फातिहा

मानसरोवर की प्रसिद्ध कहानी

मैं एक अनाथ !

सरकारी अनाथालय में पला, किन्तु बलूची सरहदी कबीले का छह फुट नौ इंच का लंबा-चौड़ा बलिष्ठ जवान ! सीधा फौज में भर्ती हो गया ।

मेजर सरदार हिम्मतसिंह की मुझ पर कृपा-दृष्टि थी ।

एक रोज मैंने दूर से देखा, एक अफ्रीदी बूढ़े ने एक जवान की छाती में छुरा घोंप कर उसकी बंदूक छीन ली।

मैं उस बूढ़े को पकड़ने के लिए भागा ।

सरहद पर जब मैं उसके पास उसे पकड़ने पहुँचा तो उसने बंदूक से गोली चला दी ।

मैं लेट गया और दम साधे पड़ा रहा ।

उसने समझा, मैं ढेर हो गया ।

जब वह मेरे पास आया तो मैंने शेर की भाँति एक छलांग लगाकर एकदम उसकी छाती में छुरा घोंप दिया ।

बूढ़ा अफ्रीदी मर गया ।

मैं मेजर हिम्मतसिंह के घर चला आया ।

तभी वहाँ एक अफ्रीदी औरत आई और घृणा से मुझे और मेजर साहब को देखती हुई 'थूह !' करके वहाँ चली गई, जहाँ वह बूढ़े की लाश पड़ी थी ।

उसकी आँखें आँसुओं से गीली थीं ।

मैंने उत्सुकतावश मेजर हिम्मतसिंह से पूछा-“यह कौन औरत है ?

इसकी कहानी बहुत लंबी है-मेजर साहब ने उसकी कहानी सुनाना शुरू किया-असदखां, पाँच साल पहले की बात है,

एक रात मैं अपने केम्प में अकेला सो रहा था, यकायक एक अपफ्रीदी मेरी छाती पर चढ़ आया और छुरा मेरी छाती में घुसेड़ने ही वाला था कि

मैंने हड्बड़ाकर कहा- मुझे मारो नहीं , पकड़ ले चलो , सरकार तुम्हें काफी रुपया देकर मुझे छुड़ा लेगी ।

अफ्रीदी सरदार मान गया ।

वे मुझे अपने अड्डे पर ले गए और कैद कर दिया ।

मैंने सरकार के नाम चिट्ठी लिखकर उसे दे दी कि दो हजार रुपये की फिरौती देकर मुझे छुड़ा लो ।

पर अंग्रेजी हुकूमत काले अफसर को छुड़ाने में तत्परता नहीं दिखाती थी ।

मैं एक महीने तक उनकी कैद में बंद रहा ।

दोनों वक्‍त यही अफ्रीदी युवती मुझे रोटी -पानी देने आती थी ।

तब यह बहुत सुंदर युवती थी ।

मैं इनकी पश्तो भाषा में एक प्रेम-गीत गाता था, जिसे सुनकर यह बहुत खुश होती थी और बार-बार गाकर सुनाने का आग्रह करती थी ।

वह मुझे चाहने लगी थी और मैं भी उसकी अछूती सुंदरता पर मुग्ध हो गया था ।

उसकी करुणा जगाने के लिए मैंने उसे बताया था कि मेरे घर में बिना माँ के

दो बच्चे हैं-न-जाने मेरे पीछे उनका कया हाल हुआ होगा , पता नहीं जीते हैं, या मर गए !

एक दिन अपने पिता को बताए बिना उसने मुझे आजाद कर दिया ।

मैं बचता-बचाता अपने घर लौट आया और वचन के अनुसार अपने अर्दली के हाथ उस रमणी के पास फिरौती के दो हजार रुपये भिजवा दिए

काफी समय बीत गया, एक दिन वह मेरे घर आई ।

घर में बच्चों के अलावा मेरी पत्नी को देखकर वह आग-बबूला हो गई और उसने मुझे झूठा कहकर फटकारते हुए एक ही हाथ मारकर छुरा मेरी पत्नी की छाती में घुसेड दिया और बच्चों को तोहफे देकर चली गई ।

मैं देखता रह गया ।

आज तक वह जब कभी आती रही है तो केवल बच्चों को तोहफे देने के लिए ।

आज भी दे गई है ।”

उस अफ्रीदी रमणी की कहानी सुनकर मैं अपने घर लौट आया ।

उसी रात को जब आधी रात के बाद मैं कुछ सोया, कुछ जागा था, तभी अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए यकायक वह अफ्रीदी रमणी मेरी छाती पर चढ़ आई और छुरे का वार मुझ पर तान दिया ।

मैंने बड़ी कड़ाई से उसका हाथ रोका ।

वह भी मेरी मज़बूत कलाई देखकर आश्चर्य से मेरी ओर ताकने लगी ।

एकटक मेरी कलाई का निशान देखे जा रही थी ।

वह सहसा बोली-* तुम मेरे बड़े भाई नाजिर हो ! तुम बचपन में खो गए थे । यह देखो , मेरी कलाई पर भी हमारी यह खानदानी साँप की निशानी गुदी हुई है ।”

सुबह को मैंने मेजर साहब को बताया-“रमणी मेरी बहन है, और जिसे कल मैंने मारा, वह मेरा बाप था ।

मैं मेजर सरदार को अपने घर ले आया, वहाँ रमणी मौजूद थी ।

मेजर साहब ने रमणी का हाथ मुझ से माँग लिया तब शाम को हमने अपने बूढ़े बाप को दफनाया और कब्र पर फातिहा पढ़ा !