दो कब्रे

कुंवर रनबीरसिंह की दो शादियां हुई, पर संतान से वंचित रहे ।

तीसरा विवाह तो नहीं किया, पर एक दिन एक महफिल में

जुहरा के दर्शन हुए तो निराश कुंवर साहब और अतृप्त युवती जुहरा में ऐसा प्रगाढ़ प्रेम-मिलाप हुआ कि मानो चिरकाल की बिछुड़ी दो आत्माएं मिल गई हों ।

परन्तु कुंवर साहब की यह खुशी-भी-ज्यादा देर नहीं रही , पाँच साल बाद ही जुहरा तीन साल की बच्ची सुलोचना को देकर चल बसी ।

इस जुहरा की कब्र पर रोजू बिला नागा कुंवर साहब फूल चढ़ाने जाते हैं ।

कुंवर साहब ने सुलोचना के अति उत्तम लालन-पालन को ही अपनी जिन्दगी का मकसद बना लिया ।

उसे ऊँची शिक्षा शांति कहाँ रामेन्द्र के मुँह से ये शब्द सुनकर सुलोचना सकते में आ गई ।

वह सोचने लगी-मैंने आकर इनके कुलीन तालाब को गंदा कर दिया, किसी कुलीन स्त्री से ब्याह होता तो प्रतिष्ठित घरानों से इनका मेल-जोल बना रहता ।

अगले बरस सुलोचना ने एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया ।

इस खुशी में कुंवर साहब और रामेन्द्र ने अपने परिचितों की दावत का एक होटल में आयोजन किया ।

निमंत्रित लोग आए पर मिर्जा साहब, खाँ साहब, मीरसाहब, पंडितजी, लालाजी, शर्मा-वर्मा कोई नहीं आए ! रामेन्द्र का दिल विश्वुब्ध हो उठा ।

कुंवर साहब को तो पहले से ही आशंका थी !

इसीलिए जब रामेन्द्र ने कहा-जी करता है इन लोगों से पूछूं ' तुम जो समाज सुधार का राग अलापते हो वह किस बल पर' ?

तो कुवंर साहब कहते हैं-व्यर्थ है, जाकर आराम करो !

अगले दिन वेश्याओं का एक दल सुलोचना को बधाई देने आ पहुँचा ।

यह जुहरा की सगी भतीजी गुलनार थी जो बधावा लेकर आई थी , रामेन्द्र से बोली “बाबूजी , बेटी मुबारक , बधावा लाई हूँ ।”

रामेन्द्र को लकवा मार गया ! सिर झुक गया और चेहरे पर जैसे कालिख पुत गई !

सुलोचना ने यह सब देखा तो एक पुर्जा लिखकर गुलनार के हाथ में भिजवाया-“बहन गुलनार !

तुम नाहक आई वापस चली जाओ, मिलने को जी चाहते हुए भी मज़बूर हूँ ।”

उस दिन के बाद सुलोचना और रामेन्द्र में मनमुटाव बढ़ता गया ।

सुलोचना तड़प कर कह देती-आपका कोई दुराचारी-व्यभिचारी नातेदार आ जाए तो क्या आप उसे दरवाजे से भगा दोगे ?

रामेन्द्र : तुम मुझे इसके लिए मज़बूर नहीं कर सकतीं !

सुलोचना : और आप मुझे मज़बूर कर सकते हैं ?

सुलोचना ने एक दिन अपनी अम्मां जुहरा की कब्र पर जाने के लिए गाड़ी मंगाई, पर रामेन्द्र ने मना कर दिया ।

वह सब कुछ सह सकती थी, पर यह धौंस, यह अपमान, यह अविश्वास, यह अन्याय उससे न सहा जायेगा ।

ईश्वर, अगला जन्म कुलीन कोख से ही देना ! और अपनी चाँद-सी बच्ची का मोह छोड़कर, वह अपनी माँ की कब्र के पास ही धरती में समा गई ।

जुहरा की कब्र की ही बगल में उसकी कब्र है, जहाँ रामेन्द्र तीन साल की बेटी शोभा को साथ लिए अपने अन्याय के पश्चाताप के फूल बिछाने आते हैं !