शंखनाद

भानु चौधरी गाँव के मुखिया हैं ।

उनके तीन बेटे हैं ।

बड़ा बितान कानूनदां है, अपना अच्छा जुगाड़ बना लेता है ।

मंझला शान खेती-बाड़ी से घर का खर्चा निकाल लेता है, पर तीसरा गुमान बांका-छैला बना फिरता है, पर कमाई-धमाई कुछ नहीं करता !

पिता से सैंकड़ों रुपये लेकर उसने कपड़े की दूकान की , पर कपड़ा बेचना तो क्या, सारा दिन यार-दोस्तों के साथ चरस-गांजा पीने और धींगा-मस्ती करने में ही बिताता था ।

कुछ दिनों में सब कपड़े चट कर गया ।

हाँ, अपने लिए अवश्य बढ़िया कपड़े पहनने को बनवा लिए ।

गुमान की पत्नी भी अपने पति के निकम्मेपन से दुखी थी ।

इस सम्मिलित परिवार में गुमान के निठल्लेपन के कारण कलह मचने लगी ।

भावजें गुमान को ताने मारती थीं ।

पिता और भाइयों ने तो उसे ऊसर खेत ही समझ रखा था-हाँ भावजें अभी तक उसे कड्वी दवाइयाँ पिलाती जाती थीं, पर आलस्य वह राजरोग है, जिसका रोगी कभी नहीं संभलता ।

दोनों बड़े भाई बँटवारे और अलग होने का आग्रह करते हैं, तब भी गुमान यही कहता है-“ जिसके भाग्य में चक्की पीसना बदा हो, पीसे, मेरे भाग्य में चैन करना लिखा है, में तो किसी से काम करने को नहीं कहता ।

आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़े हैं ?

अपनी- अपनी फिक्र कीजिए । मुझे आध सेर आटे की कमी नहीं है ।”

मंगलवार को गुरदीन खोंचेवाला आया ।

दोनों बड़े भाइयों के बच्चे उससे तरह-तरह की मिठाइयाँ लेकर खाने लगे ।

गुमान का इकलौता बेटा धान तड़प कर रह गया ।

बच्चे उसे जानकर दिखा-दिखा कर खाते हैं ।

वह रोने-चिल्लाने लगा । बेचारा कभी माँ का आँचल पकड़-पकड्कर दरवाजे की तरफ खींचता था, पर वह अबला क्या करे ?

अपने पति के निखट्टूपन पर कुढ़-कुढ़ कर रह गई ।

अपना आदमी काम का होता तो क्यों दूसरों का मुँह ताकना पड़ता ।

जब बहुत बहलाने-फुसलाने पर भी बच्चा न माना और जमीन पर लेट गया, तो क्रुद्ध होकर, झल्ला कर माँ ने उसे दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए

और कहा- “ चुप रह अभागे, तेरा ही मुँह मिठाई खाने का है ?

अपने दिन को नहीं रोता, मिठाई खाने चला है !”

बांका गुमान यह सब देख-सुन रहा था, थप्पड़ उसके दिल पर भाले के समान लगे और चुभ गए ।

शायद इसीलिए लगाए गए थे ।

वह तिलमिला उठा ।

बच्चे को गोद में उठा लिया और पत्नी से बोला-“ बच्चे पर इतना क्रोध क्यों करती हो ?

तुम्हारा दोषी मैं हूँ, मुझ को जो दण्ड चाहो दो ।....तुमने मुझे आज सदा के लिए इस तरह जगा दिया, मानो मेरे कानों में शंखनाद कर मुझे कर्म-पथ में प्रवेश करने का उपदेश दिया हो ।”