सुजान भगत

सीधे-सादे किसान धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते हैं,

दिव्य समाज भोग-विलास की ओर ।

सुजान महतो की फसल अच्छी हुई, धन पाकर उदार और धार्मिक बन बैठा ।

अब उसकी चौपाल पर बड़े-बड़े हाकिम, दारोगा, अफसर आकर ठहरते हैं, वह गर्व से फूला नहीं समाता ।

अब लोग उसे ' मेहतो ' ' मेहतो ' कहकर पुकारते हैं ।

उसके द्वार पर साधु-संत आने लगे ।

सत्संग होने लगा ।

उसने गाँव में एक पक्का कुआँ बनवा दिया ।

कुएँ का विवाह हुआ, यज्ञ हुआ, ब्रह्म- भोज हुआ । वह तीर्थ-व्रत करने लगा , गया हो आया । सुजान मेहतो से सुजान भगत बन गया ।

भजन-पूजन, दान-दया और सत्य तथा त्याग-परोपकार उसका नित्य का धर्म हो गए ! कोई भिक्षुक उसके दर से खाली नहीं जाता ।

वह किसी का भी रोयाँ दुखी नहीं होने देता ।

उसकी इस उदार वृत्ति से उसके दोनों लड़के चिढ़ने लगे ।

जब घर में जवान बेटे बराबर के हो जाते हैं तो वे पिता को मनमानी नहीं करने देते और अधिकार-वंचित कर स्वयं अपना अधिकार जमाना चाहते हैं ।

सुजान के भगत बन जाने पर उसकी पत्नी बुलाकी भी अब अपने पति को घर के भले-बुरे से कोई प्रयोजन न रखनेवाला कोरा भगत समझने लगी थी ।

एक दिन एक भिक्षुक उसके द्वारा पर आया ।

सुजान एक बाटी-भर अनाज उसे देने लगा ।

उसके बडे बेटे भोला ने उसका हाथ रोक दिया- सेंत का माल नहीं है जो लुटाने चले हो ।

छाती फाड़-फाड़ कर काम करते हैं, तब दाना घर में आता है ।”

सुजान के मर्म पर चोट लगी ।

अपने ही घर में उसका यह अनादर ! अभी वह अपाहिज नहीं है, हाथ-पाँव थके नहीं हैं ।

उसीने यह घर बनवाया, यह सारी विभूति उसीके श्रम का फल है, पर अब इस घर पर उसका कोई अधिकार नहीं रहा !

अब वह घर का कुत्ता है ?

पड़ रहे और घरवाले रूखा-सूखा दे दें ।

ऐसे जीवन को घिक्कार है ! सुजान का स्वाभिमान जाग उठा |

सुजान अब दिन-रात खेत-खलिहान में जुट गया !

उसी के दम से अब फिर फसल की बहार हो गई, दूगना-चौगुना अनाज होने लगा, ऊख भी खूब होती है ।

बेटे मात खा गए ।

अब किस मुँह से

भोला उसका अधिकार छीन सकता है उस जैसा कर्मठ बनकर तो

सारी नाराज़गी थूककर भाभी तथा उसके बच्चों की परवरिश पर अपना सब कुछ लुटाने लगा ।

गाँव में दूसरों के फटे में पैर उलझाने वाले चुगलखोर किस्म के तमाम लोग यह बदलाव देखकर सकते में आ गए ।

वक्‍त गुजरता रहा ।

केदार के दिल में यह बात जम गई थी कि औरत-अर्थात्‌ ' बीबी ' बड़ी खराब चीज़ है ।

शादी कर घर में मेहरिया लाने का मतलब है , घर में आग ले आना ।

उसे रूई में लपेट कर रखना ।

ये कमसिन बीबियाँ भरे-पूरे घर में आग लगाने , बँटवारा करा देने के अलावा कुछ नहीं करतीं ।

लेकिन उसकी विमाता ' पन्ना ' उसकी भावना को भाँप कर ' भाभी ' से ही उसका ब्याह करा देती है ।

हिन्दु-समाज में इस तरह के विवाह की शास्त्रोक्त स्वीकृति है ।

अलग्योझा हो जाने के तदूनन्तर भी बँटा हुआ घर फिर से एक हो गया ।

एकल परिवार की जगह सयुंक्त-परिवार पुनः: प्रतिस्थापित हो गया ।

टूटी हुई कड़ी फिर से जोड़ दी गई ।

यही हिन्दू-सामाजिकता है । यही भारतीय ग्रामीण-व्यवस्था का परिवार-दर्शन है ।