कायर

केशव और प्रेमा एक ही कॉलेज में क्लास-फेलो हैं ।

उनमें साहचर्यगत आकर्षण और परस्पर प्रेम स्थापित हो गया ।

किन्तु समस्या यह है कि केशव ब्राह्मण है और प्रेमा वैश्य-परिवार की ।

प्रेमा अपने माता-पिता के परंपरागत संस्कारों और जात-पात के बंधनों को

सिद्धांतत: तो नहीं मानती , पर अपने माँ-बाप की इच्छा के विरुद्ध जाने का साहस भी उसमें ज्यादा नहीं है ।

इसी से वह इस बात की आशंका व्यक्त करती है कि माँ-बाप की मरजी के बिना वह केशव से विवाह बंधन में नहीं बंध सकेगी,

हां ! मित्र बनकर रह सकती है। केशव आधुनिक विचारों का जात-पाँत के बंधनों का कट्टर विरोधी है ।

वह प्रेमा से अन्तर्जातीय विवाह करके अपने जीवन को सार्थक करना चाहता था ।

“वह प्रेमा से कहता है कि उसे अपने माँ-बाप की मरजी की परवाह नहीं है ।

कुल-मर्यादा के विचार उसे स्वांग-से लगते थे ।

उसके लिए सत्य कोई वस्तु थी तो प्रेमा ।”

केशव बड़े उग्र और कठोर भाव से प्रेमा को कहता है-“बस इतना ही समझ लो कि मैं (तुमसे) निराश होकर जिन्दा नहीं रह सकता ।”

परन्तु प्रेमा जब उसे किसी प्रकार आशान्वित नहीं करती तो वह रूठ कर उठ आता है ।

इधर प्रेमा अपनी दृढ़ता जताकर किसी तरह अर्न्तजातीय विवाह के लिए अपने कट्टर माता-पिता को राजी कर लेती है ।

उसके पिता लालाजी, केशव के पिता के पास प्रस्ताव लेकर गए ।

पंडितजी कड्क स्वभाव के पुरानपंथी थे, सुनते ही बिगड़ उठे” आप भाग तो नहीं खा गए हैं ?

इस तरह का संबंध और चाहे जो हो , विवाह नहीं है ।”

आखिर प्रेमा के पिता अपमानित होकर लौट आए !

बूढ़े पंडितजी ने डाँटकर केशव से पूछा-“ सुना है तुम किसी बनिए की लड़की से विवाह करने को सहमत हो ?”

केशव डर के मारे इन्कार कर देता है तो पण्डितजी एकदम कहते हैं-“ तो तुम आज ही इसी वक्‍त उस बनिए को खुत लिख दो और याद रखो कि अगर

इस तरह की चर्चा फिर कभी उठी तो मैं तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु होऊंगा ।”

केशव जरा चूं नहीं करता और प्रेमा को खत लिखता है- मैंने इस समस्या पर खूब ठण्डे दिल से विचार किया है और इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि मेरे लिए पिता की आज्ञा की उपेक्षा करना दु:सह है ।

मुझे कायर न समझना ।

मैं स्वार्थी भी नहीं हूँ, लेकिन मेरे सामने जो बाधाएं हैं उन पर विजय की शक्ति मुझ में नहीं है ।”

उफृ! वह कायर नहीं तो और क्या निकला ?

प्रेमा ने आशा के बिल्कुल विपरीत उसका वह पत्र पाकर आत्महत्या कर ली !

कैदी की चौदह वर्ष का दीर्घ कारावास काटकर जब आइवन आँखो टस्क जेल से बाहर निकला तो

उसके हृदय में शांति की शीतलता के स्थान पर प्रतिशोध की प्रचण्ड ज्वाला धधक रही थी।

चौदह साल पहले की स्मृतियां उसके हृदय में ज्वार-भाटा उत्पन्न कर रही थीं ।

वह जिस विद्यालय में पढ़ता था, वहाँ उसकी क्लास-फेलो हेलेन से न उसका प्रगाढ़ सम्बंध हो गया था ।

हेलेन के उग्र क्रांतिकारी विचारों का प्रभाव उसने हेलेन के प्रेम - में आबद्ध होने के कारण ग्रहण कर लिया था,

अन्यथा वह राष्ट्रवादी होते हुए भी इतना उग्रवादी न था ।

उन दिनों रोमनाफ उक्रायेन प्रांत का नया गवर्नर बन कर आया था ।

वह बड़ा अत्याचारी और दमनकारी था।

वह राष्ट्रवादियों का जानी दुश्मन था ।

आते ही उसने कितने ही संपादकों को साइबेरिया की जेलों में भेज दिया था।

म्यूनिसिपेलूटी तोड़ दी, मार्शल-लॉ लागू कर दिया और सैंकड़ों विद्रोहियों को गोलियों का शिकार बना डाला था ।

उसके आतंक से जनता थर्र उठी थी !

हेलेन का मत था कि हिंसा के जवाब में हिंसा-द्वारा ही इस जालिम और उसके शासन को खत्म किया जा सकता है ।

हेलेन रोमनाफ को मार डालने की योजना बनाती है ।

उसने आइवन को बताया कि वह रोमनाफ को अपने रूप-जाल में फंसा कर एकांत पार्क में ले जायगी और तब आइवन अचानक वहाँ आकर रिवाल्वर की गोली से उसका खात्मा कर देगा ।

हेलेन की प्रेरणा से आइवन इस काम के लिए तैयार हो गया।

हेलेन रोमनाफ से मेलजोल बढ़ाती है ।

उसका विश्वास और प्रेम जीत लेती है ।

इस नाटक में हेलेन को रोमनाफ का सहवास करना और अंकशायिनी भी बनना पड़ा ।

एक रात को योजना के अनुसार हेलेन रोमनाफ को एकॉंत पार्क में ले गई ।

आइवन ने अचानक आकर रोमनाफ पर गोली चलाई, पर निशाना चूक गया ।

तरफ से सिपाहियों ने आकर आइवन को घेर लिया, पकड़ लिया ।

अपने प्रभाव और प्रेम में बांधकर रोमनाफ ने हेलेन को सरकारी गवाह बना लिया ।

वही एकमात्र चश्मदीद गृवाह थी ।

आइवन को चौदह साल के कठोर कारावास की सजा हुई थी ।

जेल से छूटते ही आइवन हेलेन के दगा देने और बेवफाई करने का बदला लेने के लिए रोमनाफ के घर पहुंचा ।

वहाँ उसे हेलेन नहीं, हेलेन की लाश ताबूत में मिली ।

आइवन उसे नीच और दुष्टा कहता हुआ उधर जाने लगा तो रोमनाफ ने उसे बताया-आइवन, हेलेन अंत समय तक तुम्हारी याद करती रही,

मरते-मरते भी वह स्वयं को तुम्हारी अपराधिनी समझती रही और यह वसीयत कर गई कि तुम्हारे सामने घुटने टेककर क्षमा-याचना की जाय!

आइवन ने ताबूत में से हेलेन का शांत मुख देखा मानों क्षमा की . याचना कर रहा हो ।

वह फूट-फूट कर रो पड़ा और स्वयं भी वहीं ढेर हो गया !