इसर्कापा सीमेंट ढोने वाले एक साधारण मजदूर का बेटा था।
प्राथमिक शिक्षा सिर छुपाने के लिए एक झोंपड़े और दो-वक्त की रोटी के सिवा, चौथी कोई सुविधा इस बच्चे को नसीब न थी।
पोलियो ने उसकी दोनों टांगें टहनी की तरह पतली कर दी थी।
चेचक से सुंदर चेहरा खुरदरा हो चुका था।
मगर इसर्कापा अपने समकालीन बच्चों से बहुत जैड़ा कल्पनाशील और आशावादी था। झोंपड़ों में रहकर भी, वह महलों के ख़्वाब देखता था।
बूढ़े बाप जैकब सीनियर से कहता, डैडी, मुझे लगता है कि पूर्व-जन्मों में मैं, महलों में रहा करता था।
यह भी लगता है कि जन्म में मैं फिर एक महल बनाऊंगा।
माता-पिता बच्चे को टॉफी आदि थमाकर बहला देते।
पिता दमा रोग से चल बसा, तो सीमेंट-पत्थर ढोने का काम इसर्कापा के दुर्बल शरीर को करना पड़ा।
एक महीने के बाद ही, यह दुबला युवक इस शारीरिक काम में भी माहिर हो गया।
इतना ही नहीं, दिवंगत बाप से चार गुना भोजन संतुलित हो गया और बदन भी काफी मजबूत हो गया।
टांगों की थरथराहट जाती रही। प्राइवेट तौर से, इसर्कापा ने थोड़ी-बहुत पढ़ाई भी जारी रखी।
शॉयलटाऊनशिप में, इसर्कापा ने पांच कनाल के लगभग जमीन भी खरीद ली।
डेढ़ सदी पहले, इसर्कापा ने अपनी कल्पना में रंग भरने शुरू किए। पूरी जमीन पर बाड़ लगाने के बाद, उसने अपने सपनों का महल धीरे-धीरे बनवाना शुरू किया।
इसके लिए उसने इतनी कड़ी मेहनत की, जो आम आदमी के वश की बात नहीं होती।
भवन-निर्माण का नक्शा भी खुद बनवाया।
भूख-प्यास शादी-ब्याह या जीवन के अन्य मनोरंजन - सब कुछ भूलकर, इसर्कापा दिन-रात महल बनवाने में जुट गया।
कुल बयालीस वर्ष लगे। इस बीच, इसर्कापा की स्नेहमयी माँ और अनेक शुभचिंतकों का निधन हो गया। महल बनाने के सिलसिले में, इसर्कापा ने जिन दोस्तों और रिश्तेदारों से बारी-बारी उधार लिया था, वे भी एक-एक करके चल बसे। उधार के मामले में, दो बातें इसर्कापा के जीवन में वरदान की तरह प्रकट हुई।
पहली बात तो यह थी, कि उसे हर व्यक्ति ख़ुशी-ख़ुशी और खुले-दिल से उधार दे देता था।
और दूसरी अचरज-भरी बात यह थी, कि बाद ही, वह स्त्री या पुरुष, प्राकृतिक मौत का शिकार था।
चौदह मई, को इसर्कापा के सपनों का महल तैयार हुआ। वह उस दिन महल के बाग़ में शराब पीकर नाचता रहा। लेकिन असंख्य कमरों वाले महल में केवल पांच दिन रह पाया वह।
उन्नीस मई, मंगलवार को वह अपने भव्य निद्रागार में, फांसी लगाकर जान गँवा बैठा।
सरकारी तौर पर यह महल कुछ हप्तों बाद नीलाम हुआ। इसे गुड़ के एक जाने-माने व्यापारी ने भारी कीमत देकर खरीदा। परन्तु इसर्कापा का दुबला-पतला प्रेत शरीर आज भी सतरंगे महलों के रहस्यमय वृक्षों तथा सीढ़ियों में उदास खड़ा दिखाई देता है।
वह कुछ नहीं कहता।
लोगों का दृढ विश्वास है कि उधर की असंख्य रकमों न लौटा पाने के कारण ही महत्वाकांक्षी युवक की यह दुर्दशा हुई है।