ओरछा के बुंदेला राजा जुझारसिंह की वीरता और योग्यता से प्रसन्न होकर मुगल बादशाह शाहजहाँ ने उसे दक्खिन का शासक बनाकर भेज दिया ।
जुझारसिंह ने ओरछा राज्य की बागडोर अपने छोटे भाई हरदौलसिंह को सौंपी और दक्खिन में अपनी विजय का डंका बजाने चला गया ।
हरदौल ने अपनी वीरता, साहस और योग्यता से अपनी बुंदेला जाति और ओरछा राज्य की मान-मर्यादा बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी ।
वह शीघ्र ही अपने न्याय, उदारता और प्रजा-वत्सलता से जन-जन का प्रिय राजा बन गया ।
लोग जुझारसिंह को भूल गए ।
एक बार होली के दिन दिल्ली के पहलवान सूरमा कादिरखां ने ओरछे में आकर बुंदेलों को चुनौती दी-“ खुदा का शेर, दिल्ली का कादिरखां ओरछे आ पहुँचा है, जिसे अपनी जान भारी हो, आकर अपने भाग्य का निपटारा कर लो ।”
यह चुनौती बुंदेलों को बहुत अखरी ! कालदेव और भालदेव बुंदेलों की नाक थे, दोनों बारी-बारी कादिरखां से भिड़ गए, पर कादिरखां ने दंगल मार लिया ।
इस हार को बुंदेला राज्य की बदनामी ख्याल कर राजा हरदौल का दिल दहल गया !
उसने महाराज जुझारसिंह की तलवार लेकर स्वयं कादिरखां से द्वन्द् किया और उसे पछाड़कर विजय प्राप्त की ।
समूचे ओरछे में हर्ष की लहर दौड़ गई ।
राजा हरदौल जन-जन का लोकप्रिय राजा बन गया ।
एक दिन हरदौल अपने योद्धाओं के साथ जंगल में शिकार को गया ।
रास्ते में दक्खिन से लौटे महाराज जुझारसिंह से भेंट हो गई ।
हरदौल राजा के रूप में बड़े आदर के साथ अपने भाई से मिले पर ईर्ष्या और घमंड से चूर जुझारसिंह को यह मिलन अपमानजनक लगा ।
कहाँ तो पहले हरदौल नंगे पाँव आकर चरणों में गिर पड़ता था, कहाँ अब घोड़े पर ही राजा की भाँति मिला !
जुझारसिंह के मन में फाँस पड़ गई ।
वह हरदौल की लोकप्रियता देख उस से अपना राजपाट वापस लेने के बारे में भी मन-ही-मन सशंकित हो उठा ।
महल में आने पर महारानी कुलीना द्वारा भूल से ज्यौनार की थाली बदली गई ।
सोने की थाली हरदौल के आगे और चाँदी की जुझारसिंह के आगे रखी गई ।
जुझारसिंह यह देख अंदर-ही-अंदर जल उठा ।
उसे अपनी पत्नी महारानी कुलीना की बेवफाई पर भी बेहद गुस्सा आया ।
वह संदेह से भर गया ।
उसे लगा कि उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा जा रहा है, उसकी तलवार भी हरदौल ने कब्जा ली है ।
महारानी ने उसे मेरी तलवार क्यों दी , जबकि मैं मना कर गया था ?
महारानी कुलीना पति को मनाने का बहुत यत्न करती है, पर जुझारसिंह कहता है - मेरा मन तभी ठिकाने आएगा, जब तुम अपने हाथों हरदौल का खून कर दोगी ।
यह पान का बीड़ा मैंने तैयार किया है, इसमें विष लगा है, तुम्हें यह बीड़ा अपने हाथों हरदौल को खिलाना होगा !”
“राम ! राम ! ऐसा घोर पाप !
वह कैसे अपने भाई समान प्यारे देवर से छल कर सकती है ?"
कुलीना इसी मानसिक उद्देग में डूब जाती है ।
उधर हरदौल को गुप्त रीति से सारी बात का पता चल गया !
अगले सवेरे शिकार का बहाना कर हरदौल बड़े भैया के पास आकर उसका अभिवादन करते हुए कहता है-“ आपके आगमन की खुशी में मैं शिकार को जाता हूँ, मुझे अपने हाथ से विजय का बीड़ा दीजिए ।”
और हरदौल ने हँसते-हँसते जुझारसिंह के हाथ से बीड़ा खाया और अंतिम बार करुणाभरी दुष्टि चारों तरफ डालकर, वहीं भैया के चरणों में ढेर हो गया !
उजाले और अंधेरे का मेल हो गया था