शीघ्र ही जनरल रोज को रानी की चाल का पता लग गया कि वह अपने विश्वस्त सरदारों तथा सैनिकों के साथ कालपी गई है।
उसने फौरन ही लेफ्टीनेण्ट वॉकर को रानी का पीछा करने के लिए भेजा।
अपने साथ फौज की एक टुकड़ी लेकर वॉकर कालपी की ओर चल दिया।
रानी अपने साथियों के साथ भागी चली जा रही थी।
लेफ्टीनेण्ट वाकर उसका पीछा बहुत तेजी से कर रहा था।
पहले तो रानी और उसके सैनिकों ने सरपट घोड़े दौड़ाये, लेकिन फिर यह सलाह कि इस तरह अंग्रेज उनका बराबर पीछा करते जाएंगे।
इससे अच्छा होगा कि उनसे टक्कर ले ली जाए।
बस रानी रुक गई। वह खूब वीरता के साथ दोनों हाथों युद्ध करने लगी। जैसे किसान खेत काटता है वैसे ही उसके हाथ चल रहे थे।
उसकी दासियां भी रणचण्डी हो रही थीं, लगभग तीन घंटे बड़ा भीषण संग्राम हुआ।
वॉकर घायल हो गया। वह युद्धभूमि से भाग गया अंग्रेजी सेना कुछ मार दी गई, कुछ भाग गई।
रानी ने राहत की सांस ली। उसके साथ अब कुल बारह सैनिक रह गए थे ।
थोड़ी देर रानी ने विश्राम किया, फिर वह अपने साथियों सहित कालपी की ओर चल दी। चौबीस घंटे तक लगातार वह चलती रही। कालपी तक की एक सौ बीस मील की यात्रा उसने एक सांस में ही तय की। उसका घोड़ा बहुत थक गया था।
आधी रात के समय रानी कालपी पहुंची।
जैसे ही वह एक सुरक्षित जगह पर पहुंची कि घोड़ा गिर पड़ा और गिरते ही मर गया। रानी की आंखों में आंसू आ गए।
उसे दुःख के साथ ही साथ गर्व हो रहा था अपने प्रिय घोड़े पर कि उसने उसे उसकी मंज़िल तक पहुंचा दिया।
मनुष्य ही नहीं पशु भी स्वामिभक्त होते हैं, इसका अनुभव रानी को आज हुआ।
रानी वहीं बैठकर अपने साथियों से सलाह करने लगी।
पेशवा के यहां अभी पहुंचा जाय या प्रातःकाल इस पर विचार होने लगा। देर तक सन्नाटा रहा, फिर सुंदर ने अपना मत प्रगट किया।
वह बोली- “यहां पर रुकना खतरे से खाली नहीं है। हमें बेफिकर नहीं हो जाना है। अंग्रेज हमारा पीछा जरूर करेंगे, इसमें तनिक भी संदेह नहीं।
रानी को सुंदर की बात पसंद आई।
उसने अन्य साथियों की राय भी जाननी चाही। सबने यही कहा कि हमें इसी समय पेशवा के पास चलना चाहिए।
रानी उसी समय किले की ओर चल दी। जब वह किले के फाटकर पर पहुंची तो बड़ी दिक्कत हुई।
बड़ी कठिनाई के बाद परिचय देने पर फाटक खुला और वह अंदर जा पाई।
रानी राव साहब और पेशवा तांत्या टोपे से मिली।
उन दोनों ने जब रानी का हाल सुना तो बहुत दुखी हुए। वे अंग्रेजों से से युद्ध करने के लिए तैयार बैठे थे। अवसर की ताक में थे कि कब मौका मिले और वे फिरंगियों से लोहा लें।
लक्ष्मीबाई को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई। पेशवा तांत्या टोपे और राव साहब ने उसके साथ सहानुभूति का व्यवहार किया।
इससे रानी को बड़ी तसल्ली हुई।
उसके सभी साथी बहुत बुरी तरह थके हुए थे। सबने विश्राम किया। रानी भी कुछ-कुछ निश्चिंत हुई। उसे भी नींद आ गई।
सपने में रानी ने देखा कि झांसी आग की लपटों में जल रही है।
नगर में बड़ी अशान्ति फैल रही है। जिसे देखो वह शहर छोड़कर भाग रहा है। अंग्रेज जनता पर मनमाने अत्याचार कर रहे हैं। वह घोड़े पर बैठी भाग रही है।
आंखें खुलते ही रानी की आंखों में आंसू आ गए।
उसे अपने प्रिय घोड़े की याद आ गई।
उसने अपनी सेविकाओं को वह सपना बतलाया और फिर चिंता प्रगट करने लगी कि अब क्या होना चाहिए।
अभी उसे राव साहब से खुलकर बात करने का मौका नहीं मिला था।
तात्या टोपे पर उसे विश्वास था कि वह उसकी पूरी-पूरी मदद करेगा।
रानी ने मन ही मन ईश्वर का नाम लिया और फिर राव साहब से मिलने चल दी।
उसने यही सोचा था कि वह कालपी में रहकर अंग्रेजों से मोर्चा लेगी। तात्या टोपे एक कुशल योद्धा तथा सेनापति है। उसके साथ मिलकर वह फिरंगियों से युद्ध करेगी।
यही सब सोचती-विचारती रानी अपने दल सहित राव साहब के पास जा पहुंची।
तात्या टोपे वहां पहले से ही मौजूद था। रानी बैठकर दोनों के साथ विचार करने लगी कि अंग्रेजों से टक्कर किस तरह ली जाए।
कुछ भी हो उनका मुकाबिला खूब डटकर किया जाएगा।