ऐक्ट्रेस तारादेवी ने अपने शो से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया था।
शो के बाद सब दर्शक चले गए पर नवयुवक कुंवर निर्मलकांत तारादेवी से मिलने को आतुर हो उठा।
उसने सच्चे मोतियों का हार और अन्य भाँति-भाँति की सौगातें तारादेवी को भेंट कीं ।
नवयुवक कुंवर निर्मलकांत को देखकर, उससे मिलकर पैंतीस वर्षीया तारादेवी भी मुग्ध हो गई !
कुंवर के उपहार पाकर वह गद्गद् हो उठी ।
वह पूरे बनाव- सिंगार, हाव-भाव और चंचलता से कुंवर को रिझाने लगी ।
अपने भव्य मेकअप और नाज- अँदाज से वह अपनी आयु घटाने और नवयौवन दर्शाने में सफल हुई ।
तारादेवी ने गत पंद्रह-बीस सालों में कितने ही मनचले युवकों को बहकाया - लुभाया - रिझाया था
पर यह कुंवर निर्मल कांत सबसे अलग उसे अपना सच्चा प्रेमी प्रतीत हुआ।
कुंवर के प्रेमाचार में उसे वैसे तो पूरी गरमी दिखाई देती थी, पर प्रेमालाप में कभी यह आभास नहीं मिला कि वह उससे विवाह करने को प्रस्तुत होंगे ।
कुंवर निर्मलकांत के घर वाले भी इस ऐक्ट्रेस से कुंवर का पिंड छुड़ाने की फ़िराक में लगे, ताकि शीघ्र ही कुंवर का विवाह किसी प्रतिष्ठित घराने में किया जाये ।
यह देखकर तारा देवी और भी उद्विग्न हो उठी।
आखिर एक रोज दोनों ने विवाह बंधन में बंधने का निश्चय कर लिया ।
चौथे दिन सिविल मैरेज करना निश्चित हुआ।
तारादेवी ने देखा, कुंवर अपनी कुल- मर्यादा, प्रतिष्ठा, लोक-लाज सब त्यागकर उसका हो चुका है और सिविल मैरेज करने को तैयार है ।
अब तारा देवी का मन भी सब प्रकार के छल-प्रपंच को छोड़कर कुंवर के प्रति सच्चे प्रेम ही नहीं, श्रद्धा के भाव से प्लावित हो गया ।
पर, आत्मग्लानि से क्षुब्ध होकर तारादेवी सोचने लगी कि ऐसे सरल और निष्कपट-हृदय कुंवर के योग्य वह नहीं है ।
आत्मग्लानि के प्रबल आवेग में उसने अपनी आयु छुपाने का सारा साधन, सारा मेकअप एक झटके में धो डाला ।
उसके मन से आवाज आई-मुझसे विवाह करके मेरा सच्चा प्रेमी कुंवर बहुत छोटा हो जायगा ।
इसी भावना में भरकर उसने आत्मत्याग का रास्ता सोच लिया ।
वह पहले ही दिन आधी रात को नाव में बैठ गंगा-पार अज्ञात स्थान को चल दी ।
वह कुंवर के नाम एक पत्र लिखकर स्वेच्छा से चुपचाप उसके मार्ग से हट जाती है ।
वह अपने सच्चे प्रेमी के भविष्य की चिंता से आत्मत्याग करना ही श्रेयस्कर समझती है - " क्या वह प्रकृति को धोखा दे सकती है ?
ढलते हुए सूर्य में मध्याह्न का-सा प्रकाश कहाँ हो सकता है ?