लक्ष्मी बाई की साहस

सदाशिव राव होल्कर को पराजित करने के बाद रानी निश्चित होकर नहीं बैठ गयी।

उसका भावी कार्यक्रम ज्यों का त्यों चलता रहा।

वह अंग्रेजों की ओर से पूर्णतया सावधान थी और यह साहस रखती थी कि उनका खूब डटकर मुकाबला करेगी।

ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से रानी को जो भय था।

वह तो शीघ्र सामने नहीं आया; लेकिन एक दूसरा शत्रु उसके सामने मैदान में आ गया।

यह था ओरछा राज्य का दीवान। इसकी नियत बहुत दिनों से अच्छी नहीं थी।

यह झांसी पर घात लगाए बैठा था और मौके की तलाश में था।

वही उसने सुना कि झांसी के किले में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों को मौत के घात उतार दिया है और रानी ने किले पर अधिकार कर लिया।

राज्य वही चला रही थी। सदाशिव राव होल्कर को उसने पराजित कर दिया। तो उसने नत्थेखां को ओरछा राजा की तरफ से झांसी के किले पर हमला करने भेजा।

रानी के गले में हीरों की माला थी। वह वीर सेनानी लग रही थी।

उसके चेहरे पर तेज था। उसने ढीला रेशमी पैजामा पहन रखा था। उसकी कंचुकी कमर तक फैली थी।

उसकी कमर में अगल-बगल दो पिस्तौलें लटकतीं वे चांदी से मढ़ी थीं।

रानी चोली पहनती चादर डालती। उसकी पोशाक निराली थी। वह सिर पर ताज नहीं टोपी पहनती थी।

और वह रेशमी टोपी लाल और मोतियों से जड़ी होती। रानी सचमुच इस लिवास में देवकन्या मालूम होती।

युद्ध भूमि में रानी ने नत्थे खां के दांत खट्टे कर दिए। उन्होंने बड़ी चतुराई से काम लिया।

नत्थे खां को अच्छी तरह छकाया।

आखिर हार मानकर उसे पीछे लौटना पड़ा। पराजित होकर भी वह रानी के आकर्षक व्यक्तित्व से मुकाबले हुए बिना नहीं रहा। उसने रानी के युद्ध कौशल की बड़ी प्रशंसा की।

लेकिन मुंह की खाकर गया था नत्थे खां, वह चुप नहीं बैठा वह अपनी फरियाद लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी की रेजीडेंसी में गया।

वहां रोया-धोया और अंग्रेजों को उकसाया कि वे झांसी पर आक्रमण करें और किला अपने अधिकार में ले लें।

शत्रुओं को हराकर रानी ने दस महीने तक निष्कंटक राज्य किया। उसने प्रजा की सुख शांति के लिए अनेक उपाय किए। और उस पर काफी ध्यान दिया।

अपराधियों की उसने दंड दिया और सेना के संगठन पर भी काफी जोर दिया। इसमें उसे पूरी-पूरी सफलता मिली।

रानी नगर का गश्त कभी-कभी स्वयं करती। वह अंग्रेजों के गुप्तचरों को कड़ी सजा देती। उनके षड्यंत्र चलने नहीं देती, उनसे सावधान रहती। वह आगामी आपत्ति से पहले ही आगाह थी।

उसने अपनी सेना को खूब अच्छी तरह सुशिक्षित और सुसंगठित कर लिया था।

उसकी सेना में भरती निरंतर जारी थी। वह सहयोग भी प्राप्त कर रही थी नगर के गणमान्य लोगों का।

हर रईस देश की सुरक्षा के लिए दान दे रहा था। वह छोटा-मोटा कोष रानी के लिए संतोष की निधि था।

सुंदर को उसने उस योग्य बना लिया था कि वह एक कुशल सेना पाने का कार्य सुचारु रूप से कर सकती थी। मुंदर अपनी दूसरी कला में दक्ष थी। वह व्यूह रचना में अपना कमाल दिखलाती।

इस तरह एक छोटी सी सेना भी बड़ी सेना का मुकाबला कर सकती थी।

काशी तलवार चलाने में अपनी सानी नहीं रखती। वह घोड़े पर कूद कर बैठती और फिर सरपट दौड़ाती।

वह तेज से भी तेज दौड़ने वाले घोड़े का पीछा कर सकती थी। रानी इन तीनों को अपनी दाहिनी बांह समझती। वह गर्व के साथ कहती कि मैं अकेली नहीं मेरी चार भुजाएं हैं। रामचंद्र राव रानी के प्रमुख सेनानी थे। रानी को उनपर भी गर्व था। वे उनके बहुत ही अधिक विश्वासपात्र थे।

रानी की सेना में हिंदुओं की अपेक्षा मुसलमान सैनिक भी कम नहीं थे।

वह सबको समान दृष्टि से देखती और सबका आदर करती। उस समय देश का रुख कुछ और ही हो रहा था। हिंदू और मुसलमान दोनों परस्पर विरोधी भावनाएं भूल गए थे। वे आपस में संगठन की डोर में बंध रहे थे और उनका सम्मिलित प्रयास था कि देश से किसी तरह अंग्रेजों को निकालकर बाहर किया जाए।

रानी विषम परिस्थितियों से गुजर रही थी। तात्याटोपे ने उसे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए सहायता देने का वचन दिया था।

वह ईस्ट इंडिया कंपनी से टक्कर लेने के लिए पूरी तरह तैयार थी।

उसे प्रजा के हितों का भी ध्यान था। वह समाज सुधार के पक्ष में भी थी।

उसकी दृष्टि व्यापक थी। वह दूर की सोचती और केवल योजना बनाकर ही नहीं रह जाती उस पर पूरा-पूरा अमल करती।

जो रास्ता किसी को बतलाती उस पर आंख मूंदकर पहले ही चल देती।

उसके साहस का खजाना भरा था, वह जीवट की पुतली थी। कठिनाइयों से तनिक भी नहीं घबड़ाती। वह आपत्ति में भी मुस्कराती रहती थी।

रानी का रूप जो एक बार देख लेता वह भक्त बना जाता। उसमें तत्क्षण ही श्रद्धा का संचार होने लगता।

रानी का मुख-कमल वीरोल्लास से चमकता रहता था। उसकी वाणी में ओज था और गति में जादू। वह अपने शरीर को हाड़-मांस का नहीं फौलाद का समझती थी।

रानी यह सोच रही थी कि यदि उसकी सेना में और भी वृद्धि हो गई तो उसकी ताकत बढ़ जाएगी और वह अंग्रेजों का मुकाबला करने में कमजोर नहीं पड़ेगी।

इसके लिए समय चाहिए था।

नित्य नए समाचार सुनने को मिलते कि नत्थे खां अंग्रेजों की छावनी में जाकर फिर रोया है।

उसने जनरल रोज को उकसाया है कि वह झांसी पर हमला कर दे। रानी कंपनी सरकार के खिलाफ प्रचार कर रही है।

उसके दमन के लिए एक विशाल अंग्रेजी सेना लेकर चढ़ाई की जाए।

कामयाबी तभी मिलेगी। रानी के पास एक अच्छा तोपखाना है।

उसने बहुत सी तोपें किले की दीवार पर लगा रखी थीं।