रानी लक्ष्मीबाई की पीठ से दामोदर राव बंधा था।
उसके मुंह में घोड़े की लगाम दबी थी। वह तनिक भी सांस नहीं लेती।
दोनों हाथों तलवार चला रही थी। उसके सामने जो भी अंग्रेज सैनिक आया, वह बचा नहीं। रानी ने उसे मौत के घाट उतार दिया। अब रानी के साथ बहुत थोड़े से सैनिक रह गए थे। मगर फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी।
वह उसी रफ्तार से युद्ध करती रही।
उसने अंग्रेज सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए।
तात्या टोपे की सेना अगर लक्ष्मीबाई की सहायता के लिए पहुंच जाती तो अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ती, इसमें कोई संदेह नहीं।
अब दृश्य बड़ा अजीब था। रानी मन ही मन हैरान हो रही थी कि उसे क्या करना चाहिए।
उसने काशीबाई को संकेत किया, जिसका मतलब यह था कि अब देर न करो, जल्दी से मोर्चा तोड़कर निकल भागो।
काशीबाई ने अपने अन्य साथियों को यह बात संकेत से ही समझाई। बस देखते ही देखते रानी की सेना जुझारू युद्ध करने लगी। सबने अपने प्राणों का मोह छोड़ दिया।
तलवारें छप-छप बज रही थीं। घोड़े हिनहिनाते, घायल कराहते और सैनिक छलांग मारते, वे मुर्दो को कुचलते।
उन सबकी तलवारें रक्त-स्नान कर रही थीं।
सर यूरोज रानी के पास नहीं पहुंच पाया। और उसने देखते ही देखते अंग्रेजों का मोर्चा तोड़ दिया।
रानी निकल भागी। उसका घोड़ा सरपट दौड़ने लगा।
सुंदर, मुंदर और काशीबाई ये तीनों भी घोड़ों पर सवार थीं। रानी के विश्वस्त रामचंद्र और रघुनाथ सिंह भी अंगरक्षकों की तरह उसके दायें-बायें चल रहे थे।
अंग्रेजों ने इन सबका पीछा किया। मगर रानी के साथियों के घोड़े हवा से बातें कर रहे थे।
अंग्रेज हिम्मत हार गए। रानी उनके हाथ नहीं आई। रानी उनकी ओर से निश्चिंत हो गई। वह समझी कि शायद अंग्रेजी सेना वापस लौट गई है इसीलिए वह एक अवराई में रुक गई और अपने साथियों सहित विश्राम करने लगी।
युद्ध करते-करते रानी बहुत थक गई थी। उसके शरीर को इस समय आराम की जरूरत थी। उसकी आँखें लग गईं और उसके साथी भी आराम करने लगे। यह विश्राम रानी के लिए घातक सिद्ध हुआ।
उसने दूर गर्द उड़ती देखी। घोड़ों के टापों की आवाज उसके कानों में आने लगी। वह जोर से चिल्लाई कि सावधान, अंग्रेजी सेना आ गई।
रानी ने सोच लिया कि अब इस युद्ध में उसका अंत निश्चय है।
उसने जल्दी से दामोदर राव को अपनी पीठ से खोला और उसे रामचंद्र देशमुख के हवाले कर उसकी पीठ से बांध दिया।
उसने कहा-“अंग्रेजों की सेना बहुत बड़ी है, उससे अच्छी-खासी टक्कर होगी, इसलिए दामोदर राव को युद्ध के समय मेरे साथ रहना ठीक नहीं।
रामचंद्र तुम दामोदर राव को लेकर दक्षिण चले जाओ। तुम्हारी सुरक्षा के लिए मैं दो सैनिक तुम्हारे साथ भेजती ।
दामोदर राव रानी को देखकर रोने लगा तो वह घोड़े पर चढ़ी। उसने पुत्र का मुंह चूमा और उसे प्यार किया। और आंखों में आंसू भरकर बोली-“दामोदर रामचंद्र देशमुख तुम्हारे साथ है मैं अंग्रेजों से लड़गी रोना मत जाओ, मैं आकर तुम्हें तलवार चलाना सिखाऊंगी। आजकल लड़ाई के कारण तुम्हारा अभ्यास बंद है।"
इसके बाद रानी ने रामचंद्र देशमुख के कान में यह कहा-“मुझ पर कैसी गुजरेगी, इसका कोई ठीक नहीं, तुम जाओ।
अपने जीवन को दामोदर के अर्थ लगा देना। झांसी उसपर है, वह वहां का उत्तराधिकारी है, यह ध्यान रखना।"
इस तरह रामचंद्र देशमुख दामोदर राव को लेकर चल दिया।
अंग्रेजी सेना अब बिल्कुल समीप आ गई थी। रानी के साथ केवल इने-गिने सैनिक ही रह गए थे।
अंग्रेजों का मोर्चा बहुत तगड़ा था। एक बार वह विशाल सेना को देखकर चौंक गई। युद्ध के लिए वह पहले से ही कटिबद्ध थी। देखते ही देखते नर-संहार होने लगा।
रानी ने दिलेरी दिखलाई। वह घोड़ा दौड़ाती और मचल-मचलकर युद्ध करती।
काशीबाई का रूप भी विकराल हो रहा था। उसने सोच लिया कि अंग्रेजों के हाथ आने की बजाय हम लड़ते-लड़ते मारे जाएं, दुश्मन के छक्के छुड़ा दें, यही कहीं बेहतर है। वह रण संग्राम में चण्डीी सदृश लगने लगी।
मुंदर का भी रूप विशाल हो गया। और सुंदर के हाथों में बिजली भर गई थी। वह अंग्रेज सैनिकों के शिर तेजी से उड़ा रही थी।
रामचंद्र देशमुख जा चुका था। वह भी वीर योद्धा था। रघुनाथ सिंस युद्ध के समय बराबर इस बात का ध्यान रखे था कि रानी सुरक्षित रहे। उसकी जान की बहुत बड़ी कीमत है।
इसीलिए उसका घोड़ा रानी के पीछे लगा था। वह भी भीषण युद्ध कर रहा था। जो भी गोरा उसके सामने आता, वह फिर बचकर नहीं जाता।
युद्ध विकराल रूप धारण कर रहा था।
रानी का रूप उग्र हो रहा था। वह साक्षात् रणचण्डी लग रही थी। उसकी तलवारें देश की रक्षा में तत्पर थीं। उसका युद्ध-कौशल सराहनीय था।