परीक्षा- दो

देवगढ़ रियासत के दीवान सरदार सुजान सिंह ने चालीस साल तक

जी-जान से राजा और रियासत की सेवा करने के बाद सेवा-निवृत्ति की प्रार्थना की।

राजा साहब ने उनकी आयु का ख्याल करके प्रार्थना तो स्वीकार की, पर शर्त यह लगा दी कि

रियासत के लिए नया दीवान उन्हें ही खोजना होगा।

दूसरे दिन अखबारों में विज्ञापन दे दिया गया ।

उम्मीदवारों की लाइन लग गई ! सनद-डिग्री की कोई शर्त नहीं थी

,उम्मीदवार अन्यथा साहस, सूझ-बूझ, दया, ममता, करुणा और सत्यता से भरापूरा होना चाहिए ।

उम्मीदवारों को एक महीना तक रियासत में रखा जाएगा, रहने-खाने आदि का सब प्रबंध किया गया ।

सब तरह के सैंकड़ों उम्मीदवार अपना-अपना सद्व्यवहार और अच्छा आचरण प्रदर्शित करते हुए एक महीना बिताने लगे ।

अपनी-अपनी कुशलता और सदाशयता प्रदर्शित करने लगे ।

एक रोज हाकी के मैच का आयोजन किया गया ।

सब प्रत्याशी खेलने और मैच देखने के लिए शहर के बाहर मैदान में पहुँचे ।

शाम को जब सब वापस लौट रहे थे तो सबने देखा-एक बूढ़े किसान की बैलगाड़ी एक गड्ढे में कीचड़ में धँस गई है

और किसान के प्रयत्नों के बावजूद निकल नहीं पा रही है।

गरीब किसान हताश और थकान से चूर बेबस और मायूस खड़ा है ।

सब उम्मीदवार हँसते-हँसते, गप्पें लड़ाते वहाँ से निकल जाते हैं,

कोई भी उस किसान की सहायता को नहीं आता, देखकर अनदेखा कर निकल

जाते हैं ।

परन्तु एक युवक उनमें ऐसा अवश्य था, जिसके मन में दया, साहस, त्याग आदि गुण भी थे। हाकी खेलते हुए उसके पाँव में चोट

आ गई थी, फिर

भी लंगड़ाता हुआ वह उस किसान

के पास आया और

कीचड़ में धँसकर

उसने जोर लगाकर

गाड़ी का पहिया

कीचड़ से निकाल

बाहर किया ।

किसान ने हाथ

जोड़कर युवक का

धन्यवाद किया

और दुआ की कि नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी ।

एक बार किसान ने युवक को और युवक ने किसान को तीव्र दृष्टि से देखा ।

एक महीना बीतने पर चुनाव का दिन आया।

सरदार सुजानसिंह ने उसी युवक जानकी नाथ का नाम पुकारा और उसे बधाई दी ।

साथ ही सबको संबोधित करते हुए सरदार ने कहा-" जो पुरुष स्वयं जख्मी होकर भी एक गरीब किसान की भरी हुई गाड़ी को दलदल से

निकाल कर नाले के ऊपर चढ़ा दे, उसके हृदय में साहस, आत्मबल और उदारता का वास है ।

रियासत को ऐसा ही दृढ़ संकल्पी दया-धर्म का पुतला चाहिए ।"

और वह किसान और कोई नहीं, यही सरदार सुजानसिंह थे, जिन्होंने सबकी परीक्षा ले डाली ।