ब्रह्म का स्वांग

स्त्री वृन्दा

“मैं उस सुपात्र ब्राह्मण की कन्या हूँ जिसकी व्यवस्था बड़े-बड़े गहन धार्मिक विषयों पर सर्वमान्य समझी जाती है ।

मुझे याद नहीं, घर पर कभी बिना स्नान और देवोपासना किये पानी की एक बूंद भी मुँह में डाली हो ।

हमारे घर में धोबी कदम नहीं रखने पाता । चमारिन दालान में भी नहीं बैठ सकती थी ।

किन्तु यहाँ आकर मैं मानों भ्रष्ट लोक में पहुंच गई हूँ ।

समस्त जातियों के लोग एकसाथ बैठकर

भोजन कर रहे हैं ! सुनती हूँ मुसलमान भी एक ही पंक्ति में बैठे हुए हैं ।

आकाश क्यों नहीं गिर पड़ता ! क्या भगवान्‌ धर्म की रक्षा के लिए अवतार न लेंगे ?”

पुरुष

“वह कौन सी शुभ घड़ी होगी कि इस देश की स्त्रियों में ज्ञान उदय होगा और वे राष्ट्रीय संगठन में पुरुषों की सहायता करेंगी ।

हम कब तक ब्राहमणों के गोरखधंधे में फंसे रहेंगे ?

मैंने वृन्दा को समझाया यह सारा जगत उसी परमात्मा का रूप है ।

जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश अलग-अलग घरों में जाकर भिन्न नहीं हो जाता , उसी प्रकार

ईश्वर की महान्‌ आत्मा पृथक्‌-पृथक्‌ जीवों में प्रविष्ट होकर विभिन्‍न नहीं होती ।

... मेरी इस ज्ञान-वर्षा ने वृन्दा के शुष्क हृदय को तृप्त कर दिया ।”

स्त्री वृन्दा “स्वामी के ज्ञानोपदेश ने मुझे सजग कर दिया, मैं अंधेरे कुएं में पड़ी थी |

कल धोबिन आई थी , उसके सिर में दर्द था, मैंने उसे अपने पास बैठाकर उसका सिर सहलाया ।

मुझे स्वर्गीय आनन्द आया ! महरी ' सर्दी से कांप रही थी , मैंने अपनी ऊनी चादर उसे ओढ़ा दी ।

कितना सुख मिला !" पुरुष कदाचित्‌ मध्यपथ पर रहना नारी-प्रकृति ही में नहीं है ।

वृन्दा कहाँ तो अपनी कुलीनता और कुल मर्यादा पर जान देती थी और कहाँ अब सौम्य और सहदयता की मूर्ति बनी हुई है ।

एक चमार तीन-दिन पहले अपने ज़मीदार के विरुद्ध मुकद्दमा करने आया था, बेशक ज़मीदार ने उसके साथ ज्यादती तो की थी , पर मैं क्यों मुफ्त में केस लूं, क्यों ज़मींदार से वैर ठानूँ ?

वृन्दा ने जबरदस्ती उस चमार की हिमायत की ।

मुझे बुरा लगा ।

वृन्दा दिनों दिन उल्टी होती जाती है।

आज रसोई में संब के लिए एक ही प्रकार के भोजन बने ।

नौकर और स्वांग हम एक कैसे हो गए ? नासमझ !

यह भेद सदा रहा है, और रहेगा।

मैं भी राष्ट्रीय एक्ट का अनुरागी हूँ...किन्तु कोई स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकता कि मजदूरों और नौकरों को समता का स्थान देंगे ।

समता चाहने का हमारा अभिप्राय यही है कि हमारा राजनैतिक महत्व और प्रभुत्व बढ़े !

पर वृन्दा को यह रहस्य कौन समझाये ? स्त्रीवृन्दा “यह घर अब मुझे कारागार लगता है, पर मैं निराश नहीं हूँ ।

मुझे . विश्वास है जल्दी या देर ब्रह्म ज्योति यहाँ अवश्य चमकेगी और इस अंधकार को नष्ट कर देगी ।

यह ब्रह्मवाद, यानी ब्राह्मणवाद और ब्रहम-स्वांग यानी समतावाद का ढोंग समाप्त होगा, सच्ची मानव समानता का भाव जगेगा ।