चित्तौड़ का रणछोड़जी का मंदिर !
परम भक्त मीराबाई से मंदिर में ही झालावाड के रावसाहब और उनकी अनिंद्य सुंदरी कन्या प्रभा की भेंट हुई ।
वहीं मंदार के राजकुमार और प्रभा की आँखें चार हुईं; दोनों प्रथम साक्षात्कार में ही प्रेम-बाण से बिंध गए !
प्रभा के पिता रावसाहब पहले से ही मंदारकुमार के रूप-गुण पर मुग्ध थे,
अतः प्रसन्नतापूर्वक राजकुमार को छाती से लगा लिया ।
मीरा को भी दोनों का मिलन पसंद आया और बोली-“रावसाहब, मैं प्रभा के लिए मंदारकुमार को वर बना लाई हूँ ।”
परंतु मीरा के पति राजा भोजराज ने जब प्रभा का मुख-चंद्र देखा तो उनकी छाती पर साँप लोटने लगा |
झालावाड के रावसाहब और अन्य राजपूत अपने यहाँ मंदारकुमार की बारात आने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
प्रभा सोलहश्वंगार किए थी ।
किन्तु मंदारकुमार की बारात की जगह चित्तौड़ के राजा की सेना को यकायक आया देख सब दंग रह गए !
पलक झपकते ही राजा भोजराज प्रभा को अपने घोड़े पर बिठाकर उसका अपहरण कर ले गए ।
झालावाड़ी राजपूतों ने अपनी मर्यादा-रक्षा के लिए खून बहाया, पर चित्तौड़ की सेना के आगे उनकी कुछ न चली ।
रावकुमारी प्रभा भी अपने लोगों का खून-खराबा नहीं चाहती थी, इसी से मन मारे चुपचाप राजा के साथ चली गई ।
प्रभा चित्तौड़ जाकर बुझी-बुझी रहने लगी ।
वह प्रत्यक्ष प्रतिरोध न कर, इस अवसर की प्रतीक्षा में रहती कि मौका पाकर कटार का एक हाथ राजा की छाती में चुभा दे और दूसरा अपनी छाती में ।
परन्तु राजा की विनम्रता और चिकनी-चुपड़ी बातों ने उसे ऐसा करने का अवसर प्रदान नहीं किया ।
मंदारकुमार का ख्याल अब वह अपने दिल में लाना मर्यादा के विपरीत समझती थी ।
क्योंकि दुनिया की नजरों में वह अब राजा भोजराज की रानी बन चुकी थी ।
परन्तु उसका आत्माभिमान और मंदारकुमार का प्रेम उसे राजा की अद्धांगिनी बनकर रहने की आज्ञा नहीं देता था ।
रणछोड़जी के उसी मंदिर में एक दिन मंदारकुमार साधु के वेश में मीरा से मिला और अपना भाग्य आजमाने के लिए उसने मीरा से वचन और सहायता लेकर चोर द्वार से आधीरात को महल में प्रवेश किया ।
प्रभा ने उसे अपनी ओर आते देखकर दूर से ही वापस चले जाने को कहा ।
वह अब दूसरे की ब्याहता थी , लोक-निंदा का भय था, साथ ही यह भय था कि राजा यदि आ धमके तो मंदारकुमार जान से हाथ धो बैठेंगे ।
प्रभा आत्मबलिदान के लिए तैयार थी ।
यकायक राजा भोजराज ने अपनी तलवार का एक भरपूर हाथ मंदार कुमार पर चलाया ! प्रभा एकदम बीच में आ गई ।
उसने अपने प्राण गँवा कर मंदार कुमार की जान बचा ली ।
मर्यादा की वेदी पर प्रभा का यह उत्सर्ग
देखकर मंदारकुमार ने भी प्रेम की वेदी पर आत्मोत्सर्ग कर दिया ।मर्यादा और प्रेम की वेदी पर दो प्राण न्योछावर हो गए ! अत्याचारी राजा देखता रह गया !