दो बहनें -रूपकुमारी और रामदुलारी , एक विवाहोत्सव में मिलीं ।
बड़ी बहन रूपकुमारी छोटी बहन रामदुलारी को बढ़िया जेवरों से लदी , कीमती साड़ी , मखमल के ब्लाउज और ठाठ-बाट में देखकर दंग रह गई !
दो साल पहले जब रामदुलारी का विवाह हुआ, तब तो उसके पास कुछ न था,
ससुराल का घर भी साधारण था और पति अभी पढ़ता ही था ।
इतनी जल्दी इतने ठाठ केसे सज गए ?
उसने रामदुलारी से पूछा । रामदुलारी बोली- मेरा पति एक बडे व्यापारी का एजेंट है ,
ढाई सौ रुपये मासिक वेतन है, ढाई सौ रुपये उसे भत्ता आदि मिल जाता है, तरक्की भी होने वाली है !”
रूपकुमारी को अपनी खस्ता हालत पर दुख हुआ ।
उसका पति उमानाथ तो केवल 75 रुपये का क्लर्क है ।
वह अपनी द्रिद्र अवस्था छिपाने की कोशिश करती है, पर साथ ही मन-ही-मन अपनी बहन के प्रति ईर्ष्या से भर गई ।
रात को छोटी का पति गुरुसेवक उसे अपनी कार में उसके घर छोड़ गया ।
वह उसे अपने घर आने का आग्रह भी नहीं करती , क्योंकि अपने घर की खस्ता हालत उसे कैसे दिखाये ?
अपने घर आकर वह अपने पति उमानाथ के प्रति क्षोभ जताने लगी, बच्चों पर भी अपना गुस्सा निकालने लगी । पति ने क्या सुख दिया है उसे ?
वह उमानाथ के आगे अपना दुर्भाग्य रोने लगी और दोष ठहराने लगी ।
रामदुलारी और उसके पति गुरुसेवक के ठाठ बतलाकर वह अपना माथा पीटने लगी ।
बेचारा उमानाथ अपराधी-सा बना चुप रहता है ।
उमानाथ को भी गुरुसेवक के ठाठ-बाट पर आश्चर्य हुआ ।
उसने उसकी असलियत का पता लगाया तो पता चला कि गुरुसेवक कोकीन आदि नशीले पदार्थों की तस्करी के गैर-कानूनी धंधे में लगा हुआ है ।
वह दो नंबर का अमीर बन रहा है ।
एक दिन उमानाथ गुरुसेवक को उसकी नशे की हालत में अपने घर ले आया |
गुरुसेवक ने नशे में रूपकुमारी के आगे सब उगल दिया मैं मिसेज लोहिया का मुख्तार हूँ ।
सब कुछ मेरे हाथ में है । मि. लोहिया चल बसे । वह बड़ा मालदार था ।
मेरे सिवा किसी को नहीं मालूम, दौलत कहाँ से आती है ।
वह खुफिया-फरोश था ।
किसी से कहना नहीं... वह चोरी से कोकीन बेचता था ।
अब वही व्यापार मैं करता हूँ ।
हर शहर में हमारे खुफिया ऐजेंट हैं । मिं. लोहिया ने मुझे इस फृन में उस्ताद बना दिया था ।
बड़े-बड़े अफसरों से मेरा याराना है ।
उनके मुँह में नोटों के पुलिंदे दूँसता हूँ....हिसाब में लिखता हूँ एक हजार, रिश्वत देता हूँ पाँच सौ...बाकी यारों का...। ”
उसकी बातें सुनकर उमानाथ ने उसे तुरंत अपने घर से विदा किया-इस डर से कि कहीं उसके पीछे पुलिस न यहाँ आ धमके ! रूपकुमारी खिन्न हो उठी !
वह जिसे स्वर्ग समझती थी , वह बीभत्स नरक निकला !
उसे लगा कि छल-कपट से दूर, जिस त्याग, संतोष, सादगी और साधुता में उसकी जिंदगी बीत रही थी, उसी में सच्चा सुख है !
वह लालच, लोभ, अन्याय की दौलतवाली कुत्सित जिंदगी के प्रति घृणा से भर गई ।
वह जल्दी-से-जल्दी अपनी बहन रामदुलारी के पास पहुँचकर, उसे इस अभिशप्त जीवन से बचाने के लिए व्यग्र हो उठी !