नशा

जिन्होंने जिंदगी में कभी दौलत नहीं देखी, ऐश-ओ-आराम नहीं भोगा, किसी पर रूआब, दुआब नहीं बनाया,

नौकर-चाकर नहीं देखे, उन्हें यह सब किसी संयोग से मिल जाए, तो उनका दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ जाता है ।

वे अपने को अति विशिष्ट एवं असाधारण व्यक्तित्व समझने लगते हैं ।

फिर वे अपने जामे में नहीं समाते, उनकी प्रदर्शनप्रियता तथा ऐंठ-अकड़ देखते ही बनती है |

ईश्वरी एक बड़े खाते-पीते, लहीम-शहीम ज़मीदार परिवार का कुल दीपक था ।

उसका एक अभिन्न मित्र ठीक उसके विपरीत एक गरीब निम्नवर्गीय क्लर्क था ।

ईश्वरी अमीर था, लेकिन संजीदगी , समझदारी , तर्कशीलता उसमें कूट-कूटकर भरी हुई थी ।

वह अपने विचारों में , चिन्तन, में , आचरण में पूंजीपातियों की तरह था ।

जबकि उसका गरीब दोस्त अमीरों' पर उनके चोंचलों को लेकर हर वक्त आक्रोश ओर आलोचना के कंचे फोड़ता रहता था ।

दोनों में अमीरी-गरीबी में से कौन श्रेष्ठ है, काम्य है, औचित्य से भरपूर है-इस बात को लेकर बहसें होती रहती थीं ।

ईश्वरी अन्तःप्रकृति से ही संस्कारवश, परिस्थितिवश विलासी और ऐश्वर्य-प्रिय था ।

उसका दोस्त गरीब क्लर्क कुछ रुपयों के अभाव की वजह से, कुछ परीक्षा की तैयारी करने के कारण दशहरे की छुट्टियों में अपने घर न जाकर अपने दोस्त ईश्वरी के साथ उसके घर जाने के लिए तैयार हो गया ।

ईश्वरी ने उसका सारा खर्चा उठाया, साथ ही उसे समझा दिया कि वह उसके घर पहुँचकर ज़मीदारी की तथा ज़मीदारों की अमीरी , उनके रहन-सहन के तौर-तरीकों को आलोचना न करे ।

वे लोग ऐसी किसी भी आलोचना को सुनना पसन्द नहीं करेंगे ।

क्योंकि ज़मीदार यह मानकर चलते हैं कि वे समाज में शासन करने तथा आसामियों से लगान वसूलने तथा उनसे बेगार आदि लेने के लिए ही पैदा हुए हैं ।

वे गरीब और अमीर के भेद को मानते हैं ।

गरीब दोस्त पहली बार ब्रिटिश भारत के युग में रेलवे के सैकेंड-क्लॉस में सफर करता है ।

रेल के डिब्बे को देखकर वह हतप्रभ हो जाता है ।

रेल में बैठने से पहले वह रेलवे स्टेशन के भोजनालय से भरपेट खाना भी प्राप्त करता है, यह भी देखता है कि बख़्शीश पाने की हौंस में किस तरह खानसामा वगैरहा झुक-झुक कर उसके अमीर ज़मीदार दोस्त 'ईश्वरी' को सलाम ठोंकते हैं, जिसका थोड़ा-बहुत परसाद मानों, उसे भी नसीब हो जाता हो |

ईश्वरी बिगड़ा हुआ रईसजादा नहीं है, अलबत्ता वह नौकर-चाकरों द्वारा तमीज से , तहज़ीब से पेश आने , तथा उनके दीन-ओ-ईमान पर कायम रहते हुए अपने मलिक के प्रति उनके वफादार रहने को बहुत अहमियत देता है ।

उसका दोस्त सफृर में बहुत सी बेबकूफ़ाना हरकतें करता है ।

ईश्वरी के नौकर-चाकर, खासकर सेवक रियासतअली तथा रामहरण कौवे और हंस की दोस्ती को देखकर चकित भी होते हैं ।

ईश्वरी बड़ी संयत-भाषा में अपने गरीब दोस्त को हर तरह की इज्जत बख़्शते हुए अपने स्वजनों के बहुत से सवालों का माकूल जबाब देता है ।

वह अपने दोस्त की वेश-भूषा, व्यवहार, खान-पान की सादगी को लेकर भी दोस्त का बचाव ही करता है ।

सफेद झूठ बोलकर भी अपने घर वालों की निगाहों में अपने गरीब दोस्त की इज्जत बढ़ाता ही है ।

उसका. दोस्त ईश्वरी की रईसी और उसके ठाट-बाट देखकर पगला सा हो जाता है ।

वह भी अपने को तीसमारखाँ समझने लगता है । ईश्वरी की नकल पर, उसी के व्यवहार का अनुकरण सा करते हुए यूँ ही ईश्वरी के महलनुमा प्रासादं में बतौर मेहमान रोब झाड़ने लगता है ।

नखरे दिखाता है । हास्यास्पद्‌ तरीके से ऊलजुलूल बर्ताव करने लगता है ।

मेहमान की मर्यादाओं को भूल जाता है ।

वह कांग्रेसी क्रांतिकारी- सुराजियों की भाषा में ज़मीदारों के विरूद्ध भी अबे-तबे बोल उठता है ।

गांधीजी के भक्त एक ठाकुर मेज़बान-अभ्यागत पर अपने मिथ्यात्वपूर्ण गांधीवादी होने का आडम्बर दिखाता है ।

जब वापस आने के लिए पुन: रेल में बैठता है, तो कुछेक मुसाफिरों को अंग्रेजी राज की प्रशंसा करते हुए सुनता है ।

वह सैकेंड क्लास में सफर कर रहा था, पर वह दर्जा भी दुर्गा-पूजा की छुट्टियों पर घर जाने वाले मुसाफिरों से उसाठस भरा हुआ था ।

गरीब दोस्त ने ईश्वरी की बदौलत अब तक जो ऐश्वर्य भोगा था, उसमें कुछ खलल पड़ता नज़र आ रहा था ।

सफर में आराम मिलने में कुछ दिक्कत पेश आ रही थी ।

एक गरीब मुसाफिर की पीठ पर लदी गठरी दो चार बार भारी भीड़ होने की वजह से उसके जिस्म से ठकराई ।

बस, वही दोस्त महोदय उस मुसाफिर से भिड़ पड़े ।

उसके दो तीन झापड़ भी रसीद कर दिए और सैकेंड-क्लास के सफर को लेकर दो-चार खरी-खोटी भी सुना दीं ।

वह मुसाफ़िर भी उलझ गया ।

उसने ताना मारा कि वह हाथ उठाने वाला होता कौन है ।

अगर अमीरी का ज्यादा ही गरूर है, तो अब्बल दर्जे (फर्स्ट क्लास) के डिब्बे में क्यों नहीं सफर कर लेता ।

उसके तथाकथित बड़े आदमी होने पर एक दो सहमुसाफिरों ने कड़ी छीटॉकसी कर 'दी ।

ईश्वरी ने दोस्त को डाँट पिलाई । दोस्त का नशा हिरन हो गया ।