झाँकी

कृष्ण के बाल गोपाल स्वरूप से लेकर,

उनके जनता-जनार्दन सुदर्शन चक्रधारी महाभारत काल तक के उनके जीवन की कथा भक्ति भावभावित भारतीय (हिन्दू) समाज में चिरकाल से एक असीम शांति,

आनन्द और मनोरंजन तथा सद्प्रेरणा का भाव पैदा करती . आयी है ।

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व एक तरह का प्रकाश-पर्व है ।

प्रतिवर्ष, अगस्त / सितम्बर माह में हिन्दू लोग इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं ।

प्रभु की झाँकियाँ सजाते हैं । ऐसे ही एक वृत्त को लेकर प्रेमचंद ने कहानी की शैली में संकल्पना की है कि-

केवल पाँच प्राणियों का एक छोटा सा परिवार है ।

गृहस्वामी, उसकी पत्नी, माँ और दो बच्चे ।

लेकिन वह गृह-कलह का आगार बना हुआ है । कारण वही , जो अमूमन आम गरीब या निम्न-वित्तीय परिवारों में देखने को मिलता है ।

आमदनी अठन्‍नी , खर्चा रुपया । हर वक्‍त अभाव का रोना ।

तिस पर हर किसी में अहंकार, जबर्दस्त ऐंठ हर वक्‍त मीनमेख निकालते रहना ।

अब ऐसे में घर कुरूक्षेत्र का मैदान नहीं बनेगा, तो और क्या बनेगा ?

कहानी के नायक का घर भी ऐसा ही कुरूक्षेत्र बना हुआ है ।

बेचारा कहानी-नायक , रात-दिन हाड़्‌ पेलता रहता है, फिर भी ठीक तरह से नहीं कमा पाता ।

महंगाई ने कमर तोड़ कर रख दी है ।

घर का खर्चा बमुश्किल ही चलता है, तिस पर माँ है कि वह तीज-त्यौहार, लेन-देने के नाम पर खुले हाथ से कुछ कर गुजरने के लिए हमेशा बेताब रहती है ।

उसकी पत्नी जब टोकाटाकी करती है, तो घर में क्लेश हो जाता है ।

माँ अलग मुँह फुला लेती है, बीबी अलग ।

खूब कोहराम मचता है । खूब जलीकटी सुनने को मिलती है ।

तीजों पर - बहन के यहाँ उपहार आदि भेजने को लेकर भी माँ और बीबी-अर्थात्‌ सास-बहदू में जबर्दस्त तकरार हुई है ।

' जन्माष्टमी ' का पर्व भी आ रहा है । घर में मातम छाया पसरा है ।

गृह-कलहवश घर में चिराग तक जलाने की ज़हमत किसी ने नहीं उठाई है ।

बच्चे अलग से सहमे हुए हैं । चूल्हा तक नहीं जलाया गया है ।

किसी से कुछ कहो, तो वहीं मुँहजोरी पर उतारू है ।

गृहस्वामी की जान सँसत में है ।

वह बिना कुछ खाए-पीए अंधेरे कमरे में खामोश पड़ा है ।

उसका दोस्त जयदेव आता है, उसे जबर्दस्ती जन्माष्टमी के पर्व पर गाँव में सेठ घूरेलाल के मंदिर में सजाई गई ' झाँकी ' में ले जाता है ।

झाँकी बहुत आलीशान तरीके से सजाई गई है ।

सेठ घूरेलाल यूँ तो महाकंजूस मारवाड़ी बनिया था लेकिन एक खास प्रसंग में अपने ही प्रदेश-भाई से भिक्षादि-दान को लेकर टकरा गया ।

उसके इलाके से आया भिक्षुक अड्‌ गया कि वह कुछ-न-कुछ लेकर ही टलेगा ।

सेठ भी अड्‌ गया कि वह कुछ न देगा ।

भिक्षुक ने सेठ की ड्योढ़ी पर ही हफ्ते भर का अनशन-ब्रत ' रखकर दम तोड़ दिया ।

इस दुर्घटना पर सेठ का ज़मीर जाग उठा ।

उसने हज़ारों रुपये खर्च कर भिक्षुक का अंतिम संस्कार करवाया, सारे गाँव को मृत्यु-भोज दिया ।

सेठ की चित्तवृत्ति बदल गई ।

उसकी धार्मिक चेतना जाग उठी ।

वह प्रभु-भक्ति भावभावित हो उठा ।

उसने अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया ।

अपरिग्रही हो भगत बन गया । गाँव में एक विशाल मंदिर बनवा दिया । आज उसी मंदिर में सेठ के दम-खम पर कृष्णजन्माष्टमी के पावन-पर्व पर झाँकी सजाई गई है तथा भक्ति संगीत का आयोजन किया गया है ।

गृहस्वामी को उसका मित्र जयदेव उसी झाँकी में ले जाता है ।

जयदेव को सब जानते हैं ।

गृहस्वामी भक्ति-संगीत में डूब जाता है ।

भले ही कुछ समझ में न आ रहा हो , पर हृदय से दुनियावी झंझट तथा सांसारिक लोभ, मोह , अमर्ष , कुंठा , क्रोध , अक्रोध , बैचेनी का भाव . छूमंतर होने लगता है ।

उसे अपने उस भाई की याद भी आती है, जो काफी पहले घर से रुपया-पैसा चुराकर ऐशो-अय्याशी के लिए रंगून भाग गया था और वहीं मर-खप गया ।

अब गृहस्वामी को भाई के इस वृत्त पर गुस्सा या खीझ का अहसास नहीं हो रहा, बल्कि भाई के लिए एक कोमल भाव ही उदिंत हो रहा है ।

यही स्थिति पत्नी को लेकर है ।

वह दस साल पहले के उस स्मृति-बिम्ब में खो जाता है, जब वह अपनी नई-नवेली दुलहिन को पहली बार बड़े चाव से, प्यार से लेकर अपने घर आया था ।

उसे अपने बचपन की अपनी ममतामयी माँ के वात्सल्य की भी कई घटनाएँ याद आने लगती हैं ।

गृहस्वामी को पश्चाताप होता है कि वह यूँ ही सबसे उलझ पड़ा ।

कृष्णझाँकी उसे एक दिव्य संदेश देती सी लगती है कि घर कदठुता, लड़ाई-झगड़े तथा आलोचना-प्रत्यालोचना से नहीं, अपितु मधुरता, सहनशीलता, समझदारी तथा समझावन-बुझावन से ही चलाया जाता है ।

छोटी-छोटी बातों को तूल देते रहना घर की सुख-शांति के लिए हमेशा खतरनाक ही रहता है ।

मार-पीट , शत्रुता, घृणा , बहस, जलन, द्वेष, दंभ तथा हर वक्‍त रोते रहने, झींकते रहने में कुछ नहीं रखा ।

भगवान कृष्ण के परिवार-वृत्त से हम हर वक्त हँसते रहना, कर्म करते रहना तथा हर स्थिति को बर्दाश्त करते रहना सीख लें, तो कृष्णाष्टमी की झाँकी पर दिखाए जाने वाले कृष्ण-वृत्त सार्थक हो जाएँ ।

गृहस्वामी यही अनुभव लेकर लौटता है ।

मानों, शपथ लेता है कि वह घर में अब क्लेश नहीं छिड़ने देगा ।

छोटी-छोटी बातों को लेकर तनातनी नहीं होने देगा ।