बड़े घर की बेटी

बड़े घर की बेटी - प्रेमचंद्र की कहनी

आनंदी एक उच्च कुल की बेटी है

जिसका विवाह गौरीपुर गाँव के एक खस्ताहाल जमींदार के बड़े बेटे श्रीकंठसिंह से हुआ ।

श्रीकंठसिंह ने बड़ी मुश्किल से बी,ए, पास किया और एक दफ्तर में नौकरी हासिल की ।

वह सम्मिलित परिवार का हामी है, इसीसे अपने छोटे भाई लालबिहारी और अपने पिता बेनी माधवसिंह के परिवार के साथ मिलकर रहता है ।

एक दिन लालबिहारी अपनी भावज आनंदी को दो चिड़ियों का माँस पकाने को कहता है ।

आनंदी ने हांडी में कुल पाव-भर बचा घी माँस में डाल दिया ।

लालबिहारी ने भोजन करते हुए आनंदी से कहा- भाभी , दाल में घी नहीं डाला ?

आनन्दी बोली - हांडी में घी पाव-भर ही था, सो मैंने माँस में डाल दिया ।”

बस इतनी-सी बात पर दोनों में कहा-सुनी हो गई ।

लालबिहारी ने भाभी के मायके को लक्ष्यकर ताना मारा जिसे आनंदी सह न सकी और उसने भी कह दिया - मेरे मायके में तो रोज इतना घी नाई-कहार खा जाते हैं, कोई गिनता भी नहीं !

लालबिहारी तिममिला कर भाभी के खड़ाऊँ फेंक मारता है ।

वह तो आनंदी ने हाथ से रोक लिया, नहीं तो सिर-माथा फूट जाता ।

आनन्दी रो पड़ी ।

इधर लालबिहारी ने अपने पिता के आगे आनन्दी की बुराई की ।

बाप ने बेटे श्रीकंठसिंह से बहू की शिकायत की ।

रात को जब श्रीकंठसिंह ने आनंदी से बात चलाई तो आनंदी फूट-फूट कर रोने लगी और पति को बताया कि लालबिहारी ने कैसे खड़ाऊँ फेंक मारी और मेरे मायके की निंदा की थी ।

पत्नी का रोना और लालबिहारी के दुर्व्यवहार की बात सुनकर श्रीकंठसिंह एकदम लाल-पीला हो गया ।

अपने पिता बेनी माधव सिंह के पास जाकर बोला-*“दादा, अब इस घर में मेरा निबाह न होगा ।

यहाँ या तो लालबिहारी रहेगा या मैं ।

लालबिहारी को अब मैं शक्ल तक नहीं देखना चाहता ।”

सब चकित रह गए श्रीकंठ के ऐसे तेवर देखकर ।

सम्मिलित परिवार की हिमायत करने वाला श्रीकंठ एकदम कैसे बदल गया ?

वह यहाँ तक कह देता है कि मैं लालबिहारी को अपना भाई नहीं समझता !

लालबिहारी ने अपने भाई के मुख से सब सुना तो वह फूट-फूट कर रोने लगा ।

उसने तुरन्त घर से निकल जाने का निश्चय किया ।

वह रोता हुआ भाभी आनंदी के पास गया और क्षमा माँगते हुए बोला कि वह घर से जा रहा है ।

आनंदी ने लालबिहारी की शिकायत तो की थी, पर अब वह पछता रही थी ।

उसने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि श्रीकंठ छोटे भाई पर इतना बिगड़ जाएगा।

वह अपने पति से कहती है-“ लालबिहारी को रोको , भीतर बुला लो, मैरी जीभ जल जाए, मैंने क्यों यह झगड़ा उठाया ?”

श्रीकंठ का हृदय पिघल गया और उसने लालबिहारी को गले लगा लिया ।

बेनी माधव सिंह ने पुलकित होकर कहा - बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं, बिगड़ता काम बना लेती हैं ।