दुखी चमार को पंडित से लड़की की सगाई का मुहूर्त निकलवाना है, वह पंडित घासीराम को बुलाने गया ।
नजराने के लिए घास के सिवा देने को उसके पास क्या था ?
खाली हाथ आया देखकर तो पंडित जी दूर से ही भगा देंगे, इसीसे घास का एक गट्ठा ले गया ।
छापा- तिलकधारी , नेमी-धर्मी पंडित ने उसे ठहरने को कहा और हुक्म दिया,
मैं स्नान-भोजन कर लूँ, फिर चलूँगा, इतना तू यह लकड़ी की गांठ फाड़ दे,
खलिहान से भूसा ढो दे और देख द्वार पर झाड़ू, बैठक में गोबर से लीपाई कर दे !
बेचारा गरीब सारे दिन को भूखा-प्यासा बेगार में फँस जाता है ।
वह सवेरे कुछ दाना-पानी भी करके नहीं आया था ।
मना कैसे करता ? बड़े आदमी हैं-धर्मात्मा, कहीं सायत गलत निकाल दें तो आफृत ही आ जाए !
पंडित को इतनी दया भी न आई कि कुछ रोटी-पानी दे देता ।
गोंड ने पूछा तो दुखी बोला-“ ब्राह्मण की रोटी हमें कहाँ पचती है ?
“पचने को तो पच जाएगी , पहले मिले तो ।
मूछों पर ताव दिया और आराम से सोए, तुम्हें लकड़ी फाड़ने का हुक्म लगा दिया ।
ज़मींदार भी कुछ खाने को देता है ।
हाकिम भी बेगार लेता है तो थोड़ी-बहुत मजूरी दे देता है ।
यह उनसे भी बढ़ गए, उसपर धर्मात्मा बनते हैं !” गोंड बोला ।
दुखी बहुत जोर लगाता है, पर लकड़ी फटने का नाम ही नहीं ।
आखिर पंडित के लताड़ने पर दुखी ने उन्माद से भरकर दबादब हाथ चलाया, सारा दम लगा दिया, लकड़ी तो फट गई, पर उसके दम निकल गए, कुल्हाड़ी के साथ वह भी चक्कर खाकर धड़ाम-से जमीन पर गिर पड़ा ।
भूखा-प्यासा, ही थका-मांदा शरीर
कब तक साथ देता !पंडित घासीराम के द्वार पर दुखी चमार से की लाश पड़ी उधर गोंड ने चमरौने में जाकर सबसे कह दिया-“ खबर-दार !
मुर्दा उठाने मत जाना । अभी पुलिस की तहकीकात होगी ।
दिल्लगी है कि एक गरीब की जान ले ली ! पंडित होंगे तो अपने घर के ।
लाश उठाओगे तो तुम भी पकड़े जाओगे !”
कोई लाश उठाने नहीं आया ।
ब्राह्मण चमार की लाश कैसे उठाते ?
जिंदा के साये से भी छूत का डर जिसे हो, वह उसकी लाश को छूना तो दूर, उसका वहाँ पड़े रहना भी सहन नहीं कर सकता !
पुलिस-थाने किसे जाना था ? चमार की मनहूस लाश पंडित के द्वारा पर ?
रात निकलने पर धुँधले में स्वयं पंडित ने रस्सी का फंदा लाश के पैरों में उलझाकर लाश को गाँव के बाहर घसीट फेंका !
उसकी लाश गीदड, गिद्ध , कुत्ते और चील-कौए नोच रहे थे ! यह उसकी सद्गति है या दुर्गति !