पुराणों के पाँच विषय या लक्षण माने गए हैं:- (क) सर्ग (सृष्टि)
(ख) प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म)
(ग) वंश (देवों और ऋषियों की वंशावली)
(घ) मन्वन्तर (चौदह मनु के काल)
(ङ) वंशानुचरित (सूर्य एवं चंद्रादि वंशीय चरित)
ऋषियों ने सर्वप्रथम जिन धर्म ग्रंथों की रचना की, उसे पुराण नाम से जाना जाता है।
पवित्र धार्मिक ग्रंथों की सूची में पुराण आते हैं, जैसे विष्णु पुराण, शिव पुराण, मार्कण्डेय पुराण, भागवत पुराण।
वायु, अग्नि, स्कन्द, कल्कि, लिंगम् आदि पुराणों में देवी-देवताओं के परस्पर व्यवहार तथा मनुष्यों के साथ उनके व्यवहारों का वर्णन है।
महापुराण और उपपुराण में लगभग 40,000 श्लोक या ऋचाएँ हैं, जिनकी रचना कई सदियों में हुई।
इनमें विभिन्न विषयों की चर्चा है- जैसे राजाओं, नायकों, उपदेवों, तीर्थयात्रा, व्याकरण,
मंदिर, दर्शन-शास्त्र, औषधि ज्योतिष एवं खगोल शास्त्र, खनिज, प्रेम कथाओं, हास्य, आदि।
पद्य शैली में लिखे गए पुराण धार्मिक कर्त्तव्यों और याज्ञिक कर्मों की महत्ता को बतलाते हैं।