घिक्कार

भारतीय समाज में विधवाओं की दुर्गति का एक लम्बा इतिहास रहा है ।

9वीं/20वीं सदी में विधवा-पुनर्विवाह आंदोलन धडल्ले से चलाया गया था ।

हिन्दुओं में व्याप्त विधवा सम्बन्धी कुप्रथा को लेकर तमाम सुधारवादी नारे गढ़े गए थे ।

प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने एक अनाथ बाल-विधवा की दुर्गति तथा उसके आत्मघात का वर्णन करते हुए हिन्दू समाज के धर्म-धुरधर शास्त्राचारियों / बुद्धिजीविओं को घिक्कारा है ।

प्रेमचन्द कहानी की शैली में कहते हैं- मुकदूदर की मारी अनाथ, विधवा मानी अपने ऊपर से अपने माँ-बाप, पति का साया उठ जाने पर चाचा वंशीधर तथा महा स्वार्थिनी , कर्कशा , संकुचितमना चाची के रहम-ओ-करम पर अपना वैधव्य जीवन गुज़ार देने के लिए मज़बूर हो गई ।

चाचा वंशीधर ने उसे घर में आश्रय दिया ।

चाची को खाली बैठे-ठाले की एक घरेलू नौकरानी मिल गई ।

मानी तमाम झिड्कियाँ सहते हुए, हर तरह का अपमान बर्दाश्त करते हुए चाचा के घर में अपने दिन गुजारने लगी ।

चाचा के यहाँ आश्रय पा लेने से कम से कम दुनिया भर के शोहदों की निगाहों से तो बची हुई थी ।

औरतखोर दरिन्दों से तो बची ही हुई थी , भले ही चाचा-चाची के घर में कितना ही अपमान क्यों न सहना पड़ता हो ।

वह रात-दिन काम में लगी रहती थी ।

चचेरी बहिन ललिता भी उसे हर वक्त जली-कटी सुनाती रहती थी ।

अलबत्ता, चचेरा भाई गोकुल ही उसका खैर-ख्वाह था ।

विधवा थी, लिहाज़ा हिन्दू समाज में प्रचलित एवं लागू वे तमाम प्रतिबंध उस पर भी लगे हुए थे, जों विधवाओं पर लगे होते हैं ।

वह अपशकुन का पर्याय समझी जाती थी ।

किसी शुभ कारज में उसके शरीक होने पर सख्त पाबंदी थी ।

चचेरी बहिन ललिता के विवाहोत्सव पर उसे इतने दर्दनाक अपमान से गुजरना पड़ा कि वह आत्महत्या तक के लिए तैयार हो गई ।

वह तो भला हो गोकुल के मित्र इन्द्रनाथ का, जिसने ऐन मौके पर पहुँच कर उसे पंखे से लटककर आत्महत्या करने से रोक लिया ।

उसे लेकर इन्द्रनाथ तथा चचेरे भाई गोकुल के बीच तर्क-वितकं भी हुआ | इन्द्रनाथ प्रगतिशील विचारों का नौजवान था, वह वैधव्यपने आदि को नहीं मानता था ।

मानी के व्यवहार, उसकी शालीनता, चरित्र, दृढ़ता, समर्पण-भाव , कर्म-वृत्ति, ईमानदारी , मासूमियत तथा परिवार के प्रति कार्याचरण-वृत्ति को लेकर वह उस पर पहले से ही फिदा था ।

यह भी देख चुका था कि चाचा-चाची के घर में, यानि कि उसके दोस्त के घर में मानी का नित्य-प्रति किस हद तक अपमान होता है, शोषण होता है, सो उसने उसके चचेरे भाई गोकुल से मानी का हाथ मांग लिया ।

थोड़ी बहुत नानुकर के बाद मानी भी पुनर्विवाह के लिए तैयार हो गई ।

चाचा-चाची से छुपाकर गोकुल ने मानी को एक पूर्व योजनानुसार अपने मित्र इन्द्रनाथ के घर की दहलीज़ पर बतौर वधू पहुँचा दिया ।

इन्द्रनाथ की माता ने मानी को अपना लिया । उधर चाचा-चाची अपने बेटे की इस करतूत पर बुरी तरह खफा हो गए ।

माँ की झिड़कियों से आज्िज आकर गोकुल घर छोड़कर चला गया ।

उंधर इन्द्रनाथ का तबादला बम्बई हो गया ।

वह अपनी माँ तथा मानी को बम्बई पहुँचने की हिदायत देकर खुद बम्बई चला गया ।

गोकुल का बाप वंशीधर गोकुल के घर से पलायन कर जाने का कारण ' मानी ' को मान बैठा था ।

उसने अपनी बीबी की भी काफी लानत-मलानत की ।

वह गोकुल को ढूंढता फिरा, पर गोकुल का कहीं पता नहीं लग रहा था ।

उधर ' मानी ' अपनी सासू-माँ के साथ बम्बई अपने पति इन्द्रनाथ के पास जाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुँच गई ।

संयोगवश वहाँ चाचा वंशीधर दीख गए । भरी भीड़ में चाचा वंशीधर ने ' मानी की रही-सही इज्जत भी उतार दी ।

उसे खूब गालियाँ दी, झिड़कियाँ दीं , कुलच्छनी कहा , उसे ही गोकुल के चले जाने का सबब बताया ।

मानी बहुत आहत हुई ।

वह चाचा-चाची के अहसानों के तले दबी हुई थी ।

उसे लगा, अगर ये उसे आसरा न देते तो न जाने आज वह कहाँ होती ।

उसे चाचा की बात लग गई कि शादी कर घर बसा लेने तथा उसका घर उजाड़ देने से तो बेहतर होता कि वह मर क्यों नहीं गई ।

मानी अन्यमन॑स्क हो उठी ।

वह बम्बई जाने वाली डाक गाड़ी में सासू-माँ के साथ बैठी तो जरूर, पर उसने बीच रास्ते में मौका देखकर चलती गाड़ी से छलांग लगा आत्महत्या कर ली ।

उधर बम्बई में प्रती क्षारत उसके पति इन्द्रनाथ को जब इस दुर्घटना का पता लगा तो वह एकदम हिल गया ।

वह बम्बई से अपना लाव-लश्कर समेटकर अपनी माँ के साथ अपने गाँव वापस चला आया ।

वापसी में स्टेशन पर उसे अपना मित्र गोकुल बहदवास दशा में मिला ।

गोकुल को अपने घर छोड़कर वह चाचा-चाची से मिलने उनके घर . पहुँचा ।

वहाँ पहुँचकर उसने ' मानी ' के दुःखी होकर आत्महत्या कर लेने का शोकाकुल समाचार कह सुनाया ।

चाचा-चाची शोकाकुल . हो उठे । मन ही मन हर कोई विधवा की स्थिति को लेकर स्वयं को घिक्कार रहा था, स्वयं को मानी के आत्मघात का दोषी समझ रहा था |

विधवाओं की हालत आज भी हिन्दू समाज में कोई बहुत अच्छी नहीं है ।

मथुरा, काशी वृन्दावन, बंगाल तथा दक्षिण भारत में विधवाओं की दुर्दशा को आज भी देखा जा सकता है ।