दिल की रानी

तैमूरलंग (सन्‌ 336-405) एक निहायत खौफनाक , बेरहम, निर्दयी, कठोर, हृदयहीन, महाघातक , जांबाज मंगोल बादशाह था ।

उसने हिन्दुस्तान से लेकर टर्की तक भयंकर आक्रमण करके , खून-खराबा करते हुए कोहराम मचा दिया था ।

सीरिया, ईराक आदि को रौंदते हुए .. आटोमन शासकों तक को धूल चटा दी थी ।

कुस्तुनतुनिया पर हमला करके एक लाख से ज्यादा बहादुर तुर्की को अपनी गिरफ्त में ले लिया था ।

खलीफा बायजीद का घमंड तोड़ दिया था ।

इस्लाम में आ गई बुराईयों को दूर करने के लिए ही उसने 'इस्लाम' को दूषित करने वालों को प्राणान्तक दंड दिया था ।

हज़ार-आठ सौ बरस पहले की दुनिया में ये रणबांकुरे तुर्क-मुसलमान ही थे, इस्लाम के खुदाई खिदमतगार , जिन्होंने तलवार के बल पर मध्ययूरोप तक इस्लाम का परचम लहरा दिया था ।

इस्लाम के उसूलों को लेकर उनकी अपनी एक अलग सोच थी |

जिंदगी को जीने की अपनी एक अलग ही ललक थी ।

उनकी टक्कर हिमालय के पार उपरवर्ती ट्रांजैक्सोनियन प्रदेशों में रहने / बसने वाले दैत्यनुमा खाड़कू तातारियों-मंगोलों से हुई, जिनका नेतृत्व अपने युग का सबसे जांबाज योद्धा तैमूरलंग कर रहा था ।

तैमूरलंग टर्की की राजधानी कुस्तुनतुनिया पर छा गया ।

उसने साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाते हुए इस्लाम के नाम पर/ ज़ेहाद के नाम पर सत्तर हज़ार तुर्क-मुसलमानों को बारूद से उड़ा दिया ।

किसी की मज़ाल नहीं थी जो उस भयंकर दानववृत्ति के बादशाह तैमूरलंग के आगे चूँ भी कर सके ।

तुर्कों का सेनापति यज़दानी बंदी वेश में तैमूरलंग के सामने हाथ बांधे खड़ा अपने स्वजनों के लिए प्राणों की भीख मांग रहा था ।

वह इज्जत की जिन्दगी जीना चाहता था ।

पुरुष तुक॑ सेनानी की वेशभूषा में उसकी लड़की ' उम्मतुल हबीब' भी बाप के पीछे खड़ी तैमूरलंग को खूनी निगाहों से घूर रही थी ।

तैमूर उसे तुर्क सेनापति 'यज़दानी ' का ही कोई गुलाम युवक समझ रहा था ।

उसने ' इस्लाम' तथा मुस्लिमों की आबरू, इज्जत तथा उनकी खुदापरस्ती और बहादुरी को लेकर तैमूरलंग को बुरी तरह फटकार दिया ।

तैमूर को बता दिया कि खुदबखुद एक मुस्लिम होकर उसने अपने ही स्वधर्मजात मुस्लिम भाईयों के खिलाफ जेहाद करके कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है ।

इसके लिए खुदा उसे कभी माफ़ नहीं करेगा ।

कयामत के दिन रसूल के आगे उसे अपनी हरकतों कां जबाब देना ही होगा |

यह सुनते ही लगा कि तैमूर इस युवक की गर्दन उड़ा देगा ।

भला तैमूर के सामने इतनी हिम्मत, कि कोई जुबाँ खोलकर उसी की लानत-मलानत करने की हिमाकृत करे ।

यज़दानी अपने बच्चे की गुस्ताखी के लिए तैमूर से रहम की दुहाई करने लगा ।

लेकिन तैमूर उस युवक के चेहरे पर दमकर्ते तेजोदीप्त प्रभा-मंडल से, उसकी दिलकश, खनखनाती , बर्क की तरह चमकती आवाज से हतप्रभ हो किकर्त्तव्यविमूढ़ हो चुका था ।

उसने सजा न देकर हुक्म दिया कि वह उसकी गुस्ताखी का बुरा नहीं मान रहा ।

उसने उसे खुदा का हबीब' कहते हुआ अपना अंतरंग गुलाम बना लिया ।

सारे तुर्क कैदी रिहा कर दिए गए ।

लूटा गया माल सिपाहियों में बराबर-बराबर बाँट दिया गया ।

तैमूर ने अपना संपूर्ण जीवनवृत्त बयाँ कर डाला और पछतावा करते हुए साफ किया कि क्यूँ उसने इतनी क्रूरता के साथ पाशविक-कृत्य करते हुए खुदा की राह में इस्लाम का परचम लहराया है ।

उसने युवक वेश में सामने खड़े हबीब से प्रार्थथा की कि वह उसकी वजारत संभाल ले ।

तैमूर उसे वजीर बनाकर अपने मुल्क ले जाना चाहता था ।

उसका बाप यज॒दानी इस प्रस्ताव पर शंकित हो उठा ।

पर खुलकर कुछ कह भी नहीं सकता था ।

यजूृदानी और हबीब धर्मान्तरित मुसलमान थे ।

पैदाइशी तौर पर वे ईरानी थे, जरस्थुस्त्र धर्म के अनुयायी ।

लेकिन परिस्थिति-वश ही उन्होंने इस्लाम कुबूल किया था ।

यजूदानी पुत्रविहीन था । बेटी उम्मतुल हबीब ही उसके लिए सब कुछ थी ।

खलीफा बायजीद के महलों में आवाजाही होने की वजह से उसने राजसी तहज़ीब-ओ-तमीज तो सीखी ही , साथ ही घुड्सवारी , युद्धकला, धर्मशास्त्र, दर्शन, काव्य , विज्ञान, अध्यात्म, सैन्य-संचालन कला आदि में भी महारत हासिल कर ली ।

इस्लामिक न्याय-तंत्र को गहराई से समझा था ।

खलीफा ने उसके चरित्रिक गुणों से प्रसन्न हो उसे एकहज़ारी का दरबारी मन्सब (खिताब) दे दिया था ।

24 वर्ष की आयु में भी वह सुन्दरी, स्वभिमानिनी वीर-बाला स्वतंत्र एवं उन्मुक्त विचारों के साथ अविवाहित रह अपने राजसी कार्यवृत्तों में कर्मचेत थी ।

कुस्तुनतुनिया बर्बाद होने से बचा था, तो उसी के कारण ।

काफी सोच विचार के बाद हबीबा ने अपने माँ-बाप को इस बात के लिए मना लिया कि वे उसे वजीर बनकर पुरुष वेश में अमीर तैमूरलंग के यहाँ जाने दें ।

उसे अपनी तलवार तथा अपनी हस्ती पर पूरा भरोसा था कि वह तैमूरलंग जैसे दरिन्दे बादशाह को भी इंसानियत की बेड़ियों में जकड़कर उसे एक रहमदिल, लोकहितैषी बादशाह बना देने में कामयाब हो सकेगी ।

उसने अपनी योग्यता , प्रशासकीय कार्य-कुशलता तथा अपनी वजारत की निर्णय- क्षमता से तैमूरलंग पर सिक्का जमा लिया ।

तैमूर की क्रूरता, क्रोध, बर्बरता, हिंसक वृत्ति, रक्त-पिपासा सब पर उसने तरीके से लगाम लगा दी ।

तैमूर ने पाया कि सारी दुनिया उससे नफूरत करती है , डरती है, उसके गुस्से से मुतमईन नहीं होती , जबकि उसका वज़ीर हबीब जिधर भी जाता है, हर कोई उसका मुतमईन हो जाता है ।

हर कोई वज़ीर को चाहता है । उसकी बात मान लेता है ।

तैमूर को प्रेम-लगाव बनाम धौंस-पट्टी तथा निंर्कुश शक्ति-प्रदर्शन के बीच के फर्क का ज्ञान हुआ ।

हबीबा ने तैमूर को बताया कि उसका आत्मदंभ ही उसका सबसे जानी दुश्मन है ।

उसे अपनी ताकत और कामयाबी पर घमंड नहीं करना चाहिए ।

खुदा सब कुछ देखता है । कुदरत किसी का भी घमंड हमेशा यकसाँ नहीं रहने देती ।

इस्तखुर की बगावत को हबीबा ने जोर जबर्दस्ती / कत्लेआम या तलवार से डरा-धमका कर नहीं अपितु प्यार से समझा-बुझाकर, बागियों की जायज़ बातों पर न्यायपूर्वक फैसले लेकर उस बगावत को शांत किया ।

उसने ईसाइयों को जीवन-यापन की आजादी दे दी । जज़िया माफ़ करा दिया, शराब बंदी पर सें भी नियंत्रण हटा लिया गया ।

उसके सुधारवादी कदमों से कट्टर मुसलमान खफा होने लगे । उन्होंने उदारता पूर्वक उठाए गए कदमों को कुफ्र कहा ।

बात तैमूर के कानों तक पहुँची । हबीबा के विरोधियों ने तैमूर के कान भरे कि हबीब पाशा ने छूट देकर मुसलमानों के खात्मे का माहौल पैदा कर दिया है, ऐसा प्रचार करके तैमूरलंग को उकसाया कि वह कुछ करे ।

लेकिन तैमूर बदल चुका था, अब वह कट्टर मुसलमान नहीं रहा था, न ही धर्मान्ध तलवारबाज, जो दूसरे मज़हबियों को जीने न दे ।

कासिद को उसने डाँट-फटकार दिया ।

तैमूर स्वयं इस्तखर जा पहुँचा ।

हबीब ईसाइयों के पक्ष में किले में शस्त्र सन्नद्ध हो शाही फौजों से / तैमूर से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार था । लेकिन तैमूर ने सफेद परचम लहरा दिया ।

यह सफेद झंडा युद्ध नहीं , सुलह की निशानी था ।

तैमूर और हबीब आमने-सामने आ गए ।

दोनों में समझदारी से भरी बातचीत हुई ।

हबीब ने तैमूर को समझा दिया कि हक के लिए लड़ना बगावत नहीं है ।

हर किसी को अपने-अपने तरीके से जिंदगी जीने का अख्तियार है, बशर्ते इससे दूसरों के हक न छिनते हों ।

हकीकत यह थी कि दूरदर्शी तैमूर की आँख बहुत पहले ही यह ताड़ चुकी थी कि पुरुष वेश में उसका वजीर एक निहायत खुबसूरत, चरसित्रवान, बुद्धिमान, कुशल, रणसिद्ध युवती है ।

वह मन ही मन उस पर लट्टू हो चुका था ।

उस पर मर मिटा था, उसे प्रेम करने लगा था ।

अब मौका आया था, जब उसने मुकट में हबीब पर अपने प्यार का खुलासा करते हुए उसे अपनी हयात-ए-शरीक बनाने का नज़राना पेश किया ।

हबीबा ने भी अपनी असलियत का खुलासा करते हुए तैमूरलंग की मनुहार भरी विनती को कबूल कर लिया ।

अब वही. वजीर वजीर न रहकर तैमूरलंग की बेगम था, ' बेगम हमीदा तैमूर ' के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुई ।

वह ताउम्र तैमूर के ' दिल की रानी' बनी रही । उसने तैमूरलंग जैसे नृशंस बादशाह के दिल में भी मोम का दिल डाल दिया ।