झूरी काछी के दो प्यारे-प्यारे बैल थे - हीरा और मोती ।
दोनों में बड़ा प्यार था ।
एक-दूसरे को चाट-सुँघ कर प्यार जताते थे ।
झूरी को बैलों से और बैलों को भी झूरी से बहुत लगाव हो गया था ।
एक बार झूरी ने जोड़ी को ससुराल भेज दिया।
झूरी का साला गया, उन्हें अपने घर ले गया ।
बैलों को अपना इस तरह भेजा या बेचा जाना और यह नया स्थान और गया आदि नये लोग अच्छे न लगे ।
उन्होंने यहाँ आकर न नाँद में कुछ खाया , न पीया ।
रात को दोनों रस्से तुड़ाकर भाग खड़े हुए ।
सुबह झूरी ने बैलों को देखा तो गद्गद् हो गया ! पर झूरी की पत्नी चिढ़ गई ।
उसने जल कर सूखा भूसा ही उन्हें खाने को दिया।
अगले दिन झूरी का साला बैलों को तलाशता आ पहुँचा ।
दोनों को फिर अपने गाँव ले गया ।
चिढ़ के मारे अब भी उनके आगे सूखा भूसा ही डाला गया ।
और मोटे-मोटे रस्सों से दोनों को बाँध रखा ।
अगले दिन खेतों में ले जाकर उन्हें हल में जोत दिया ।
बैलों ने भी गुस्से से भरकर पाँव न हिलाए ।
गया ने खूब मार-पीट की ।
हीरा की नाक पर जब ताबड़तोड़ पड़े तो मोती को बड़ा गुस्सा आया और दोनों बैल हल समेत ही भाग खड़े हुए ।
गया पीछे दौड़ा, उसके दो और साथी लाठियाँ लेकर बैलों को घेरने भागे ।
हीरा रुक गया ।
मोती ने कहा, मैं तो एक-दो को मार गिराऊँगा, आने दो ।
लेकिन हीरा ने कहा-*“नहीं , यह हमारा धर्म नहीं है ।”
आखिर दोनों पकड़ लिए गए ।
गया रोज उन्हें हल में जोतने लगा और बुरी तरह मारता था ।
उन्हें खाने को भी रूखा-सूखा भूसा ही दिया जाता ।
गया की एक छोटी-सी लड़की को बैलों के साथ सहानुभूति हो गई थी ।
वह चोरी-छिपे रात को उन्हें रोटियाँ खिला जाती ।
दोनों को दुखी पाकर एक दिन लड़की ने बेलों के रस्से खोल दिए और शोर मचा दिया- दादा, बैल रस्से तोड़कर भाग रहे हैं ! जल्दी दौड़ो ।”
दोनों बैल तेज दौड़ते हुए एक मटर के खेत में घुस गए ।
बेचारे बहुत भूखे थे । बड़े मजे में हरी मटर चरने लगे ।
तृप्त होकर बाहर निकले तो सामने एक सांड से उनकी भिड़ंत हो गई ।
दोनों ने दोनों तरफ से टक्कर देकर सांड को भगा दिया ।
थकान और भूख के कारण वे थोड़ी देर बाद फिर मटर के खेत में चरने को घुस गए ।
पर इस बार दो खेत-वालों ने उन्हें पकड़ लिया ।
दलदल और कीचड् में फँस जाने की वजह से वे जल्दी पकड़े गए ।
प्रात: काल दोनों मित्र कांजी हाउस में बंद कर दिए गए ।
कांजी हाउस में पशुओं की दुर्दशा देखकर दोनों को रोना आ गया-यहाँ कई भैंसें थीं, कई बकरियाँ , कई घोड़े , कई गायें ।
किसी के सामने चारा न था, सब जमीन पर मुर्दों की तरह पड़े थे ।
कई तो इतने कमजोर हो गए थे कि खड़े भी नड़ीं हो सकते थे ।
सारा दिन दोनों मित्र हीरा-मोती फाटक की ओर टकटकी लगाए, ताकते रहे, पर कोई चारा लेकर आता दिखाई न दिया ।
तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की ।
पर इससे क्या तृप्ति होती ?
कांजी हाउस के कर्मचारी पशुओं को बुरी तरह पीटते थे ।
चारा-पानी कुछ मिले बिना और मार-पीट और दुर्व्यवहार से बेचारे पशु अधमरे दिखाई देते थे ।
दोनों बैलों से जानवरों का दुख देखा न गया ।
उन्होंने सींग मार-मार और धकेल-धकेल कर बाड़े की दीवार तोड़ डाली ।
सब जानवर बाहर भाग निकले ।
उन दोनों पर मार पड़ी , पर दोनों प्रसन्न थे कि उन्होंने दूसरों का भला किया ।
एक सप्ताह तक दोनों भूखे-प्यासे वहाँ बंधे रहे, बिल्कुल मरियल-से हो गए ।
ऐसे बैलों को कौन नीलामी में खरीदता ?
आखिर एक दढ़ियल आदमी ने बोली दे उन्हें खरीद लिया ।
संयोग से वह दढ़ियल उन्हें उनके असली मालिक झूरी के घर की तरफ से ले जा रहा था कि दोनों ने अपने थान को पहचानकर दढ़ियल को सींग मार-मार कर भगा दिया और दौड़कर झूरी के पास चले गए ।
झूरी उन्हें पाकर बहुत खुश हुआ और उन्हें गले से लगा लिया ।
अब दोनों की वहाँ पहले जैसी देख-भाल होने लगी ।