मुंशी रामसेवक चांदपुर गाँव के रईस हैं ।
वह कानूनदाँ हैं और मुंसिफी कचहरी में मुख्तार बने अपने ढेरों असामियों को ठगते रहते हैं ।
गरीब और बेबस लोगों पर वह मीठी छुरी चलाते हैं ।
अनेकों निरीह विधवाओं और बूढ़े-ठेरों ने विश्वास और श्रद्धा से भरकर उनके पास अपनी पूँजी अमानत रखी ।
पर मुंशी रामसेवक ने बड़ी सफाई से अमानत में खयानत करने में चूक नहीं की ।
गरीब विधवा बूढ़ी मूंगा ने भी पाँच सौ रुपये |
मुंशीजी के पास अमानत रखे और मुंशी जी हिसाब में उसके ढाई सौ हड़प गए ।
बेचारी बुढ़िया ने सिर पीट लिया ।
पंचायत बुलाई तो उसमें भी उसे न्याय नहीं मिला ।
मुंशीजी के विरुद्ध कचहरी में जाने का तो अच्छे-अच्छों में दम नहीं था, बेचारी विधवा कया जाती ?
मुंशीजी ने अपनी साख और नेक-नीयती की दुहाई देकर पंचायत में पंचों का फैसला अपने हक में करा लिया ।
गरीब मूंगा सर्द आहें भरकर यही कहती रह गई-“ अच्छा ! यहाँ न्याय न मिला, तो वहाँ
दिनों-दिन दुख से तड़पती मूंगा पागल-सी से आगे सचमुच पागल हो गई ।बिखरी हुई लटें, लाल आँखें, सूखे हाथ-पाँव , पागलों की चितवन और चेहरा !
उसका यह रूप देखकर लोग डर जाते ।
वह घंटों अपने आप से बातें करती , बड़बुड़ाती , रामसेवक को कोसती, उसके मांस-हड्डी , चमड़ी , आँखें, कलेजा सब नोचने , खाने , मसलने , खून पीने की उत्कटता प्रकट करती ।
रात को देर-सबेर वह रामसेवक के घर की तरफ मुँह करके खूब चिल्लाती और डरावने शब्दों में हॉक लगाती-“तेरा लद्दू पीऊँगी ।”
और सचमुच उसके कोसने, उसकी हाय, उसकी आहें मुंशी रामसेवक और उसके घर को लग गईं ।
मुंशी जी, उनकी पत्नी नागिन, उनका बेटा रामगुलाम सब आतंकित और भयभीत हो गए !
पगली मूंगा रामसेवक के द्वार पर धरना देकर बैठ गई ।
वह बार- बार चिल्लाती है - तेरा लहू पीऊँगी ! आहें भरती , हाय मचाती , कोसने कोसती , अनशन करती , भूखी-प्यासी वह रामसेवक के द्वार पर ही दम तोड़ देती है ।
यदि किसी के घर में कोई गाय खूँटे पर मर जाए, तो उसे कितनी हाय लगती है ! महीनों दर-दर भीख माँगनी पड़ती है, न नाई उसकी हजामत बनावे, न कहार उसका पानी भरे, न कोई छूए ! ब्रह्महृत्या का दंड तो गोहत्या से भी कड़ा है ।
मूंगा यह जानती थी, इसीलिए इस दरवाजे पर आकर मरी थी ।
वह जानती थी कि मैं जीते-जी जो कुछ नहीं कर सकी, मरकर उससे बहुत अधिक कर जाऊँगी ।'
उसको हाय लगी-मुंशी रामसेवक की गर्भवती पत्नी नागिन एकदम ज्वर, सन्निपात से ग्रस्त होकर चल बसी ।
मूंगा का भूत उसे डस गया । रामसेवक से सबने मुँह मोड़ लिया ।
कोई उसकी पत्नी की लाश उठाने वाला तक न मिला ।
मुंशी रामसेवक ने वैरागी बनकर घर के बाहर एक पेड के नीचे धूनी लगाने में ही त्राण पाया । बेटा रामगुलाम जेल में दूँस दिया गया ।