क्रिकेट टीम का खिलाड़ी जूफूर अपनी डायरी के पन्ने खोलता है ।
वह अपनी टीम के मैच हार जाने से खिनन है ।
हार के कारणों पर सोच-विचार कर ही रहा था कि स्टेशन पर एक सुन्दर युवती हेलेन मुकर्जी उसे मिली ।
वह जृफर के बारे में और क्रिकेट टीम के सम्बंध में बहुत कुछ जानती थी ।
विचार-विमर्श से वह इस तथ्य पर पहुँचे कि हमारी क्रिकेट टीम या खेलकूद में सफलता न मिलने
के दो बड़े कारण हैं-एक यह कि हमारे यहाँ लोगों में सही आदमियों को सही जगह पर रखने का माद्या ही नहीं है जिसके पास धन है, उसे हर चीज का अधिकार है ।
धन और राजनीति के बल पर अयोग्य आदमी टीम में चुने जाते हैं, कप्तान बना दिए जाते हैं ।
हेलेन जफृर को स्पष्ट कहती है-“इस टीम का कप्तान आपको होना चाहिए था, तब देखती कि दुश्मन क्यों बाजी ले जाता ।”
महाराजा साहब अपने असर रसूख से कप्तान बने, पर वह योग्यता उनमें कहाँ थी ?
असफलता की दूसरी बड़ी वजह है हमारे खिलाड़ियों में एकाग्रता, लगन और अपने ध्येय के प्रति प्रमाणिकता का अभाव !
हेलेन सब खिलाड़ियों को आड़े हाथों लेती हुई कहती है-दोस्तों , हमें
कामयाबी वहीं होती है जहाँ हम अपने पूरे हौंसले से काम में लगे हों- माफ कीजिए आपने अपने लक्ष्य के लिए जीना नहीं सीखा ।
आपके लिए क्रिकेट सिर्फ एक मनोरंजन है , आपको इससे प्रेम नहीं ,
आपके लिए मैं ज्यादा दिलचस्पी की चीज थी , क्रिकेट तो सिर्फ मुझे खुश करने का जरिया था ।
हेलेन के रूप-यौवन पर लट्टू हुए खिलाड़ियों को फटकारती हुई वह कहती है मेरा रूप और मेरी रातें वासना का खिलौना बनने के लिए नहीं हैं ।
जीवन का लक्ष्य कहीं ऊंचा है ।
सच्ची जिन्दगी वही है, जहाँ हम अपने लिए नहीं, सबके लिए जीते हैं ।”