व दूसरे लोगों के सथ बालसुलभ छेड़छाड़ करती है।
कभी वह सीढ़ियों पर बैठा खिलखिलाता दिखता है।
इन दो प्रेतात्माओं के अलावा और भी कई आत्माओं के किस्से इस अस्पताल से जुड़े हैं।
आए दिन कुछ-न-कुछ ऐसा सुनने-देखने में आता रहता है, जिससे इस धारणा कौ पुष्टि होती है कि यहां एक-दो नहीं कई आत्माएं विचरती हैं। कभी किसी ने किसी उपकरण का स्विच ही ऑफ कर दिया।
एक आत्मा किसी भारी-भरकम व्यक्ति की है।
गलियारों की दीवारों पर उसके पद्चिह्न उसके भारी पांवों की कहानी कहते हैं । इस आत्मा की पहचान नहीं हो सकी है।
अस्पताल में बंद पड़े खाली वार्डों से नर्सों को बुलाने के लिए बजर सुनाई पड़ते हैं।
इतना कुछ होने के बावजूद अस्पताल में काम करने वालों और इलाज करवा रहे मरीजों को कोई परेशानी नहीं होती । उनके लिए ये एक सामान्य और रोजमर्रा की बातें हो गई हैं ।
लेकिन सवाल उठता है कि एक ही जगह पर इतनी आत्माओं का डेरा क्यों ?
इसका जवाब भी शायद अस्पताल के पिछवाड़े बने उसके पुराने और खासे बड़े कब्रिस्तान में है, जहां कभी एक हजार से ज्यादा विभिन्न लोगों को दफनाया गया था।