ईदगाह

हामिद खरीदा चिमटा - एक समझदार बच्चा का खिलौना

रमजान के पूरे तीस दिन बाद ईद आई है ।

गाँव में कितनी हलचल है, ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं ।

सभी प्रसन्न हैं ।

सबसे ज्यादा प्रसन्न हामिद है ।

वह चार-पाँच साल का गरीबसूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट हो गया और माँ न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई ।

अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और प्रसन्न है ।

अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है ।

आज ईद का दिन और घर में दाना नहीं ।

गाँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ ईदगाह जा रहे हैं ।

बिन बाप के हामिद को कैसे अकेले मेला जाने दे ?

उस भीड्-भाड़ में कहीं खो जाए तो क्या हो ! हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है, “तुम डरना नहीं अम्माँ, मैं सबसे पहले आऊंगा ।

गाँव से मेला चला और बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था।

बड़ी-बड़ी इमारतें आने लगीं ।

अदालत, कॉलेज, क्लब, घर ।

आगे चले, हलवाइयों की दुकानें । आगे चले ।

यह पुलिस लाइन है ।

अब बस्ती घनी होने लगी । ईदगाह जाने वालों की टोलियाँ नजर आने लगीं ।

एक से एक भड़कीले वस्त्र पहने हुए । सहसा ईदगाह नजर आयी ।

लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं फिर सब के सब एक साथ खड़े हो जाते हैं ।

नमाज खत्म हो गई ।

लोग आपस में गले मिल रहे हैं ।

हामिद दूर खड़ा है ।

तीन ही पैसे तो उसके पास हैं ।

सब बच्चे खिलौनों की दुकानों की ओर जाते हैं ।

तरह-तरह के खिलोने हैं ।

महमूद सिपाही लेता है, मोहसिन को भिश्ती पसन्द आया, नूरे ने वकील लिया ।

ये सब दो-दो पैसे के खिलौने हैं ।

हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं, इतने मँहगे खिलौने वह कैसे ले ?

हामिद खिलौनों की निंदा करता है, “मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ ।”

लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है ।

खिलौनों के बाद मिठाइयाँ आती हैं ।

किसी ने रेवड़ी ली, किसी ने गुलाब जामुन, किसी ने सोहन हलुवा ।

हामिद, अभागे के पास तीन ही पैसे हैं, क्यों नहीं कुछ लेकर खाता !

ललचाई आँखों से सबकी ओर देखता है ।

मिठाइयों के बाद कुछ दुकानें लोहे की चीजों की ।

सब आगे बढ़ जाते हैं ।

हामिद दुकान पर रुकता है । कई चिमटे रखे थे ।

उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है ।

तवे से रोटियाँ उतारती है तो हाथ जल जाता है ।

अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे, तो वह कितना प्रसन्न होगी ।

खिलौने से क्या फायदा ! व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं । जरा देर ही तो खुशी होती है ।

अम्माँ चिमटा देखते ही दौड़ कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहेंगी , ' मेरा बच्चा अम्मँ के लिए चिमटा लाया है ।

हजारों दुआएँ देंगी ।

इन लोगों के खिलौनों पर कौन दुआएँ देगा ?

उसने दुकानदार से पूछा, “यह चिमटा कितने का है ?

“छः पैसे का ।

उसने कलेजा मजबूत करके कहा, “ तीन पैसे लोगे ।” और आगे बढ़ गया ।

दुकानदार ने बुलाकर चिमटा दे दिया ।

हामिद ने उसे कंधे पर रखा, मानो बंदूक हो और शान से अकडता हुआ संगियों के पास आया |

चिमटे को देखकर सभी बच्चों ने हामिद की हँसी उड़ाई ।

हामिद ने चिमटे की खूबियों का बखान कर उनके खिलौनों की निंदा की । सब चिमटे पर मोहित हो गए ।

औरों ने तीन-तीन आने पैसे खर्च किए पर कोई काम की चीज न ले सके हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा दिया ।

सभी ने अपने-अपने खिलौने हामिद के हाथ में दिए और चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया ।

हामिद्‌ ने सभी बच्चों से कहा, “ मैं तो तुम्हें चिढ़ा रहा था , सच यह चिमटा भला इन खिलौनों की कया बराबरी करेगा ।”

मोहसिन, “ लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दुआ तो न देगा ।”

गाँव में हलचल मच गई । मेलेवाले आ गए ।

मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से लिया और मारे खुशी के जो उछली, तो मियाँ भिश्ती नीचे आ गिरे और सीधे परलोक सिधार गए ।

भाई-बहन में मार-पीट हुई ।

खूब रोये और अम्माँ से दो-दो चाँटे और खाये ।

इसी तरह सभी बच्चों के खिलौनों का हश्र हुआ | अमीना की आवाज सुनकर दौड़कर आयी, उसे प्यार करने लगी।

सहसा चिमटा देखकर चौंकी। यह चिमटा कहाँ था ?

“मैंने मोल लिया है ।” “के पैसे में ?” “तीन पैसे दिए ।”

अमीना ने छाती पीट ली ।

यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुई न कुछ खाया, न पीया ।

बोली, “ सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली , जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया ?”

हामिद ने अपराधी भाव से कहा, “ तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसीलिए मैंने इसे लिया ।”

बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया ।

उसका मन गद्‌गद्‌ हो गया ।