दारोगाजी

दारोगा जी की कहानी - मुंशी प्रेमचंद्र

मैं किसी काम से तांगे पर सवार, चौक तक जा रहा था कि रास्ते में एक दारोगाजी भी तांगे पर आ सवार हुए ।

तांगा थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि सामने एक आदमी को देखकर दारोगा ने उसे सलाम की।

सलाम का जवाब न देकर उस आदमी ने दारोगा को देखते ही गालियों की बौछार के साथ-साथ उस पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए ।

एक पत्थर दारोगा के लगा और मैं बाल-बाल बचा ।

तांगा आगे बढ़ गया तो भी वह आदमी दूर तक गालियाँ देता और पत्थर फेंकता पीछे-पीछे थोड़ी दूर तक दौड़ा आया।

मैंने दारोगा से पूछा- कौन है यह शख्स, और ऐसे क्यों पेश आया ?

क्या पागल है ?

दारोगा ने बड़ी बेतक्कलुफी से अपनी कहानी सुनाई- नहीं, पागल नहीं है ।

कई साल पहले मैं नया-नया सदर में ही तैनात हुआ था ।

यहाँ एक हसीन लैला से मेरी आशनाई हो गई थी ।

उसके मोह-जाल में फँसा था कि दो साल बाद मेरा तबादला हो गया ।

मैं हसीना को बाद में अपने पास बुलाने का वादा करके रुखसत हुआ ।

वहाँ मैंने घरवालों की मर्ज से एक और लड़की से शादी कर ली और लैला को लगभग भूल ही गया ।

वहाँ से कुछ समय बाद फिर एक बार इधर आना हुआ तो हसीन लैला का हाल-चाल जानने का दिल हुआ ।

मैंने उसके दरवाजे पर दस्तक दी ।

काफी देर बाद उसने दरवाजा खोला ।

मैंने उससे माफी माँगी और कहा कि काम में बुरी तरह उलझा रहने की वज़ह से नहीं आ सका ।

मैंने अपनी शादी की बात छिपानी चाही , पर मुझे आश्चर्य हुआ कि उसे पता था कि मैंने शादी कर ली है ।

हम बात-चीत में मशगूल ही थे कि इतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया । यह उसका शौहर था ।

उसने भी इसी बीच शादी कर ली थी ।

हसीना ने मुझे पीछे की एक कोठरी में छुपने को कहा ।

उस कोठरी में एक और आदमी मचान पर छुपा बैठा था ।

हसीना के शौहर को शक हो गया तो उसने कोठरी के किवाड़ तोड़कर मेरी गर्दन पकड़ ली।

मैंने कहा- हुजूर , मैं तो इस मचान पर छिपे बैठे मीर साहब के साथ आया हूँ, इसका नौकर हूँ, मेरा कोई कसूर नहीं ।”

उसने मचान से उस आदमी को उतार कर उसे बुरी तरह मारा और छुरी से उसकी नाक काट ली।

मैं इसी बीच वहाँ से बेतहाशा भागा और बच निकला ।

यह पत्थर मारने वाला आदमी वही मचान पर छिपा मीर साहब है, जिसकी नाक काट ली गई थी ।

आपने देखा होगा, उसकी नाक कटी चपटी थी ।”

उसकी यह कहानी खत्म हुई कि इतने में चौक आ गया और हम दोनों ने अपनी-अपनी राह ली ।