पंच परमेश्वर

जुम्मन शेख और अलगू चौधरी बचपन के मित्र थे ।

दोनों को एक-दूसरे पर पूरा विश्वास था ।

दोनों साझे की खेती करते और उनका लेन-देन भी साझे का ही था |

एक बूढ़ी खाला ! (मौसी) थी ।

जिसे बहला-फुसला कर सारी जमीन अपने नाम लिखवा ली और उसे रोटियों के लिए मुहताज बना दिया ।

कुछ दिन तो खाला ने सहन किया ।

एक दिन तंग आकर खाला ने कहा, “बेटा तुम्हारे साथ मेरा निर्वाह न होगा ।

तुम मुझे रुपये दे दिया करो, मैं अपना पका-खा लूँगी ।”

“रुपये कया यहाँ फलते हैं,” जुम्मन ने कठोरता से जवाब दिया ।

इस पर खाला बिगड़ गई और पंचायत करने को बोली ।

जुम्मन हँसकर बोला, ” हाँ-हाँ जरूर पंचायत कराओ , फैसला हो ही जाए ।

मुझे भी यह रात-दिन की खटखट पसंद नहीं ।”

बूढ़ी खाला आस-पास के सभी गाँवों में दौड़ती रही , हार थक कर वह अलगू चौधरी के पास आई और बोली, “ बेटा तुम भी दम भर के लिए मेरी पंचायत में चले आना ।

” “मुझे बुलाकर क्या करोगी ?

कई गाँवों के आदमी तो आवेंगे ही,” अलगू बोला ।

खाला, “अपनी विपदा तो मैं सबके आगे रो आई ।

अब आने-न-आने का अखितयार उनको है ।”

अलगू, “ यूँ आने को आ जाउँगा, मगर मुँह न खोलूँगा ।

जुम्मन मेरा पुराना मित्र है । उससे बिगाड़ नहीं सकता ।"

खाला, “बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान को बात न कहोगे ?” अलगू के हृदय में ये शब्द गड़ गए ।

संध्या समय एक पेड के नीचे पंचायत जुड़ी ।

पंचायत में अधिकांश वे ही लोग आए थे जिन्हें जुम्मन से अपनी कसर निकालनी थी ।

पंच लोग बैठ गए तो बूढ़ी खाला ने गुहार की , “ पंचों आज तीन बरस हुए, मैंने अपनी सारी जमीन अपने भानजे जुम्मन के नाम लिख दी थी ।

जुम्मन ने ता-हयात रोटी कपड़ा देना कबूला था ।

पर मुझे न पेट की रोटी मिलती है, न तन का कपड़ा । तुम्हारे सिवा और किसको अपना दुख सुनाऊँ ? मैं पंचों का हुक्म सिर माथे पर चढ़ाऊँगी ।”

रामधन मिश्र ने जुम्मन को पंच बदने को कहा ।

जुम्मन बोला, “खालाजान जिसे चाहें उसे बदें, मुझे कोई उज़ नहीं ।”

खाला जान बोली, “मैं अलगू चौधरी को सरपंच बदती हूँ ।” जुम्मन आनंद से बोला, “ मेरे लिए जैसे रामधन वैसे अलगू ।”

अलगू चौधरी सरपंच हुए और जुम्मन से बोले, “हम और तुम पुराने दोस्त हैं पर इस समय तुम और बूढ़ी खाला हमारी निगाह में बराबर हैं ।

तुमको पंचों से जो कुछ अर्ज करनी हो करो ।”

जुम्मन अलगू पर विश्वास करके बोला, “पंचों ! तीन साल हुए खालाजान ने अपनी जायदाद मेरे नाम लिखी थी ।

मैंने उन्हें ता-हयात खाना, कपड़ा देना कबूला था, सो मैं आज तक कर रहा हूँ ।

मगर औरतों में अनबन रहती है इसमें मेरा क्या कसूर ?

खाला जान माहवार माँग रही है , जिसका जिक्र हिब्बा नामे में नहीं है ।

मुझे इतना ही कहना है, अब पंचों को अख्तियार है जो फैसला चाहें करें ।"”

सारी जिरह के बाद अलगू ने फैसला सुनाया-“ जुम्मन शेख !

खालाजान को माहवार दिया जाए, चूँकि जायदाद से इतना मुनाफा अवश्य होता है कि खर्च दिया जा सके ।

अगर तुम्हें खर्च देना मंजूर नहीं , तो हिब्बानामा रद्द समझा जाए ।”

यह सुनते ही जुम्मन सन्न रह गया और अलगू की दोस्ती को कोसने लगा ।

पर रामधन और अन्य पंच अलगू की प्रशंसा करने लगे, “इसका नाम पंचायत है, दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया ।”

अलगू चौधरी और जुम्मन की दोस्ती की जड़ हिल गई |

जुम्मन हर घड़ी अलगू से बदला लेने की सोचता रहता ।

पिछले साल अलगू बैलों की एक सुंदर जोड़ी मोल लाए थे ।

पंचायत के एक महीने बाद इस जोड़ी का एक बैल मर गया ।

अलगू को संदेह हुआ कि जुम्मन ने बैल को विष पिला दिया है । चौधराइन और करीमन में खूब वाद-विवाद हुआ ।

गाँव में समझू साहु थे, वह इक्का गाड़ी हाँकते थे । महीने में दाम चुकाने का वादा कर चौधरी से बैल खरीद ले गए और दिन में तीन-तीन, चार-चार खेपें करने लगे ।

महीने भर में बैल पिस-सा गया ।

हडि्डियाँ निकल आईं । एक दिन चौथी खेप में साहु ने दो-गुणा बोझा लादा ।

अब उस बैल की शक्ति ने जवाब दे दिया । वह धरती पर ऐसा गिरा कि फिर न उठा ।

बैल मर चुका था । साहु ने बैल खोल कर अलग किया और सोचने लगे कि गाड़ी कैसे घर पहुँचे । साहुजी ने रात वहीं काटी । सुबह रोते बिलखते घर पहुँचे ।

इस घटना को हुए कई महीने बीत गए ।

अलगू जब अपने बेल के दाम माँगते , तब साहु-साहुआइन भला-बुरा कहते, वाह यहाँ तो सारे जन्म की कमाई गई, सत्यानाश हो गया, इन्हें दामों की पड़ी है ।

मुरदा बैल दिया था, उस पर दाम माँगने चले हैं ।'

एक बार चौधरी भी गरम हुए ।

प्रश्नोत्तर होते-होते हाथापाई की नौबत आ पहुँची ।

शोरगुल सुनकर गाँव के भले मानस जमा हो गए और पंचायत करने की सलाह देने लगे ।

अलगू और साहु पंचायत करने को तैयार हो गए ।

पंचायत बैठ गई तो रामधन मिश्र ने अलगू चौधरी को पंच बदने को कहा ।

अलगू दीन भाव से बोला, “समझू साहु ही चुन लें ।”

समझू कड़क कर बोला, “मेरी ओर से जुम्मन शेख ।”

जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू का कलेजा धक-धक करने लगा ।

रामधन चौधरी से बोला, “ क्यों चौधरी , तुम्हें कोई उज़ तो नहीं ?” चौधरी निराश होकर बोला, “ नहीं , मुझे कया उज़ होगा ।”

जुम्मन शेख के मन में भी सरपंच का उच्च स्थान ग्रहण करते ही अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ ।

पंचों ने दोनों पक्षों से सवाल-जवाब करे अन्त में जुम्मन ने फैसला सुनाया-

“समझू अलगू चौधरी को बेल का पूरा दाम दे ।

जिस वक्‍त उन्होंने बैल दिया, उसे कोई बीमारी न थी , बैल की मृत्यु केवल इस कारण हुई, कि उससे कठिन परिश्रम लिया गया है और दाने-चारे का अच्छा प्रबंध उसके लिए नहीं किया गया ।”

अलगू चौधरी फूले न समाये ।

उठ खड़े हुए और जोर से बोले, “पंच परमेश्वर की जय ।”

इसके साथ ही चारों ओर से प्रतिध्वनि हुई, “ पंच परमेश्वर की जय ।”

सभी जुम्मन की नीति को सराहने लगे, “इसे कहते हैं न्याय !

यह मनुष्य का काम नहीं, पंच में परमेश्वर वास करते हैं ।”

थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आया और गले लिपटकर बोला, “ जबसे तुमने मेरी पंचायत की , मैं तुम्हारा शत्रु बन गया पर आज मुझे ज्ञात हुआ कि पंच की जुबान पर खुदा बोलता है ।

अलगू रोने लगा । दोनों के दिलों का मैल धुल गया, मुरझाई मित्रता फिर हरी हो गयी ।